असंतुष्ट रहने वाला अपना सुख चैन खो देता है

कोई भी निजी मकान, कार्यालय या पद आपकी आकांक्षाओं के अनुरूप निर्मित नहीं किया गया है। जिस संगठन ने आपको बरसों-बरसों आजीविका दी, मान सम्मान दिया, उसकी कद्र करने के बदले उसमें नुक्स तलाशना या कोसते रहना तो अहसानफरमोशी हुई।

उस संगत से बचें जहां निरंतर अपने कार्यस्थल और वहां के कार्मिकों पर अनुचित और अभद्र टिप्पणियां की जाती रहती हैं। ऐसी धारणा से ग्रस्त व्यक्ति मनोयोग से कार्य नहीं करेगा, फलस्वरूप उसका कार्य उच्च कोटि का नहीं होगा।

प्राप्त स्थिति की कद्र करें

किसी ने आपको कुछ दिया हो उसका निरादर करेंगे तो मन और भाव से सुखी नहीं रहेंगे। यही नियम मानवीय संबंधों पर लागू होता है। पारिवारिक संबंधों में तो चयन का विकल्प ही नहीं होता। संतुष्टिपूर्ण, सार्थक जीवन के लिए स्वयं के व्यवहार, आचरण, सूझबूझ और विवेक से अनुकूल व्यवस्थाएं बनानी होंगी। यही सफलता की परिभाषा भी है। जब तक जीवन है प्रतिकूल, कठिन तथा अप्रिय घटनाओं से रूबरू होना पड़़ेगा। आपकी तरक्की कुछ को रास नहीं आएगी, वे आपको दुखी करने की चेष्टा भी करेंगे। जहां तक संभव हो, सुलह कर लें या निबटें, और जो असंभव है उसकी अनदेखी करना सीखें किंतु असंतुष्टि का भाव मनमंदिर में संजो कर न रखें। परिस्थितियों या इर्दगिर्द के व्यक्तियों में नुक्स-दोष तलाश कर उनके प्रति चिंता या वैमनस्य रखना दर्शाता है कि मन स्वस्थ नहीं है, ऐसी सोच का व्यक्ति सुख-चैन से वंचित रहेगा। सर्वगुणसंपन्न व्यक्ति या सुनहरी जिंदगियां केवल फिल्मों और कथाओं में मिलते हैं।

असंतुष्ट रहना एक प्रवृत्ति है। जिसके अभाव को असंतोष का कारण ठहराया जाता है, वह सुलभ होने पर तुरंत दूसरा दुखड़ा प्रस्तुत हो जाएगा। संतुष्टि का अर्थ उत्कृष्टता के प्रयास न करना भी नहीं है।

अधिसंख्य व्यक्तियों द्वारा असंतुष्टि भाव को हृदय में बैठा देने वालों के बाबत शीर्ष कथाकार प्रेमचंद के उपन्यास ‘‘रंगभूमि” की एक पंक्ति है, ‘‘यदि बरसों बाद भी जीवनसाथी चुनने का अधिकार मिल जाए तो ऐसे कितने होंगे जो पिछले चयन से संतुष्ट रहेंगे?’’

आपकी स्थिति के लिए कई लोग तरसते हैं

न भूलें, आप अनेक व्यक्तियों के अधिनायक हैं, भले ही यह तथ्य आपके संज्ञान में न हो। आपकी वर्तमान स्थिति उनके जीवन का परम लक्ष्य है। समर्थ अंगों युक्त मानव शरीर स्वयं एक बहुत बड़ा उपहार है। माता-पिता, भाई-बहिन, अंतरंग मित्र, रहने के लिए मकान, दो वक्त का भोजन, आदि के लिए स्वयं को धन्य समझें। उन्हें देखें जिनके पास इनमें अधिकांश चीजें नहीं हैं, जो आपसे बहुत निम्नतर परिस्थितियों में जीने को अभिशप्त हैं। जो आपके पास नहीं है उसे पाने के लिए प्रयत्न करें; जहां पहुंचना चाहते हैं उसके लिए ज्ञान, कौशल से स्वयं को परिमार्जित, परिष्कृत करें। विश्वास रखें, वह अवश्य मिलेगा जिस योग्य आप स्वयं को बना डालते हैं।

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इस आलेख का संक्षिप्त रूप दैनिक जागरण के संपादकीय पेज (ऊर्जा कॉलम) में 8 नवंबर 2022, सोमवार को “संतुष्टि का भाव” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

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