जिस मुकाम पर आप आज हैं, वहां पहुंचने में सैकड़ों जाने-अनजाने व्यक्तियों, संगठनों का हाथ रहा है। यदि आप इनके प्रति शुक्रिया महसूस करने की आदत बनाते हैं तो आपकी जिदंगी स्वस्थ व खुशनुमा गुजरेगी। जो लोग जीवन को तोहफा मानते हैं, वे मन, शरीर व भावना से अधिक स्वस्थ रहते हैं। फिर भी कृतज्ञता का भाव बनाए रखने के लिए अहंकार छोड़ना जरूरी है।
विज्ञान, राजनीति, खेल, किसी भी क्षेत्र में बुलंदियां उन्हीं लोगों ने हासिल कीं जिनमें कृतज्ञता का भाव रहा। अलबर्ट आइंस्टीन प्रकृति के अनुपम उपहारों की खूब सराहना करते थे। अंतराष्ट्रीय बंधुत्व बढ़ाने में कृतज्ञता की भूमिका को ध्यान रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के मेडिटेशन ग्रुप ने प्रतिवर्ष 21 सितंबर को ‘विश्व कृतज्ञता दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया। इससे उन्हें सम्मान मिलेगा जिन्होंने वैश्विक मानववाद के क्षेत्र में योगदान दिया। इस दिन व्यक्ति, परिवार व समाज के स्तर पर आभार और धन्यवाद की परिपाटी को प्रोत्साहित किया जाता है।
हमारी संस्कृति शुरू से कृतज्ञता प्रधान रही है। माता-पिता, गुरु, परिवार, समाज, समुदाय के वरिष्ठजनों के प्रति आभार प्रकट किया जाता रहा है। सबसे ऊपर स्थान है मां का। कोई हमारी अमानत सुरक्षित लौटाता है तो उसे धन्यवाद दिया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में मनुष्यों से परे अन्य जीवजंतुओं और प्रकृति के प्रति भी आभार प्रदर्शित करने का विधान है। इन दिनों चल रहा श्राद्ध पक्ष पितरों के प्रति आभार ज्ञापन का रूप है। पूर्वजों को तर्पण, फूल अर्पित कर हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। उनकी कृपा बनी रहने की प्रार्थना करते हैं। यहूदियों की धारणा है कि जो कुछ भी हमें मिलता है, प्रभु की इनायत से। अनुयायियों को प्रभु का अहसानमंद रहना चाहिए। ईसायित के प्रमुख स्वर कहते हैं- आभार धर्म का असल रूप व ईशु की मौजूदगी को समझने का जरिया है। कुरान कहती है- अहसान मानने वालों को हमेशा मिलता रहेगा। रमजान का व्रत का महीना अल्लाह के शुक्रिया के लिए है।
कृतज्ञता के दिग्गज कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट एमंस आभार को ऐसा सायास काम मानते हैं जो आपसी संबंध मजबूत बनाता है। आभार उजागर करने वाले उन्मुक्त और नम्र रहते हैं। अहसानफरमोश लोग एकाकी और निराश हो जाते हैं। कृतज्ञता का महत्व अनेक विद्वानों ने उजागर किया है। दार्शनिक सिसरो की मान्यता थी कि कृतज्ञता न केवल सबसे बड़ा मानवीय गुण है बल्कि अन्य खूबियों का भी जनक है।
जब हम उन चीजों की अधिक लालसा रखते हैं जो हमारे पास नहीं हैं, तो उनसे खुशियां मिलनी बंद हो जाती हैं जो हमारे पास हैं। ओप्रा विन्फ्रे का कहना है- उनके प्रति आभार महसूस कीजिए जो आपके पास है, और अधिक मिलेगा। जो नहीं है उसके पीछे भागेंगे तो कभी ज्यादा नहीं मिलेगा। शुक्रिया जाहिर करने की आदत बना लें। खुशनुमा सफर की शुरुआत हो जाएगी।
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नवभारत टाइम्स, 1 अक्टूबर 2014 कोे संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित।
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