डिग्रियां, तगमे, फीतियों, मेडलों, अलंकरणों की चाहत से लोग विक्षुप्त हो रहे हैं। जिनका समूचा ध्यान बाहरी छवि निखारने और वाहवाही बटोरने में रहेगा क्या वह कार्य में चित्त लगा सकता है? उल्टा टोप, उल्टी जैकेट या नई अजीबोगरीब डिजाइन वाली शर्ट का फोटो फेसबुक में डाल कर वाहवाहियों की झड़़ी न लगने से लोग बीमार पड़ रहे हैं। बेचारे नहीं जानते, प्रसिद्धि मिलती है तो मनोयोग से अभीष्ट कार्य करते रहने से, वाहवाही की तुष्णा से नहीं। आत्मिक तुष्टि भी तभी मिलती है।
उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सराहना की अभिलाषा स्वाभाविक है और न्यायोचित भी। प्रशंसा और प्रोत्साहन व्यक्ति को नैतिक संबल देते हैं। आध्यात्मिक तौर पर सुदृढ़़ व्यक्तियों की बात अलग है, सामान्य व्यक्तियों में अलंकरण उत्साह का संचार करते हैं तथा भविष्य में बेहतरीन कार्य संपन्न करते रहने की प्रेरणा देते हैं। शासकीय या अन्य संगठनों, संस्थाओं आदि द्वारा पुरस्कार और अलंकरणों से सम्मान दिए जाने का यही आशय रहता है। असाधारण कार्य के लिए प्रशंसा न मिलने से लगनशील और कर्मठ व्यक्ति का मनोबल गिर सकता है।
जहां बोआ ही नहीं वहां फसल काटने की लालसा
वाहवाही योग्य कार्य करने वालों से उलट एक बड़ा वर्ग उनका है जिन्हें छिटपुट कार्यों के लिए या बिना कुछ किए-धरे मान्यता चाहिए, यह मानसिक विकृति है। जिस खेत में बीज नहीं बोया वहां फसल काटने की चाहत अनैतिक तथा प्राकृतिक विधान के प्रतिकूल है।
देश, समाज, परिवार में विशिष्ट भूमिका और पहचान का अभाव व्यक्ति को भावनात्मक स्तर पर उद्वेलित कर सकता है बल्कि उसके अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है। फिर भी उसे नहीं कौंधता कि सामान्य से अधिक सोचने, करने, बनने से ही श्रेष्ठता अर्जित की जाएगी तथा सराहना उसी का प्रतिफल है। लीक पर चलने का अभ्यस्त व्यक्ति नामी होटल में वर्षगांठ समारोह में पेस्ट्री से लिपे चेहरे, पर्यटन स्थल में नौकाविहार की सेल्फी, विडियो या मात्र नया परिधान या विशिष्ट केशसज्जा वाला चित्र सोशल मीडिया में डालने से मिलते आनंद को परम सुख मानता है। यह प्रवृत्ति स्वस्थ, प्रगतिशील सोच का परिचायक नहीं है। ऐसी प्रस्तुतियों को निहारते, ‘लाइक’ करते किरदार भी उसी रंग में ढ़ले होते हैं। लिफाफे पर नाम के साथ डाक्टर, इंजीनियर, आएएस, आईपीएस आदि नहीं लिखने से कइयों की नींद उड़ती देखी जाती है। बेचारे नहीं समझते कि पदवियां शख्यिसत का पैमाना नहीं होतीं। इनसे प्राप्त लोकप्रियता न टिकाऊ होगी न ही उन्हें आंतरिक स्तर पर समृद्ध करेगी।
प्रसिद्धि बनाम लोकप्रियता
प्रसिद्धि या दूरगामी छवि स्वयं में उद्देश्य नहीं हो सकती, यह तो व्यक्ति द्वारा निस्स्वार्थ भाव से किसी वृहत्तर योजना के अनुसरण में एक स्पष्ट दिशा की ओर अविरल चलते रहने का प्रतिफल है। मान्यता, पुरस्कार व अलंकरण की चाहत से निष्पादित कार्य से मिली उथली लोकप्रियता उच्चकोटि की नहीं होती। ऐसा व्यक्ति उस संतुष्टि और तृप्ति से वंचित रहेगा जो मनोयोग से कार्य करने वालों के लिए सुरक्षित हैं।
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आलेख का संक्षिप्त रूप पुरस्कार की लालसा शीर्षक से दैनिक जागरण (संपादकीय पेज, ऊर्जा कॉलम), 20 फरवरी 2022 रविवार को प्रकाशित हुआ।
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लेखक ने एक अहम मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है जो तारीफेकाबिल है। उन्होंने उस प्रशंसा और सस्ती लोकप्रियता का रहस्य खोला है जो सतही और नाटकीय तरीकों से हासिल की जाती है।