कम बोलेंगे तो आपकी बात को ज्यादा तवोज्जू दिया जाएगा। फिर भी बकर–बकर करने वालों की कमी नहीं। जहां एक वाक्य से काम चलता है वहां तीन, चार या पांच बोलने, और खामख्वाह की तकरार से आप अपना भी समय खराब करते हैं, दूसरों का भी।
घर आए मित्र को ताजा लिखी कविता के एक अक्षर से आपत्ति थी। वे बोले, ‘‘इस स्थान पर ‘क’ स्वीकार्य नहीं, इसके बदले ‘च’ होना चाहिए’’। हालांकि कवि ने लिखने से पूर्व यथोचित विचार किया था, किंतु उन्होंने मित्र की बात का प्रतिकार नहीं किया बल्कि संशोधन के लिए उन्हें पेंसिल थमा दी। फिर दूसरे मित्र पधारे, उन्हें परिवर्तित ‘च’ नहीं जचा, इसके बदले उन्होंने ‘ट’ का परामर्श दे डाला। कविवर ने उनसे भी तकरार नहीं की, स्वयं संशोधन करने का संकेत किया। तीसरे मित्र आए, उनकी राय में ‘ट’ पूर्णतया अनुचित था, उनके अनुसार यहां ‘त’ होना था। उनसे भी विवाद नहीं किया गया, विनम्रता से सुधार के लिए पेंसिल थमा दी गई। जब सभी चले गए तो कविवर ने पुनः कविता में सबसे पहले वाला ‘क’ ही बने रहने दिया।
विवाद से किसी सर्वमान्य निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाता। यही विवाद का नकारात्मक पक्ष है। विवाद में दोनों जैसे तैसे स्वयं को सही ठहराते हैं, अंत में एक स्वयं को विजयी मान लेता है, कटुता दोनों हृदयों में रह जाती है। मंशा दूसरे की सुनने की हो, तभी दोनों पक्ष एक दूसरे के कहे पर खुले मन से गौर करेंगे, यह संवाद हुआ, जो इकतरफा नहीं होता। संवाद में दोनों ओर सदाशयता अनिवार्य है, एक दूसरे पर हावी होने का प्रयास वर्जित है। चीखने–चिल्लाने से न दूसरे की सुन पाएंगे न अंतर्मन की। दूसरे की बात गिराने की आतुरी के एवज में उसकी मंशा समझने पर ध्यान रहेगा तो आपसी गलतफहमियां ध्वस्त होंगी, करीबियां बढ़ेंगी और संबंध नहीं बिगड़ेंगे।
भाव जितना गहरे होंगे, शब्दों में उन्हें उडेलना उतना ही कठिन होता है। गहरी मित्रता या प्रेम के इजहार के लिए शब्द सदा कम पड़ते हैं, इसे समझना होता है। जगजाहिर किया जाता प्रेम प्रेम नहीं, स्वयं को गलतफहमी में रखने का माध्यम है, शु़द्ध नौटंकी है, ताकि सनद रहे।
तथापि शब्दों को लोकजीवन में विचार, भाव और मंतव्य दूसरे तक पहुंचाने का सरल, सहज और कारगर साधन माना जाता है। शब्द शक्ति का प्रतिरूप भी हैं। इन्हें साध चुके व्यक्ति जहां इनके समुचित प्रयोग से आहत, व्यथित व्यक्ति के शरीर और मन को राहत पहुंचाते हैं वहीं इन्हें अस्त्र बना कर दूसरों को आहत भी करते हैं। शब्द भ्रामक हो सकते हैं, इसीलिए कहा गया है, लोगों के शब्दों पर मत जाइए, उनके आचरण और व्यवहार से उन्हें बेहतर समझा जा सकता है।
शब्दों का आदान–प्रदान कम या बिल्कुल न होने की स्थितियों में संप्रेषण कम नहीं होता। गूंगे–बहरे या एक दूसरे की भाषा से अपरिचित इशारों या भावभंगिमा से अपने भाव साझा करते हैं। भौतिकी के अनुसार प्रत्येक उच्चारित शब्द शुद्ध ध्वनि है, जो ऊर्जा का एक प्रतिरूप है। प्रत्येक अनावश्यक शब्द बोलने का अर्थ है ऊर्जा का नाहक क्षरण। कम बोलेंगे तो अवांछित, अनर्गल शब्द मुंह से नहीं निकलेंगे। यह जानते हुए सुधी जन मौखिक विवादों में नहीं पड़ते। उनका थोड़ा बोला सारगर्भित होता है जिसे लोग सर आंखों पर रखते हैं। सोच जितना संयत होगी, शब्दों की आवश्यकता उसी अनुपात में कम होगी।
ध्वनि की प्रकृति क्षणिक है; इसके विपरीत, परम सत्य की श्रेणी का मौन चिरकालीन, स्थाई अस्मिता है। ‘मौन’ प्रभु की भाषा है। कम बोलने वाला अपने अंतःकरण से बेहतर जुड़ा हुआ तथा अंदुरुनी तौर पर अधिक सशक्त होता है। एमिली डिकिन्सन की राय में, कदाचित कुछ न कह कर हम बहुत कुछ कह डालते हैं। ज्यादा बोलना असुरक्षा भाव दर्शाता है, आत्मविश्वास से सराबोर व्यक्ति संयत और मौन रहेगा। अंतर्मन के कोलाहल, ऊहापोह, हलचल, भय, ईष्र्या नियंत्रण में रहेंगे तभी प्रभु की आवाज सुनने में सक्षम होंगे।
शब्द बहुधा मनमुटावा या कलह का कारण बन कर मन को बोझिल बनाते हैं। अपने चित्त को सकारात्मक मुद्रा में रखने के लिए बोलने की तीन स्थितियों में भेद करना होगाः कहां आपको स्पष्टीकरण देना है, कहां संक्षिप्त उत्तर देना है और कहां चुप्पी साधे रखनी है। एल्बर्ट हब्बर्ड कहते हैं, ‘‘जो आपकी चुप्पी नहीं समझता वह आपके शब्दों को क्या समझेगा?’’
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तनिक संक्षिप्त रूप में यह आलेख का नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कॉलम में 24 मार्च 2020 को प्रकाशित हुआ। ऑनलाइन संस्करण का शीर्षक, ‘जानिए समाज की किन सामग्रियों से विचलित होती है ईश्वर की साधना’। लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/know-important-and-spritual-thoughts-of-life-73909/
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Power of silence and concept of conservation of energy annotated very nicely. Words are packs of energy, which may cure or hurt. Hence these should be used carefully while conversing with others. Thank you Sir.
‘The power of silence’ explained so beautifully.