रंग हैं तो जीवन में उमंग है, उत्साह है।
रंगों से सराबोर फिजाओं में, शर्माजी रोजाना की तरह आज पार्क का चक्कर लगाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। खिड़की से देखा, युवाओं की फौज गली में होली का जश्न मना रहे थे। उन्हें कोसते, उनके बाबत कुछ अभद्र बुड़बुड़ाने लगे। किचिन से आती पित्नी ने टोका, ‘‘आप क्या आदमी हैं, त्यौहार में उनकी खुशी से आपका दुख उमड़ रहा है!’’ तभी उनके एक साथी आए और उनके लटके हुए थोपड़े पर गहरा नीला रंग पोत कर चले गए। दर असल, शर्माजी को अपना और दूसरों का प्रफुल्लित रहना कभी रास नहीं आता था।
पृथ्वी पर ऐसा कुछ नहीं जो रंगमय न हो। रंग चराचर जगत में सर्वत्र समाए हुए हैं। जीवन में अनायास पसर जाती नीरसता को निष्कासित करते हुए रंग जीवन में उल्लास, जीवंतता और उत्साह का संचार करते हैं।
मन, चित्त और तन से स्वस्थ रहना मनुष्य का धार्मिक कर्तव्य है। व्यावहारिक जगत में कठिनाइयों, कष्टों, चुनौतियों के बावजूद स्वस्थ रहने के लिए प्रफुल्लित मुद्रा में रहना होगा। रंगों से दुराव मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकर है, प्रकृति के प्रावधानों की अवहेलना है, और इसीलिए दंडनीय भी।
सुख-शांति से जीने के लिए मनुष्य को जो साधन प्रभु ने दे रखे हैं, इनमें अहम है प्रकृति में नानाविध रंगों की मौजूदगी। इसका भोग किया जाना है। इंद्रधनुष की झलक देखते ही नामी रचनाकार विलियम वर्डस्वर्थ का दिल बाग-बाग हो उठता था। जैसे प्रकृति अजीबोगरीब पक्षियों की चहचहाट, नदी-झरनों के बहाव, कीट-पतंगों के सुरीले कलरव, झूमते पेड़ों की सरसराहट के माध्यम से गीत सुनाती है वैसे ही हरे-भरे बागानों बहुरंगी फूल-पत्तियों के माध्यम से प्रकृति मुस्कुराती है। प्रकृति की सुंदर छटाओं के आस्वादन से आप वंचित क्यों रहेंगे?
केवल श्वेत और स्याह रंगों से दुनिया नहीं चलती। प्रकृति ने अकारण ही पृथ्वी को असंख्य रंगों से सराबोर नहीं रखा है। यों मूल रंग तीन हैं, लाल, नीला, और पीला। निर्धारित अनुपात में इनके मिश्रण से असंख्य रंग निर्मित किए जाते हैं। कलाकार विविध मानवीय अनुभूतियों, संवेदनाओं, भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए रंगों की इस विशाल श्रृंखला को उपयोग में लाते हैं।
दुनिया को जानने-समझने और विभिन्न वस्तुओं में अंतर पहचानने का प्रमुख आधार रंग है। रंगों की दुनिया अद्भुद है। जन्म लेने के दो सप्ताह में बच्चा सबसे पहले लाल रंग को बूझने लगता है चूंकि इसकी वेवलेंथ सबसे बड़ी होती है। पांच माह पूरा होने तक उसे अन्य रंगों का बोध हो जाता है। महिलाओं में लाल रंग के अनेकानेक शेडों को परखने की विलक्षण प्रतिभा मानो जन्मजात होती है।
भारतीयों का रंग प्रेम: हमारे देशवासी रंगप्रिय हैं। भारतीय मानसिकता आदिकाल से रंगों में गुंथी है। सभी पंथों के धार्मिक व अन्य अनुष्ठानों में रंगों का खुला प्रयोग मिलता है। नवग्रह पूजन, मुंडन, विवाह, अर्चनाओं-स्तुतियों, आदि में पूजा की पट्टी, उस पर निर्मित ज्योमितीय आकृतियां, कलश, धर्मस्थलों की दीवारें, पुरोहित और यजमानों की पोषाक आदि रंगों से जुड़े रहने की चाहत दर्शाती हैं। रंगोली निर्माण की परिपाटी केवल मांगलिक अवसरों तक सीमित नहीं। देशभर के वैज्ञानिक, तकनीकी आयोजनों में इसका प्रयोग जारी है। मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं को अभिव्यक्त करती मनोहारी, गोलाकार रंगोलियां ब्रह्मांड की अनंतता और शाश्वतता का प्रतीक हैं। मान्यता है कि रंगोली के इर्दगिर्द नकारात्मक ऊर्जा तथा हैवानी शक्तियां नहीं फटकतीं बल्कि वहां पुण्यकारी आत्माओं का वास होता है तथा मनुष्यों को धन्य करतीं फिजाएं निर्मित होती हैं।
रंगों के अस्तित्व का प्रश्न सदियों से दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और विचारकों के मंथन और विवाद का विषय रहा है। क्या रंग वास्तविक अस्मिता हैं? या वस्तुओं के रेटिना पर पड़ते प्रभाव की व्यक्तिगत समझ भर। यह अवश्य है कि रंगों का छिड़काव समूचे परिप्रेक्ष्य को आकर्षक व सुखद बना देता है।
रंगप्रेमी साथ निभाने वाले, सहृदय तथा भविष्य के प्रति आश्वस्त होते हैं, उनकी संगत में रहेंगे तो हताशा नजदीक नहीं फटकेगी। जीवन की तुलना कैनवास से की जाती है। अपनी आकांक्षाओं, विवेक और निर्णय के अनुसार इस कैनवास पर रंग हमें स्वयं भरने होते हैं। और उसी अनुरूप हमारा जीवन बन जाता है।
…. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. ….
इस आलेख का आरंभिक प्रारूप ‘रंगों में गुथी है मानव जीवन की अनमोल धरोहर’ शीर्षक से 14 मार्च 2025, शुक्रवार (होली के दिन) नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुआ।
…. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. …. ….
प्रफ्फुलित नैसर्गिक जीवन मानवता का लक्ष्य है। प्रफुल्ता सार्वभौमिक है। तभी जीवन सफल होता है। रंगनुमा कृत्रिमता का आवरण छद्म मात्र है।