चुनावी बयानबाजियों, बाजार में बिक्री बढ़ाने और रोजमर्रा की जिंदगी में अपना उल्लू साधने के लिए अमूनन शब्दों की जादूगरी का जम कर इस्तेमाल होता है। शब्द ऊर्जा है, इनका प्रयोग जितना सोच विचार कर करेंगे उतना ही वे वजनदार होंगे और आपकी शख्सियत में चार चांद लगाएंगे।
शब्दों की उत्पत्ति दैविक, और इनका स्वरूप आध्यात्मिक समझा जाता रहा है। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव के डमरू से उत्पन्न ध्वनियों को एक एक कर आकृतियों के रूप में लिपिबद्ध किया गया और अक्षरों का प्रादुर्भाव हुआ; पाणिनी के व्याकरण ‘‘अष्टाध्ययी’’ के 14 मूल सूत्र भी डमरू के स्वरों की देन माने गए हैं। अंग्रेजी में ‘‘शब्द’’ के समानार्थी ‘‘वर्ड’’ के मायने ‘‘यीशू’’ और ‘‘बाइबल का संदेश’’ भी होता है। ईसाई धारणा है कि शब्द दिल से उपजते हैं; कयामत के दिन हर किसी को अपने बोले शब्दों का हिसाब देना पड़ता है और उसे सद्गति या अधोगति मिलती है। शीर्ष वैज्ञानिक व टेलीफोन के पितामह ग्राहम बैल की शब्दों के अविनाशी स्वरूप में अटूट आस्था थी, ऐसा उल्लेख सुविदित लेखक नेपोलियन हिल ने अपनी पुस्तक ‘‘दि लॉ आफ सक्सेस’’ में किया है। उनकी राय में आज तक वैज्ञानिकों-विद्वानों ने जो भी कहा, सोचा और प्रतिप्रादित किया वह ब्रह्मांड में कंप्यूटर चिप की भांति स्थाई तौर पर बरकरार रहता है और उचित पद्धति अपनाते हुए उस ज्ञान का आह्वान संभव है। यों भी, विज्ञान के अनुसार सुने गए शब्द यानी ध्वनि कभी नष्ट न हो सकने वाली ऊर्जा का एक रूप हैं।
लोकजीवन में ‘‘शब्द’’ के मायने भावों, विचारों के संप्रेषण का माध्यम है किंतु विज्ञान और अध्यात्म दोनों की दृष्टि में शब्द गरिमामय, चिरस्थाई, आराध्य अस्मिता हैं अतः इनका निरादर प्राकृतिक विधान की अवहेलना है और इसीलिए दंडनीय है। शब्द को विचार का वाहन या इसका मूर्त रूप भी मान सकते हैं। खलील जिब्रान ने कहा कि विचार यानी शब्द का अमूर्त रूप इहलोक की अस्मिता नहीं बल्कि अंतरिक्ष का पक्षी है (थॉट इज़ दि बर्ड ऑफ स्पेस)। इसलिए यह अथाह सामथ्र्य से परिपूर्ण है। शब्दों में बिगड़ी हुई बात को बनाने, बीमार को स्वस्थ करने, मृतप्रायः व्यक्ति में प्राण फूंकने, आत्महत्या की ठाने व्यक्ति को बचा डालने, टूट चुके परिवार को जोड़ने की प्रचंड शक्ति है; इनसे आत्माओं का आह्वान संपन्न होता रहा है, बशर्ते शब्दों को अभ्यास से सिद्ध कर लिया जाए। वहीं, नकारात्मक लेने पर शब्द उलटवार करते हैं। इनका उपयोग चाकू-तलवार से ज्यादा गहरा जख्म करता हैं; घृणा, नफरत, भ्रांतियां या गलतफहमियां फैला देता है, सदा का वैमनस्य उत्पन्न कर देता है।
क्षणिक तुष्टि या दूसरे पर हावी रहने के लिए शब्दों के अनुचित, अत्यधिक या अनर्गल प्रयोग से न केवल हम ऐन वक्त पर इनसे लाभ पाने से वंचित रहते हैं बल्कि प्रतिष्ठा खोते हैं। शब्द जीवंत अस्मिताएं हैं, और हमारे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली की झलक पेश करते हैं। शांतिकुंज के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा का कहना है, जो जैसा बोलता रहता है वही बन जाता है। शब्दों को नियंत्रण में रख कर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है, भविष्य को संवारा जा सकता है। शब्दों का समादार करेंगे तो आपका कहा-लिखा भी दूसरों के सर-आंखों पर रह सकता है।
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नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कॉलम में 3 जनवरी 2018 को (ऑनलाइन संस्करण में ‘‘शब्दों को नियंत्रण में रखने से समय भी नियंत्रण में रहता है’’ शीर्षक से) प्रकाशित। अखवार का लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/you-can-control-your-time-with-the-help-of-yours-controlled-words-22460/
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अति सुन्दर लेख
शब्दों का महत्व बताया गया है कि यदि इनका उचित उपयोग नहीं किया गया तो परिस्थितियाँ दमा डॉल हो सकती है। महत्वपूर्ण संदेश दे रहा हैं हरीश ji का यह लेख
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सही है।
लेकिन शब्द यदि होशपूर्ण होकर बोले जाएं तभी वे सार्थक होते हैं और जहां पर जैसे शब्दों की आवश्यकता है वैसे ही शब्द बोले जाएं न कि निहित स्वार्थ अथवा किसी लाभ के लिए। कबीर ने कहा है – निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छंवाय।
सो जो आपका शुभचिंतक होगा वह आपकी कमियों की ओर भी इशारा करेगा। अब उसके शब्दों से बुरा मानना अथवा क्रोधित हो जाना आपका ‘बेहोश’ रवैया है।