परिवार से जुड़े लोगों में जो मेलजोल, सौहार्द, आत्मविश्वास और हौसले होते हैं वे टूटे परिवार से निकले लोगों में कहां?
जिन लोगों से आपका उठना-बैठना, लेन-देन और मेलजोल रहता है, वे आपके आचरण, व्यवहार और चाल-चलन के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, आपके हावभाव पढ़ लेते हैं। उन्हें यह भी पता होता कि आप कितने शानदार, भले, अहसानमंद या निकम्मे, खुदगर्ज, अहसानफरमोश टाइप के हैं; उनसे आपके बारे में कुछ छिपा नहीं रहता।
पुख्ता शख्सियत की नींव: आपकी सोच और दूसरों से संबंध किस कोटि के हैं यह मुख्यतः उन संदेशों पर निर्भर रहता है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर आपको घर-परिवार से मिले। परिवार में पले-बढ़े बच्चे प्रायः संस्कारी होते हैं, अपनी इच्छाओं की सीमाएं, अनुशासन, नियम समझते हैं, दूसरों की जरूरतों को महत्व देना सीखते हैं। वे विकट परिस्थितियों से बेहतर ढ़ग से निबटते हैं। साथियों, सहकर्मिर्यों, सहवासियों से वे मेलभाव रखने वाले, मन-तन से अधिक स्वस्थ और उन्मुक्त रहते हैं। हों भी क्यों न? परिवार के आंगन या पिछवाड़े की सरहद में जहां बच्चे का एकछत्र राज चलता है और मां या पिता की गोद में तमाम उलझनों-समस्याओं का समाधान मिल जाता है तो उसका पूर्ण भावनात्मक विकास होता है और एक पुख्ता शख्सियत की नींव डलती है।
इसके विपरीत, जिनका अपने परिवार से अंतरंग जुड़ाव न रहा या जो बिखरे परिवारों से हैं उनमें एकाकीपन, व्यसन, आत्महत्या, व कदाचार की प्रवृत्ति अधिक देखी जाती है।
परिवार में पलने-बढ़ने से आशय उन परिवारों से है जहां रिश्ते निभाए सदस्यों में मेलजोल व प्रेम भाव हैं। शांतिकुंज हरिद्वार के संस्थापक आचार्य श्रीराम शर्मा ने कहा, प्यार से भरापूरा परिवार पृथ्वी पर स्वर्ग होता है। परिवार वह है जहां भाई को भाई, मां को मां और बहन को बहन समझा जाता है, वगैरह। जहां उम्रदार भी रिश्ते निभाना नहीं जानें, स्वयं बहक या बह रहे हों वे दूसरों को कैसे थामेंगे? कोई माने तो, जैसा डेस्मंड टूटू ने कहा, परिवार आपके लिए और आप परिवार के लिए ईश्वरीय तोहफा हैं।
सुगठित परिवार व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीय समृद्धि की धुरी है। आज की अनेक विकृतियां परिवाररूपी संस्था के विघटन के कारण हैं। अपने सरोकारों को प्राइवेसी और निजी स्वार्थों तक समेटने का अर्थ है अपनी जड़ों से विलग हो जाना। जैसे घर ईंटों और दीवारों का ढ़ांचा भर नहीं होता वैसे ही पारिवारिक सदस्यों का आपसी प्यार ही किसी आवास को घर का रूप देता है। पारंपरिक परिवारों से बिखर चुके व्यक्ति सदा किसी नए उभरते पंथ से जुड़ कर अपने जीवन में पसरती रिक्तता और अतृप्ति को दूर करने की चेष्टा में रहते हैं। प्रबुद्ध समाजों में परिवार की पुनर्प्रतिष्ठा के प्रयास आरंभ हो चुके हैं।
बड़े होटलों-रिसॉर्टों के विज्ञापनों में घर जैसा वातावरण देने के आश्वासनों के पीछे घर-परिवार को ‘मिस’ करते संभावित ग्राहकों को कुछ मिलता जुलता पेश करने का प्रलोभन रहता है।
मानसिक, शारीरिक और भावात्मक विकास में परिवार की भूमिका को सवंर्धित करने की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र 15 मई का दिन अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में मनाता है। यह दिन पारिवारिक व सामाजिक दूरियों को पाटने का है। परिवार को सामाजिक तानेबाने की इकाई मानते हुए संयुक्त राष्ट्र की धारणा है कि इसे पुख्ता करते हुए बच्चों व किशोरों की शिक्षा और उनका विकास तथा वृद्धों व अन्य सदस्यों की देखभाल भलीभांति सुनिश्चित की जा सकती है।
उद्गार साझाा करने का प्लेटफार्म है परिवार: के परिवार में रहते व्यक्ति नाना गतिविधियों में सहभागी हो कर, अपने अंतरंग उद्गारों के आदान-प्रदान से, साथ-साथ खानपान से, पूजा-समारोहों में सम्मिलित कार्यों से उचित-अनुचित में विभेद व जीवनमूल्यों को समझते-अपनाते हैं। चूंकि माता-पिता ही किसी के सर्वोतम हित में कार्य करते हैं, उनसे प्राप्त सीखें हमारे लिए सर्वाधिक उपयुक्त रहती हैं। खून की गर्मजोशी में स्वयं को आसमां से ऊपर समझते कुछ युवा पारिवारिक रिश्ते निभाने को तवोज्जू नहीं देते। विडंबना है कि उनकी आंखें जब खुलती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
प्राइवेसी और निजी स्वार्थों में सिमटती प्राथमिकताएं कहां ले जाएंगी? बड़े पुश्तैनी घर में बगैर किराया दिए संयुक्त परिवार में रहना कुछ युवा दंपतियों को रास नहीं आता जहां नन्हों को दादा-दादी आदि की निस्स्वार्थ देखभाल, और निश्छल प्यार मिलेगा। कैसी विडंबना है कि बेरोकटोक, स्वछंद वातावरण की चाहत में अलग से भाड़े का भिंचा, अदना अपार्टमेंट और खरीदी गई जोखिमयुक्त सेवाएं मंजूर हैं। विवाहपूर्व सेक्स, पत्नी अदलाबदली क्लब, डेटिंग, समलैंगिक रिश्ते, लिव-इन-रिलेशनशिप, केवल मां या पिता वाले परिवार, रात्रि क्लबों आदि की प्रथाएं परिवार का खोखला करने पर आमादा हैं और हमें उस परंपरा से विलग करने की मुहिम है जिसने सदा हमारा कल्याण किया है। इसी सोच की परिणति है कि अमेरिका और ब्रिटेन में आधे विवाह टूट जाते हैं और एक चौथाई बच्चे मानसिक विकृतियों से ग्रस्त हैं।
धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान प्रत्येक दृष्टि से मनुष्य के विकास में सुगठित परिवार की भूमिका निर्विवाद है। लीक से हठ कर चलने और अभिनव प्रयोगों की प्रेरणा का स्रोत भी परिवार है। परिवार से मिली शिक्षा और परवरिश एक निश्चित गंतव्य तक पहुंचाती है हालांकि सुधीजन विवेक, सांदर्भिकता और उपयोगिता के अनुसार उसे निखारते हैं। चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की राय में, परिवार में खासकर मातापिता के प्रति जिस कदर लोग अपनी भूमिका निभाते हैं उसी अनुपात में समाज में समृद्धि आती है।
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