छांव चाहिए तो धूप भी सहनी पड़ेगी

जिंदगी वरदान है या अभिशाप? यह तो नहीं हो सकता कि फूल हैं तो कांटें नहीं हों। एक ही परिस्थिति एक जन के लिए बला बन जाती है तो दूसरा सहजता से बेड़़ा पार कर लेता है। टंटा सोच का है।

सुख का अर्थ प्रतिकूल परिस्थियों की अनुपस्थिति नहीं है। जीवन धूप-छांव का खेल है; जब तक जीवन है कठिनाइयां और बाधाएं रहेंगी, इन्हें स्वीकार करना होगा। बाधाओं का आकार और स्वरूप संपन्न किए जा रहे कार्य की प्रवृत्ति पर निर्भर होगा, बाधाओं से बचने का एकमात्र उपाय है कोई कार्य आरंभ ही न किया जाए।

एक कवि ने कहा, जिसे प्रकृति अधिनायक की भूमिका निभाने के लिए तैयार करती है उसके मार्ग में बड़़े-बड़े, उग्र अवरोध खड़े कर देती है। कड़ी, दुष्कर परिस्थितियां से गुुजरते गुजरते ही वह तराशा, निखारा और संवारा जाता है, परिष्कृत और परिमार्जित होता है। तपिश और शीत लहरों के थपेड़े और पटकियां कर्मशील व्यक्ति को जीवन का मर्म समझाती हैं। उसे जिंदगी के रंग समझ में आते हैं। इसीलिए सुधी जिज्ञासु जन प्रभु से सहज, निर्बाध जीवन की नहीं बल्कि कठिनाइयां और चुनौतियों से निबटने की शक्ति और धैर्य की याचना करते हैं। ठहरे हुए समुद्र में नाविक सूझबूझ और कौशल नहीं सीखता। न ही समुद्री यान बंदरगाह में खड़े होने के निमित्त निर्मित किए जाते हैं।

विषम प्रतीत होती परिस्थितियों को समस्या मान कर घुटने टेकने वाला व्यक्ति चिंता और व्याकुलता के भंवर में जकड़ जाएगा, बाहर निकलने का मार्ग न सूझने पर वह समाधान से और दूर हो जाएगा। किसी मामले में सफल न होने पर जहां एक व्यक्ति हताश हो जाता है, वहीं दूसरा जानता है कि हार तभी होती है जब हार मान ली जाए, खेल सोच का है। कर्म सिद्धांत के अनुसार कठिनाइयों-कष्टों से छुटकारा नहीं मिलेगा, इन्हें भोगना ही होगा। सकारात्मक सोच से कठिनाई की उग्रता को निराकृत किया जा सकता है। समस्या से रूबरू नहीं होंगे तो ‘समस्या हम पर हावी हो जाएगी।

प्रभु की योजना में अवरोधों का उद्देश्य आपको क्षतविक्षत करना नहीं बल्कि आपको सशक्त करना है। दुष्कर क्षणों में हम अभिनव संभावनाएं तलाशते हैं, स्वभावगत त्रुटियों की पुनरीक्षा करते हैं। जीवन के कुछ अहम आयाम दुष्कर दौर में ही सीखे जाते हैं। तूफान की भांति कठिनाइयां ज्यादा देर नहीं टिकतीं। विषम परिस्थितियों के प्रति कृतज्ञ रहें, उनके कारण आपने अपने भीतर विद्यमान उस सुषुप्त सामर्थ्य को जाना जिसके प्रति आप अभी तक अनभिज्ञ थे। हाथ पर हाथ धरे रहने के बदले आपने उस सामर्थ्य और प्रतिभा को प्रयुक्त किया और कठिनाइयों को शिकस्त देने में सफल हुए।

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इस आलेख का तनिक संक्षिप्त प्रारूप दैनिक जागरण के ऊर्जा कॉलम (संपादकीय पेज) में 22 अगस्त 2022, सोमवार को प्रकाशित हुआ।

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One thought on “छांव चाहिए तो धूप भी सहनी पड़ेगी

  1. बहुत बारीक बात पर लेख आधारित है, दुख है तो सुख भी है; धूप है तो छाया भी है. जरूरत है तो यह समझने की कि न धूप अस्थायी है न छाया.
    लेखक का धन्यवाद.

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