जीवन की लौ मुरझाए नहीं, इसीलिए दिए और कैंडिल जलते रहने चाहिएं

किसी भी पंथ का छोटा-बड़ा अनुष्ठान दीप प्रज्वलन बगैर संपन्न नहीं होता। अग्नितत्व की आराधना स्वरूप दीप प्रज्वलन से परालौकिक अनिष्टों-बाधाओं के निराकरण तथा नए कार्य के मंगलमय होने का विश्वास मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति है। आदि समुदायों में रात्रिवेला में अग्नि के दायरे में सामूहिक नृत्य-गायन के माध्यम से हृदय के उद्गार साझा करने में यही भाव था।

जन्मदिन, नामकरण, विवाह या दीक्षांत समारोह आदि की रस्मों में सदा दीप प्रज्वलित किए जाते हैं, किंतु दीप के मायने धार्मिक या सांस्कृतिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं। रिहाइशी, कार्यालयी या औद्योगिक भवनों के शिलान्यास के अलावा विभिन्न स्तरों की शासकीय, राजनैतिक, वैज्ञानिक व अन्य सम्मेलनों-बैठकों, कार्यक्रमों आदि का श्रीगणेश अनिवार्यतः दीप प्रज्वलन से होता है।

सभी धार्मिक रस्मों में वातावरण को अग्नि या अन्य विधि से प्रकाशमय किया जाता है। हिंदुओं के प्रत्येक शुभकार्य में दिया-बाती होती है। मुस्लिम मानते हैं कि जन्नत और धरती में विद्यमान प्रकाश सर्वज्ञ खुदा ही है। आले में कांच के सांचे में रखा लैंप प्रकाशवान सितारे की भांति नेकी का प्रतीक है। ईसाचरित को सदा लैंप के आलोक में पढ़ा जाता है। प्रकाश को दैविक उपस्थिति मानते ईसाई नवनिर्मित गिरिजाघर में पहले पूजास्थल में मशाल और प्रार्थनास्थल के गिर्द तेल के दिए जलाते हैं। अंत्येष्टि में अपनी मोमबत्ती इस आशय से बुझाते हैं कि एक दिन हर किसी को प्रभु के समक्ष समर्पण करना है। पारसियों में अग्नि नैतिक औचित्य का स्तंभ तो यहूदियों में प्रकाशपुंज आस्था का प्रतीक है।

यों प्रकाश का अपना अस्तित्व नहीं, यह एक क्षणभंगुर, भौतिक अस्मिता है जिसका वजूद बाहरी स्रोत पर निर्भर है। इसके विपरीत अंधकार मृत्यु के समान परमसत्य, चिरस्थाई अस्मिता है, जीवन को भी अंततः उसी के गर्त में समा जाना है। संसार चलता रहे, लोग संघर्षरत रहें, जनमानस में जीवंतता, उल्लास का भाव बना रहे इसीलिए प्रभु ने मायावी संसार रचा। सभी समुदायों-पंथों, सत्साहित्य और प्रवचनों में प्रकाश की ओर सायास बढ़ते रहने का आह्वान है और इसे आनंद, दिव्यता, ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि तथा जीवनदाई शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वैदिक उद्बोधन है, ‘‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’’ यानी हे प्रभु, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर प्रशस्त करो!

अंधकार कितना भी हो, एक दिए से मिट जाता है, वैसे ही एक पुरुष विश्व को राह दिखाने वाला प्रकाशपुंज बन सकता है। प्रकाश किसी भी स्रोत से आए, शुभ होता है और वर्तमान से भविष्य को आलोकित किया जा सकता है। कहा गया है, प्रत्येक मनुष्य का असल स्वरूप चमड़ी में लिपटे सितारे की भांति हैं, जिस प्रकाश को हम इधर उधर ढ़ूंढ़ते हैं वह हमारे भीतर है, उसे प्रज्वलित रखना है।

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नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कालम में 30 नवंबर  2017 को ‘‘अज्ञान के रास्ते से निकलना है तो यही है एकमात्र रास्ता’’ नामक शीर्षक से प्रकाशित।

लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/this-is-the-only-way-out-of-the-darkness-of-ignorance-22298/

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