बूढ़े होगे तुम, मुझे क्या हुआ! मैं कितने सालों से बता रहा हूं, बुढ्ढ़ा वह है जो मुझसे पंद्रह साल बड़ा है! वक्त की नजाकत और इसकी रफ्तार को समझें।
वक्त की नजाकत और इसकी रफ्तार को बूझना हर किसी के बस की नहीं। किसी का कटता नहीं, किसी का गुजरता नहीं। पचपन-साठ पार होने पर लगता है, वक्त सरक नहीं रहा, तेजी से दौड़ रहा है। और जो-जो सत्तर पर पहुंच चुके हैं उनकी उम्र उनसे न पूछें, यह हिसाब आप रखें। वे तो अगले ही साल पांच साल बढ़ा कर बोल देंगे। कुछेक शर्त भी लगा लेंगे।
ढ़ाई हाथ की काया को ठीक रखें: ठीक रहने का नियम नंबर एक यह है कि जो भी ऊटपटांग, आड़ा-तिरछा दिखे उससे खिन्न होना बंद कर दें। ‘‘संसार सदा इसी भांति चलता रहा है और इसी भांति चलता रहेगा’’। गुलजार ने कहा, बदलता कुछ नहीं, बस बचपन की जिद समझौतों में बदल जाती है। पिताजी की हिदायत रहती थी, बस अपने ढ़ाई हाथ की काया को ठीक रखें।
समय की गति अनिश्चित, और तर्क से परे है। जिसने समय के चलायमान स्वरूप को बूझ लिया वह आज की सुख-समृद्धि या प्रशंसा पर नहीं इतराएगा; न ही आज के कष्ट, बाधाएं, कटाक्ष, और निंदा उसे विचलित करेंगे। वह आश्वस्त रहता है कि परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, किसी भी क्षण पलट सकती है। इस समझ के कारण वह दूसरों के प्रति दुराव, शत्रुता या वैमनस्य नहीं सहेजेगा, बल्कि उसके हृदय में सभी के प्रति सद्भावना और प्रेम बरकरार रहता है। वर्तमान को विभिन्न परिस्थितियों तथा पिछले कर्म की नैसर्गिक परिणति मानते हुए संयत व्यक्ति दूसरों को कमतर नहीं आंकता और उसे समाज से अनवरत सम्मान और प्रेम मिलता है। इसके विपरीत, मध्यम सोच के व्यक्ति में आज की संपन्नता, प्रसिद्धि या जयजयकार से अहंकार समा जाता है। यही सोच उसके पतन का कारण बनती है।
संबंधों को सतत सहजना होता है: संबंधों को डांवाडोल करते समय का खेल देखें। कभी एक लोटे से सुबह निबटने वाले एक दूसरे के खून के प्यासे बन जाते हैं। जहां जाए बिना मन नहीं लगता था, वहां का रास्ता भूल जाते हैं। जिस प्रियजन के न रहने पर जीना असंभव था, उससे बिछुड़ने के वर्षभर में व्यक्ति का आचार, व्यवहार सामान्य हो जाता है, तथा दिनचर्या पूर्ववत।
समय का कोई मोल नहीं, किंतु इससे बहुमूल्य कुछ नहीं। जिसने यह जान लिया, समय उसे अनमोल बना देगा। समय से कीमती कुछ है तो वही जिसे हम समय देते हैं। यह राजा से रंक तक सभी को बराबर उपलब्ध है। समय कम होने या न मिलने की शिकायत उन्हें अधिक रहती है जो इसका सही उपयोग नहीं करते। शिखर तक वे पहुंचे जिनके पास समय के उपयोग की स्पष्ट योजना रही और जिन्होंने समय नष्ट नहीं किया। समय का उपयोग कैसे करें, यह निर्णय व्यक्ति को विनाश की ओर प्रशस्त कर सकता है और उसे धन्य भी कर सकता है।
संगत को खंखालें: जिनके सानिध्य में हम समय बिताते हैं, जिन विचारों की मनमंदिर में प्रतिष्ठा करते हैं, उसी अनुरूप हमारी दिशा और नियति बन जाती है। कहा गया है, जिन सरीखा बनना चाहते हैं उनकी संगत में चले जाइए। जरूरी नहीं उनसे मेलजोल हो। मन-दिल से उनसे जुड़ें; वैसा सोचें-करें जैसा वे करते हैं। इसीलिए सभी पंथों में सदाचारियों और श्रेष्ठजनों की संगत में समय बिताने की बात कही जाती है।
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इस आलेख का संक्षिप्त रूप दैनिक जागरण के ऊर्जा कॉलम (संपादकीय पेज) में ‘‘समय का बोध’’ शीर्षक से 22 अक्टूबर 2023, रविवार को प्रकाशित हुआ।
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