उपभोक्ता बादशाह न सही, बंधक बन कर न रहे

बाजार की शातीर निगाहों से बचे रहना आसां नहीं किंतु नितांत आवश्यक है।

बचपन में सुनी-पढ़ी एक कविता में तोतों को समझाया जाता है, ‘‘बहेलिया (शिकारी) आएगा, चुग्गा डालेगा, जाल बिछाएगा, तुम लोभ में फंस मत जाना!’’ तोते इन शब्दों को रट लेते हैं, दोहराते भी रहते हैं किंतु समझते नहीं। पहले तो शिकारी सहम जाता है, फिर ताड़ जाता है कि ये केवल बोलने वाले हैं। अंत में बेचारे तोते पकड़ लिए जाते हैं। यही हाल आज उपभोक्ताओं का है, वे बार-बार बाजार के दांवपेचों का शिकार होते हैं। नाना तिकड़मों और प्रलोभनों के साथ बाजारी शक्तियां जनजीवन पर हावी हैं।

इस परिप्रेक्ष्य में उक्त चेतावनी उपभोक्ताओं के मंथन और अमल में लाने योग्य है। खरीदारों के मन की पकड़ कारोबारी जगत को जितनी है उतनी मनोवैज्ञानिकों को भी क्या होगी। कुशल कारोबारी गंजों को कंघी बेचने का दावा नहीं करते, बेच डालते हैं। बाजारी हुनर का कमाल है कि मिक्सी, रसोई के अनेक उपकरण, कपड़े आदि इतने खरीद लिए जाते हैं कि कुछ के इस्तेमाल का नंबर ही नहीं आता तो कुछेक सीधे कबाड़ी के सुपुर्द हो जाते हैं। दोष कुछ हद तक तमाम चीजें बटोरने की सर्वव्यापी मानसिकता का है जिसका लाभ उठाने में बाजार को महारथ है। दुर्भाग्य है कि अनेक व्यक्ति दुनिया को कर्मस्थली नहीं, बाजार मानते हैं। खूब खर्चने की आदत बड़प्पन का नहीं, मूर्खता का परिचायक है।

बाजारी शक्तियों के चंगुल से कार्पोरेट जगत, यहां तक कि शासकीय महकमे भी मुक्त नहीं हैं। अपने हितों के अनुकूल नीतियां और नियम बनवाने में कारोबारी जगत बहुत आगे पहुंच चुका है। अधिकांश छोटे, मंझौले कारोबारी उच्च अधिकारियों के बाबत खासी व्यक्तिगत जानकारी होती है और उनसे सीधे या परोक्ष संबध रखते हैं। बेशक कारोबारी धनार्जन के लिए बाजार में बैठा है, यह उसकी आजीविका है। किंतु कारोबारी जकड़न तब चिंताजनक होना लाजिमी है जब उनके कृत्यों से समाज, पर्यावरण और आस्था के तानेबाने चरमराने लगें। कुछ समय पूर्व दिल्ली के रियल एस्टेट के आला प्रतिनिधियों ने अपनी बैठक में खरीदारों में भारी कमती आने, और उसके बाद कोरोना की मार के चलते एक विशेष निर्णय लिया गयाः क्यों न चार मंजिलों तक की इमारतों के वाशिंदों को प्रति घर अधिक एरिया, पार्किंग स्पेस और नकदी दे कर इमारत को बहुमंजिला करने के लिए उनकी सहमति ली जाए, अतिरिक्त निर्मित मकान बिल्डर के होंगे, सभी के पौ-बारह! उधर मीडिया को विश्वास में ले कर सरकार पर दबाव बनाया जाए कि रिहाइशी समस्या से निबटने का इससे बेहतर उपाय नहीं है। सर्वविदित है कि दिल्ली पहले ही भूकंप की दृष्टि से जोखिम की स्थिति में है। एक बड़े संवेदनशील क्षेत्र में बहुमंजिली इमारतों के निर्माण का हश्र आप अंदाज लगा सकते हैं।

