आप हमेशा शिकायती मुद्रा में तो नहीं रहते

आपको हर किसी से शिकायत रहेगी तो थोपड़ा गुमसुम रहने लगेगा और लोग आपसे कतराने लगेंगे। इस प्रक्रिया में आपका चैन तो छिनेगा ही, जरूरी काम भी नहीं सलटेंगे।

घर में परिवार के मुखिया से, या कार्यस्थल में अधिकारी या अधीनस्थ कर्मियों से सदा शिकायत करने वाले नहीं समझते कि कोई घर, या किसी संगठन में कोई पद उनके स्वभाव, आकांक्षाओं, दक्षताओं और योग्यताओं के अनुरूप नहीं बनाया गया है। आवश्यकता स्वयं को वर्तमान परिस्थितियों में ढ़ालने की और सूझबूझ तथा श्रम से उत्कृष्ट परिणाम देने की है। शिकायती प्रवृत्ति का अर्थ है व्यक्ति परिस्थितियों से तालमेल बैठाने की में सक्षम नहीं है, ऐसा उनके साथ अधिक होगा जो कठिनाइयों, समस्याओं से कतराने की आदत बना लेते हैं। याद रहे, समस्याएं शिकायतें करने से नहीं, ठोस कार्य करने से सुलझेंगी

दुनिया से उन्हें भी कम शिकायतें नहीं रहीं, जिन्हें सब कुछ मिला। जीवन में फूल व कांटे, धूप व छांव, साथ-साथ मिलेंगे। जिसने जो ढूंढ़ा उसे वही मिला। संयत, कर्तव्यशील व्यक्ति जानता है कि समझदारी शिकायतें करने में नहीं, अपने कार्य में चित्त लगाने में है। अपने परिवेश और इर्दगिर्द की जिन जीवित और निर्जीव अस्मिताएं के बीच आप अधिकांश समय बिताते हैं, उन सबके प्रति आपके भावों, विचारों और प्रतिक्रियाओं से तय होता है कि आप जीवन में कितना संतुष्ट या अतृप्त, खुशनुमां या उदास, सफल या विफल रहेंगे। यों इतना संतुष्ट हो जाना कि अभिनव प्रयोग करने या नया सीखने की ललक खत्म हो जाए, उन्नति और खुशहाली को अवरुद्ध कर देगा और व्यक्ति जड़ हो जाएगा। संतुष्टि का स्वरूप यों हो कि अवरोध और कठिनाइयां आपको विचलित या उद्विग्न न करें। इन्हें जीवनपथ का अपरिहार्य पक्ष मान कर खुले मन से स्वीकार करें और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।

लोग क्या कहेंगे, इस चिंता में रोज मरते लोग

अपनी ही दुनिया में व्यक्ति इतना मशगूल है कि आपकी उसे कोई परवाह नहीं। विश्वास न हो तो एक पांव बिना जूता या चप्पल पहनें एक चक्कर लगा लीजिए। किसी को भनक नहीं लगने वाली। दूसरों तक शिकायतें ले जाना मूर्खता है चूंकि आपकी चिंता विरलों को है। विकट या अप्रिय परिस्थिति में समाधान शिकायत करने से नहीं बल्कि सही दिशा में ठोस कार्य से निकलेगा। प्रतिकूल स्थिति का स्वयं सामना करने में सक्षम व्यक्ति शिकायतें नहीं करते।

शिकायती मुद्रा सर्वप्रथम उस व्यक्ति के मन को दूषित करती है जो इस भाव को प्रश्रय देता है। फिर यही नकारात्मक भाव दूसरों तक पहुंचा कर वह वातावरण को दूषित करेगा। शिकायतों के स्थान पर हृदय में सुखद प्रसंगों की प्रतिष्ठा की जाए तो जीवन सुखमय हो जाएगा। शिकायती स्वभाव वाला बाधाओं, अड़चनों में स्वयं को उलझा कर अकर्मण्य हो जाता है, अपनी ऊर्जा वह सकारात्मक दिशा में नहीं लगाता। वास्तव में, शिकायतें करने में उसे वही आनंद मिलता है जो कर्मठ व्यक्ति को कर्मरत रहने में।

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दैनिक जागरण के ऊर्जा स्तंभ में 10 मई 2020 को ‘‘शिकायती दृष्टिकोण’’ शीर्षक से प्रकाशित।

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