साथी नहीं, असल दोस्त चाहिएं जीने के लिए

मित्रता

दोस्त ही हैं जो जिंदगी को जीने लायक बनाए रखते हैं, अन्यथा जीवन सूना हो जाएगा। दोस्ताना भाव पति/पत्नी, भाई, बहन, बच्चों, आदि के बीच भी नहीं होंगे तो वे संबंध ढ़ह जाएंगे।

राम (सक्सेना)- बलराम (गुमास्ता) दोनों ने भोपाल के उसी ऑफिस के तीसरे मित्र को रायपुर में उसके भाई के बाबत टेलीग्राम थमाया, लिखा थाः ‘‘बृजेश डी.के. अस्पताल रायपुर में गंभीर हालत में भरती हैं, तुरंत पहुंचें।’’ माजरा कुछ भी हो सकता था। टेलीग्राम पर बगैर प्रतिक्रिया जाने उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ हम दोनों में से कौन चलेगा?’’ जवाबी चेहरे में उभरी शंका का समाधान भी स्वयं पेश कर दिया गया, ‘‘उसका इंतजाम हो गया है, राउतराय भाईसाहब से चैक ले लिया है, रास्ते में कैश उठा लेंगे। अब समेटो, ढ़ाई घंटे बाद ट्रेन है।’’ उसे राहत मिली।

यह नवंबर 1984 की वास्तविक घटना है। उन दिनों भोपाल शहर की सरहद करोंद से परे नबी बाग के उस समूचे ऑफिस की फिजाएं तीनों की अंतरंग दोस्ती के किस्सों से सराबोर रहतीं। इन 37 सालों ने उनकी घनिष्ठता को गहराया है और सच्ची दोस्ती की शास्त्रीय परिभाषा ‘‘दोपहर बाद की, हौले हौले अंत तक बढ़ती रहती छाया की भांति’’ की पुष्टि की है। बता दूं, उस तिगड़ी का तीसरा शख्स यही लेखक है।

दोस्त हमारी धड़कन और सरहदें जानता है, उसे अपनी चिंताएं बताई नहीं जातीं। संकट में उससे मांगना नहीं पड़ता, जो उचित है वह बिनमांगे पेश करता है। उसे आप सुबह 4 बजे फोन खटका सकते हैं, वह बताता है कि चेहरा गंदा हो रखा है, शर्ट का बटन टूटा है या जूते का फीता खुला है। सच्चा दोस्त वह कतई नहीं जो फर्राटेदार बाइक, नई लग्ज़री गाड़ी या स्टाक-शेयर खरीदने के लिए उकसाए, कर्ज दे या दिलवाए। दोस्त वह है जो इन मदों के लिए मदद देते हाथ थाम ले, हां शादी-मकान, इलाज जैसी जरूरतों के लिए दिल खोल दे; जिसके घर का रास्ता कभी सुदूर नहीं हो; जो आपको झकझोर सके कि तफरीह के लिए नहीं, बीमार मां को देखने जाना है। आपकी तकलीफ वह तब भी भांप लेता है जब आप दुनिया को हंसमुख चेहरे से बेवकूफ बना रहे होते हैं। आंखे मूंदे हामी मिलाने वाले साथी हो सकते हैं, दोस्त नहीं। प्लूटार्क ने कहाः मुझे वह दोस्त नहीं चाहिए जो मेरे मुंडी हिलने पर वह भी हिला दे, ऐसा मेरी परछाई बेहतर कर लेती है।

दोस्ती की ताकत

दोस्ती की प्रचंड ताकत की बुनियाद ढ़ाई आखर का ‘प्यार’ है जो वह सब करा सकता है जो किसी पावर के बस की नहीं। मित्रता की अपार शक्ति से फायदा लेने के मकसद से सरकारी, पेशेवर, कारोबारी सभी संगठन एक दूसरे का हाथ थामते हैं; सभी राष्ट्र पड़ोसी व अन्य देशों से मैत्री और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश करते हैं।

