चले बिना गुजर नहीं, किंतु उससे जरूरी है, पता हो किधर जाना है

क्या आपने नियत क्षमता से बहुत कम चली हुई, नई सी दिखती मिक्सी, सिलाई मशीन, मोटर साइकिल या अन्य उपकरण को कबाड़़ में बिकते देखा है? इन उपकरणों की बेहाली इसलिए हुई चूंकि इन्हें चलाया नहीं गया! हमारे शरीर की भी यही नियति है। मन और शरीर को सदा सक्रिय रखना होगा।

 

बैठे ठाले नहीं चलेगा: आनंद, शांति और तुष्टि उसी के जीवन में होगी जो निरंतर गतिमय है। ‘गति’ सृजनात्मकता और उन्नति का पयार्य भी है। गति नहीं होगी तो शरीर जड़ तथा मन नीरस और बोझिल हो जाएगा। इसीलिए मार्टिन लूथर किंग ने कहा, ‘‘आप उड़ नहीं सकते तो दौड़ें, दौड़ नहीं सकते तो चलते रहें, चल भी नहीं सकते तो रेंगें। शास्त्रों में उल्लिखित आह्वान, ‘‘चरैवेति चरैवेति’’ से अभिप्राय है कि जीवंतता के लिए शरीर और मन को सदा सक्रिय तर्ज में रखा जाए।

स्वस्थ जीवन के लिए गतिशील रहने की उत्कंठा और ऐसा अभ्यास जितना आवश्यक हैं उतना ही अहम उस दिशा का बोध है जिस ओर प्रशस्त रहना है। बगैर जाने समझे कहीं भी चलने का अर्थ है अंधेरे में लाठी चलाते रहना।

मनुष्य की अथाह सामर्थ्य: अन्य प्राणियों से विपरीत, मनुष्य को दूरदृष्टि और अथाह मानसिक-आध्यात्मिक शक्तियां इसलिए प्रदत्त हैं ताकि वह अपनी सोच और मंशाओं को रोजमर्रा की जरूरतों और सुविधाओं की आपूर्ति तक सीमित न रखे। प्रत्येक मनुष्य की विशिष्ट सामर्थ्य और गुणों के अनुरूप प्रकृति की उससे निश्चित और स्पष्ट अपेक्षाएं हैं जिनकी अनदेखी एक ईश्वरीय विधान की अवमानना है और इसीलिए दंडनीय भी। अपनी सामर्थ्य और गुणों को व्यर्थ गंवाने वाला व्यक्ति संतुष्टि और प्रसन्नता खो बैठेगा।

प्रकृति समस्त प्राणि जगत की शरण स्थली है और उनके आभरण की व्यवस्था बनाए रखती है। प्रत्येक प्राणी से प्रकृति की अपेक्षा है कि वह सहजीवियों के हित में कार्य करे। सीधे या परोक्ष रूप से हमारे कार्य परहित से संबद्ध होंगे तो सुख-शांति का मार्ग प्रशस्त होगा।

दिशा बोध जरूरी है: पर्याप्त सदाशयता और परहित भाव के बावजूद दिशा उचित न हो तो मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति दुष्कर होगी। संतति मोह तथा प्रेम के आगोश ने अनेक विवेकशील व्यक्तियों को सन्मार्ग से विचलित किया है। धन-संपत्ति या ऐश्वर्य की लालसा द्वारा सुपात्रों के दिग्भ्रमित होने के दृष्टांत भी हम देखते आए हैं। इन अप्रिय प्रकरणों के कारण देश-समाज ने प्रचुर अहित सहे हैं। रात्रि सितारों के प्रकट होने से नहीं, सूर्य के निस्तेज पड़़़ जाने से होती है। सामर्थ्यपूर्ण व्यक्ति उचित दिशा के चयन और उसी ओर निरंतर अग्रसर रह कर न केवल परमशक्ति की वृहत योजना में योगदान से अपना जीवन धन्य करता है बल्कि दूसरों के जीवन को भी प्रकाशवान करता है।

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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप 6 जनवरी 2023, शुक्रवार के दैनिक जागरण के संपादकीय पेज (ऊर्जा कॉलम) में “दिशा बोध” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

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