आप स्वेच्छा से दुनिया में नहीं आए, जा कैसे सकते हैं?

 

अपने अंतरंग मित्र (डा0) गिरधारी नौटियाल बचपन में अपनी एक कविता सुनाते थे, जिसकी पहली पंक्ति है, ‘‘जीवन कभी-कभी जाने क्यों, विषधर बन जाता है?’’ दशकों बाद जैन मुनि तरुण सागर से वैसी ही सुनी, ‘‘ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जिसने अपने जीवनकाल में कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास न किया हो, या ऐसा विचार न बनाया हो।’’ कुल मिला कर सोच सही ढ़ाल दी जाए – दिलचस्प यह है कि यह क्षमता हर किसी के पास है – तो जीवन खुबसूरत, अर्थपूर्ण हो जाएगा।

जिजीविषा यानी कैसे भी जीवित रहने का संवेग अथाह शक्तिशाली होता है। जान पर मंडराते खतरे को देख कर जिंदगी को प्रतिदिन कोसता अकर्मण्य व्यक्ति भी गजब की स्फूर्ति से सराबोर हो जाता है। प्राण बचाने की खातिर लोगों ने ठिकाने और धर्म तक बदल डाले। जीने की प्रबल चाहत तब अधिक मुखर होती है जब भविष्य की एक स्पष्ट रूपरेखा दिलोदिमाग में छाई हो। दूसरे छोर पर एक वर्ग उनका है जो अज्ञानतावश प्रतिकूल परिस्थितियों में हाथ पांव छोड़ देते हैं।

प्रचंड तूफान ज्यादा समय नहीं टिकता किंतु नैराश्य में डूबे व्यक्ति के दिल में गहरे बैठ जाता है कि उबरने के सभी द्वार बंद हो गए हैं। उसे चहुदिक दिखते झंझटों से निजात पाने के लिए प्राण त्यागने से इतर कुछ नहीं सूझता। प्रश्न एक ही परिस्थिति की अलग-अलग विवेचना का है। ‘‘इस धंधे या ठैया में कुछ नहीं रह गया’’ इस सोच से अभिप्रेरित एक व्यक्ति जब समर्पण कर देता है तो उसी पृष्ठभूमि का दूसरा व्यक्ति उसी धंधे या कारोबार को अधिग्रहीत (टेक ओवर) करते हुए सुंदर भविष्य निर्मित करता है।

हेनरी फोर्ड ने कहा, जब आप आश्वस्त होते हैं कि आप फलां कार्य कर सकते हैं, या यह कार्य कदापि नहीं कर सकते, दोनों मामलों में आप सही होते हैं। जिसने ठान ली उसमें दम है, वह निस्संदेह कार्य पूरा करेगा। इसके विपरीत, जिसने मान लिया कि जो कार्य किसी से न हुआ या पहले कभी नहीं हुआ वह अब नहीं हो सकता, उसने अपनी हार सुनिश्चित कर ली। खेल नजरिए का है।

ऐसा नहीं कि संयत, विवकेशील व्यक्ति के जीवन में नैराश्य, बेबसी और घोर असमंजस्य के क्षण नहीं आते। जैनमुनि तरुण सागर कहते थे, विरले ही ऐसे होंगे जिन्होंने जीवन में कभी आत्महत्या का प्रयास नहीं किया या ऐसा गंभीरता से नहीं सोचा हो। आवेश में नहीं बहने वाला प्रतिकूल हालातों की अस्थाई प्रवृत्ति को जानते हुए उचित मार्ग से विचलित नहीं होता, हताशा उसके समीप नहीं फटकती। उसे ज्ञान रहता है कि विफलता सफलता का विलोम नहीं, सफलता की पूर्वावस्था है। सफलता की मशाल थामे आगे चलते, दूसरों का मार्ग रौशन करते व्यक्ति के अतीत का विश्लेषण करें: उसका अतीत निर्बाध सीधा-सपाट नहीं रहा। उसने अधिसंख्य व्यक्तियों की भांति विकट समस्या के समक्ष घुटने नहीं टेके। उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त रहने के लिए अतीत की चूकों से सीख ले कर उन्हें न दोहराने का संकल्प लेना होगा, वैसे भी आगामी पारी में आप नौसिखिए नहीं रहते।

शास्त्रों में हजारों योनियों के बाद दुर्लभ मानव जीवन मिलना बताया गया है, मनुष्य जन्म के लिए देवता भी तरसते हैं। अथाह सौंदर्य, छटाओं और अवसरों से परिपूर्ण दिव्य जीवन हमें खुल कर जीने के लिए मिला है। मन को अभ्यस्त करें कि अतीत के अप्रिय प्रसंगों में लिपटे रहने के बदले जीवन में उपलब्ध रंगों का आस्वादन लेना है। रामधारीसिंह दिनकर ने लिखा, ‘‘दुनिया में जितने भी मजे बिखरे हैं उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है। वह चीज भी तुम्हारी हो सकती है जिसे तुम अपनी पहुंच के परे मान कर लौट रहे हो।’’

फूल-कांटे, वसंत-पतझड़, सुख-दुख, साथ-साथ रहेंगे। प्रतिकूल परिस्थितियों के समक्ष समर्पण न करने की कर्मशील व्यक्ति की सोच उसके जीवन को बोझ नहीं बनने देती। प्रकृति उन्हीं को पटकती-थपेड़ती है, जिन्हें वह निखारने, तराशने का पात्र मानती है। सीएस लीविस की राय में, ‘‘चुनौतियां व्यक्ति को असाधारण नियति के लिए सुसज्जित करती हैं।’’ याद रहे, कठिन राहें अक्सर शानदार मुकामों तक पहुंचाती हैं।

देर सबेर हर किसी को दुनिया से कूच करना है। आप स्वेच्छा से यहां नहीं आए, स्वेच्छा से कूच करना नैतिकरूप से अनधिकृत होगा। और फिर, अपनों को दुखी करते हुए जाएं या उनके लिए मधुर, प्रेरणादाई स्मृतियां छोड़ कर, यह तो आपके हाथ में है।

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यह आलेख 22 सितंबर 2020 के नवभारत टाइम्स के संपादकीय पृष्ठ के स्पीकिंग ट्री कालम के तहत, ‘अतीत से सीख कर अपनी उन्नति का मार्ग बना सकते हैं’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। आनलाइन संस्करण में शीर्षक है, ‘‘इसीलिए कहा गया है कि प्रतिकूल परिस्थितियां हमें बहुत कुछ सिखाती हैं’’। लिंक आनलाइन संस्करणः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/bad-situation-is-the-best-teacher-85538/

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