जल है तो जीवन है। अभी भी इसके उपयोग और वितरण पर जुगत से नहीं चलेंगे तो आने वाली चुनौतियों की कल्पना नहीं कर पाएंगे।
जिन पंचतत्वों (जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी) से हमारे शरीर, बल्कि समस्त चराचर जगत की रचना हुई उनमें जल प्रधान है। हमारे शरीर और पृथ्वी पर क्र्रमशः 61 और 71 प्रतिशत जल है। जल प्राणदाई अस्मिता है। वनस्पतियों सहित सभी जीवों का अस्तित्व जल की सुनिश्चित आपूर्ति पर निर्भर है। आदि सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुईं। पृथ्वी पर सर्वत्र जल की सहज उपलब्धता और प्रचुरता से इसके प्रति पूर्व की भांति समादर न रहा। संप्रति जल संकट दैनंदिन उपभोग के इस बहुमूल्य प्राकृतिक उपहार की उपेक्षा की परिणति है। मानवजाति के दीर्घकालीन हित में, उचित पर्यावरण और टिकाऊ कृषि व्यवस्था निर्मित करने के लिए जल का सूझबूझपूर्ण उपयोग और इसके प्रति श्रद्धा भाव आवश्यक है। जीवन का दारोमदार अमृत तुल्य जल पर टिका है। सुधीजनों की राय है कि जल की प्रत्येक घूंट का स्थिरचित्त से, प्रभु के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हुए इसका सेवन करने से यह मन को तृप्ति और शरीर को पूर्ण लाभ मिलता है।
जल की शोधनकारी सामर्थ्य: अशुद्ध, विषाक्त और हानिकारी तत्वों को निराकृत करने में जल की अद्भुद सामर्थ्य सर्वविदित है। जल के जनहितकारी, पुण्यकारी गुणों का उल्लेख सभी पंथों में रहा है। धार्मिक अनुष्ठानों में देवताओं के आह्वान से पूर्व अनुकूल वातावरण निर्मित करने की परिपाटी है। इस कार्य में मंत्रोच्चारण के साथ हथेली से जल छिड़काव द्वारा सभी दिशाओं को पुनीत किया जाता है तो हैवानी तथा नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त होता है। हस्त प्रक्षालन, जल स्नान और पूजा-अर्चनाओं से पूर्व आचमन से मन-चित्त शुद्ध होता है।
मानव सभ्यता के विकास में जल की उपयोगिता निर्विवाद है। प्राचीन सभ्यताएं नदियों, झरनों के किनारें या समुद्र तटों पर पल्लवित और विकसित हुईं। नदियां जनपदों, राज्यों, राष्ट्रीय सीमाओं और आवासीय परिसरों की स्थापना का आधार बनीं। नदियों से लोगों का आवागमन और सामान ढ़ोना सुगम हुआ।
जल का रहस्यपूर्ण स्वरूप: जल स्रोतों और जल प्रवाह पर ढ़ेरों लोकगीत लिखे गए, इसकी प्रेरणा से कालजयी साहित्य और कलाकृतियां रची गईं। जल से अधिक लचीला और कोमल कुछ नहीं, किंतु इसका प्रतिरोध करने या इससे जीतने की बिसात किसी में नहीं। अपने बल से यह कड़ी से कड़ी चट्टान का ह्रास कर देता है। जीवन में प्रेम न हो तो चल जाएगा किंतु जल के बिना गुजर नहीं। जल विज्ञान को समर्पित जापान के वैज्ञानिक मसारु इमोटो की मान्यता है कि जल व्यक्ति की सोच और उसके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। अपनी पुस्तक, दि हिडन मैसेजिज़ इन वाटर (जल में निहित गूढ़ संदेश) के अनुसार पानी को समझ लेने का अर्थ है ब्रह्मांड को, प्रकृति को और जीवन को समझ लेना।
जल प्रवाह हमें सिखाता है, जीवन में जड़ता को नहीं पसरने देना है। जल जीवंतता, निरंतर गतिशीलता, सहजता और पारदर्शिता का पर्याय है। आनंद, शांति और तुष्टि उसी के जीवन में आएंगी, जिसकी सोच, और आचरण जल के बाबत स्वार्थ से नहीं बल्कि परहित से अभिप्रेरित होगी।
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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप दैनिक जागरण ऊर्जा कालम (संपादकीय पेज) में विश्व जल दिवस 22 मार्च 2025, शनिवार को प्रकाशित हुआ।
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अत्यंत विचारणीय तथा उपयोगी आलेख…..