मित्रभाव में दुनिया के विभिन्न पंथों, समुदायों, राष्ट्रों और संस्कृतियों के बीच मतभेद पाट कर शांति कायम करने की सामर्थ्य है, संयुक्त राष्ट्र 2011 से प्रतिवर्ष 30 जुलाई का दिन अंतर्राष्ट्रीय मैत्री दिवस के रूप में मनाता है, भारत में तथा कई अन्य देशों में यह दिवस पहली अगस्त को मनाते हैं। मैत्री बढ़ेगी तो आपसी सौहार्द और विश्वास पुख्ता होगा जो आज के हालातों में खासकर जरूरी है। मैत्रीपूर्ण संबंध समस्त मानवजाति के कल्याण की बुनियाद है। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के अनुसार दोस्ती ही एकमात्र सीमेंट है जो पूरी दुनिया को एकजुट रख सकता है।

जीने के लिए कंधा चाहिए, इसके बिना गुजारा नहीं। दोस्त चूंकि हमारी रग रग जानता है, मूर्खतापूर्ण व्यवहार सहित हम उससे सब कुछ शेयर कर सकते हैं। अपने दुख-सुख, करुणा, आक्रोश, तकलीफें बतियाने को जिनके पास कोई नहीं वे अभागे हैं। उन्हें अपने भीतर झांकना होगा कि चूक कहां है। जिन्हें शिकायत है कि आजकल सही दोस्त कहां मिलते हैं, उनसे अर्ज है वे स्वयं किसी का अच्छा मित्र बन कर देखें।

अपने सरोकार शेयर किए बिना गुजर नहीं। अपने आप में सिमटे रहने वाले दिल व मन बोझिल रहते हैं। दूसरों से संवाद बनाने और उनके हित की प्रवृत्ति ढ़ह रही है, बात करगें तो जिज्ञासावश कि वे क्या कर रहे हैं। शहरों-कस्बों में खासकर मंशाएं और सरोकार शेयर नहीं करने की प्रवृत्ति से लोगों को अकेलापन खाए जा रहा है। मानसिक बीमारियों से निजात पाने के लिए अमरीकी पत्रकार रॉबर्ट ब्रॉल्ट ने सुझायाः ‘‘मनोरोगियों को मनोचिकित्सक की कम, मित्र की ज्यादा जरूरत रहती है।’’

मोबाइल फोनों, कंप्यूटरों तथा अन्य संचार उपकरणों के व्यापक प्रसार और उपयोग से मित्रता के मायने कइयों के लिए बदल रहे हैं। युवा पीढ़ी मित्र का अर्थ फेसबुकी मित्र समझ लेते हैं, यानी कोई भी आयाराम गयाराम जो कंप्यूटर पर एक बटन क्लिक करते ही ‘‘मित्र’’ बन जाए। भला हो फेसबुक प्रबंधकों का, जिन्होंने मित्रों की अधिकतक संख्या 5,000 तय की है, अन्यथा उनके दोस्त कई हजारों में होते। जमीनी सच्चाई यह है कि दोस्त एक-दो से ज्यादा हों तो ईमानदारी से निभाना आसान नहीं, अपन तो 10-15 नामों से गड़बड़ा जाएं। फेसबुकी दोस्ती झूठ बोलने की परिपाटी के अनुकूल है। अनेक अध्ययनों ने पुष्टि की है कि इंटरनेट संवादों में 60 से 75 प्रतिशत झूठी बातें लिखी जाती हैं। दोस्त तो एक-दो काफी हैं चूंकि एक अकेला गुलाब आपकी जिंदगी को महका देता है।

मित्रों बिना खुशनुमां, जीवंत, उमंगपूर्ण जीवन गुजारना दुष्कर होगा। साथ ही, अन्य संबंधों की भांति दोस्ती की मरम्मत जरूरी है। सोच यों रहे विनम्रता सभी से, घनिष्ठता कुछ से और पूर्ण विश्वास दो-तीन पर। तभी जिंदगी सुखमय बीतेगी।

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इस आलेख के कुछ अंश भिन्न प्रारूप में 2 अगस्त 2015 के दैनिक नेशनल दुनिया में प्रकाशित हुए थे।

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