दुर्भाग्य से यही स्थिति स्वास्थ्य क्षेत्र की है। कहने को मरीज या उसके परिजन को मर्ज के इजाज के तौरतरीकों की विस्तृत जानकारी का अधिकार है, उसे बताया जाए कि सर्जरी वांछनीय है तो उसमें भी क्या-क्या विकल्प हैं और यदि सर्जरी करानी ही नहीं तो दवाओं की तुलना में अस्थाई और दूरगामी लाभ-नुक्सान, खर्चे आदि किस प्रकार होंगे? व्यवहार में, गंभीर बीमारी में इमरजेंसी में पहुंचे रोगी या उसके परिजन से खंसोटी डाक्टर द्वारा पांच-दस कोरे कागजातों पर आनन फानन में हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं। इंटरनेट सेवा अदायगी में भी कमोबेश यही स्थिति है। प्रतिस्पर्धी कंपनी के ग्राहक तोड़ने के लिए अगला दाम घटाएगा, फिर दूसरा भी वही चाल चलेगा और अंत में सेवाएं जस की तस – काल ड्राप, अतिव्यस्त लाइनें, सिगनल मिलना ही नहीं, आदि। इस परिदृश्य में उपभोक्ताओं के अधिकारों की तो दूर, विकल्पों के चुनाव की गुंजाइश ही नहीं रह जाती। उपभोक्ता की हैसियत कारोबारी श्रृंखला में मोहरे तक सिमट जाती है।

उपभोक्ता को बरगलाने-फुसलाने के लिए कारोबारी जगत का नारा, ‘‘ग्राहक हमारे सर आंखो पर”, हमारे अस्तित्व का दारोमदार उन्हीं पर जो है – ऐलान भर था। व्यवहार में जब किसी दुकानदार से आप किसी खास ब्रांड की आइटम मांगे जो उसके पास न हो तो सीधे मना करने या यह बताने के कि अगली दुकान में वांछित वस्तु मिल जाएगी, वह आपके चाहे ब्रांड के नुक्स और अपने स्टाक के ब्रांड के फायदे बढ़ाचढ़ा कर गिनाएगा।

उपभोक्ता को बाजारी आक्रामक रुख से संरक्षित रखने और उसे अपने अधिकारों से रूबरू रखने के उद्देश्य से कन्ज़्यूमर इंटरनेशनल प्रतिवर्ष 15 मार्च की तिथि उपभोक्ता अधिकार दिवस बतौर आयोजित करता है ताकि वे बाजारी शोषण और अन्याय के मुक्त रह सकें। धीमे-धीमे उपभोक्ताओं के जागरूक होने के स्पष्ट लाभ दिखने लगे हैं। इलाज में लापरवाही बरतने वाले डाक्टरों के विरुद्ध कोर्ट में अनेक सुनवाइयां चल रही हैं, त्रुटिमय उत्पाद सप्लाई करने के आरोप में अनेक कंपनियों को दंड मिल रहा है। किंतु व्यापक स्तर पर ग्राहकों को न्याय मिलने की राह अभी लंबी है।

खानपान तथा अन्य सामग्रियों की पैकिंग में प्लास्टिक के बेतहाशा उपयोग से जनस्वास्थ्य पर पड़ती भीषण क्षतियों के चलते विश्व उपभोक्ता दिवस 2021 का फोकस प्लास्टिक से उत्सर्जित प्रदूषण पर है। कैंसर तथा कुछ अन्य बीमारियों के लिए उत्तरदाई प्लास्टिक के प्रयोग पर नकेल कसना अत्यावश्यक है। संप्रति समग्र प्लास्टिक उत्पादन का 40 प्रतिशत खाद्य पदार्थों की पैकिंग में प्रयुक्त होता है जिसे एकबारगी उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। जल संसाधनों में मौजूद सर्वाधिक कचरा प्लास्टिक होता है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक समुद्रों में मछलियां कम और प्लास्टिक ज्यादा होगा।

उपभोग के प्रसंग में, प्रत्येक खरीदारी से पूर्व सजग रहना होगाः क्या अमुक वस्तु वास्तव में काम की है। अमूनन पिछली पीढ़ी जो भी, जितना भी छोड़़़ कर जाती है वह नई पीढ़ी के लिए बला बन जाती है। अधिकता किसी वस्तु की उचित नहीं। समझदारी गैरजरूरी और अत्यावश्यक में विभेद करने की है।

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दैनिक नवज्योति के संपादकीय पेज पर 15 मार्च 2021 को प्रकाशित। ई पेपर के पेज का लिंक- https://epaper.navajyoti.net/view/7491/udaipur-city/4

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