कुछ रिश्ते हमें विरासत में मिलते हैं, शेष हम निर्मित करते हैं। यह उम्मीद करना नादानी है कि नए, पुराने संबंधों को हर कोई निभाता जाएगा क्योंकि पहले तो संबंधों की गरिमा विरले ही समझते हैं, दूसरा इनके निर्वहन में ईमानदारी और अथाह धैर्य चाहिए जो हर किसी के बस की नहीं।
जिस प्रकार एक घर, वाहन, कोई उपकरण या पौधा समय समय पर ‘मेनटेनेन्स’ मांगता है वैसे ही संबंध बनाए रखने, और उन्हें दरकने से बचाने के लिए इनमें खाद, पानी, लुब्रिकेंट्स की जरूरत पड़़ती है चाहे वे मातापिता, भाई-बहन या पति-पत्नी के बीच हों, जी हां! अपने दायरे में खासी उम्रदारी में छोटी-बड़़ी संतानों वाली पत्नियों द्वारा पतियों के खिलाफ कुछ पुलिस केस दायर किए गए जो कचहरियों घिसटते ही जा रहे हैं – और कुछ अन्य मामले उसी दिशा में सरक रहे हैं। जरूर इन संबंधों के रखरखाव में किसी ओर से कुछ और दूसरी ओर से गंभीर चूकें रही होंगी।
तलवार की धार पर चलने के समान है संबंध निभाना। आधा सुना, ठीक से नहीं सुना, गलतफहमी पनपी, मुंह फूले और हुक्का पानी बंद, बहुतेरे रिश्तों की यही दास्तान है। यह भी विश्वास कि हम समझदार हैं और हमारे समझदार हो जाने का सीधा अर्थ है दूसरा बेवकूफ साबित हो जाता है।
यों पड़ती हैं संबंधों में दरारें: क्यों पसर जाती है संबंधों में कड़वाहट और दरारें? नंबर एक है, लोगों की पहले से ऊंची नाकें जो तब और ज्यादा ऊंची हो जाती हैं जब बेटे के बीटैक वगैरह करने के बाद मोटी पगार आने लगती है या अन्यथा परिवार की माली हालत बेहतर हो जाती है। ये चीजें हर किसी को हजम नहीं होती। ऐसे कुछ नवधनाढ्य स्वयं को ‘‘उच्चतर’’ कुलीन वर्ग का मानने लगते हैं, उनकी दिक्कत होती है कि पुराने संबंधी हमारे नए उच्च स्तर की कद्र नहीं कर रहे। दीगर बात है, दूसरों की नाकें भी लंबी होगीं तो खरोंच लगने, आहत होने के आसार बढ़ेंगे और संबंध बिगड़ेंगे।
समाज से बच कर कहां जाएंगे: संबंध बेहतर नहीं होंगे तो अलग थलग पड़ जाएंगे। आखिर जिंदगी के सुखों का दारोमदार मेलभाव पर टिका है। अकेली जीवन यात्रा दुष्कर, कदाचित दर्दनाक हो सकती है। नानाविध व्यक्तियों से अविरल जुड़ाव मनुष्य के जीवन में वैविध्य, आनंद और उत्साह का संचार करता है, इसे अर्थ देता है। मानवीय संबंध संवाद की धुरी के गिर्द गुंथे रहते हैं। संबंधों का दारोमदार स्वस्थ संवादों पर टिका रहता है। संवादों के माध्यम से हम हर्षोल्लास, व्यथाएं, चिंताएं और निजी सरोकार साझा करते हुए सकारात्मक और संतुष्टिमय जीवन बिता पाते हैं। घर-परिवार से इतर हम कार्यस्थल व समाज में तथा अन्यत्र विभिन्न स्तरों पर स्वेच्छा या आवश्यकता अनुसार सतही, गहरे या अंतरंग संबंध बनाते और सुदृढ़़ करते हैं। संवेदनाशून्य या औपचारिक संवादों का अर्थ है किसी तरह संबंधों को ढ़ो कर उन्हें उकताऊ, बोझिल बना देना। मायने उन्हीं संबंधों के हैं जिनमें गहराई हो, ऐसा तभी संभव होगा जब इन्हें निष्ठा, ईमानदारी और पारदर्शिता से निभाया जाए। सुधी व्यक्तियों के संबंध गिनती के होते हैं जिन्हें वे परिधान की भांति नहीं बदलते रहते बल्कि अंतकाल तक निभाते हैं। वे संबंधों की अनवरत देखभाल, संवार करते हैं। दूसरों से अपेक्षाएं जितना कम होंगी, संबंध उतने खुशनुमां रहेंगे।
जैसे फसल से अवांछित अंशों की काटछांट की जाती है उसी प्रकार संबंधों में अनायास उभरती शंकाओं और भ्रांतियों को खुले संवाद से निष्क्रिय करना आवश्यक है। संबंधों को सम्मान देने वाला जानता है कि इन्हें जीवंत व स्वस्थ रखने की प्रक्रिया में कदाचित दूसरे के आपत्तिजनक या अनुचित व्यवहार की अनदेखी करनी होगी, स्वयं सही होने पर भी दूसरे के दुराग्रह के समक्ष झुकना होगा।
अच्छे संबंध जिजीविषा को धार देते हुए उमंगों और आशावादिता को संपुष्ट करते हैं। अतः अपने दूरगामी हित में इन्हें स्वस्थ और जीवंत रखना होगा। इस आशय से परिजनों सहित मित्रों, सहकर्मियों आदि से संबंधों को समय समय पर तरोताजा रखने के प्रयास करने होंगे अन्यथा ये निष्प्राण हो जाएंगे। दूसरों के सरोकारों में योगदान दे कर तथा विशेष अवसरों पर उनकी आवश्यकताओं की आपूर्ति से संबंध जीवंत रहते हैं। सहज, निश्छल व्यवहार से जर्जराते संबंधों में नई जान फूंकी जा सकती है। वे धन्य हैं जिनके अपनों और साथियों से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, ये व्यक्ति को निरंतर भावनात्मक संबल प्रदान करते हैं। पुश्तैनी व अन्य पुरातन संबंधों को संरक्षित रखना हमें अधिक परिपूर्ण और सशक्त बनाता है।
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यह आलेख संक्षिप्त, भिन्न रूप में 14 दिसंबर 2021 मंगलवार के दैनिक जागरण के ऊर्जा कॉलम में ‘‘संबंधों में जीवंतता’’ शीर्षक से (ऑनलाइन संस्करण में – संबंधों में जीवंतता स्वस्थ संवाद से बनी रहती है) प्रकाशित हुआ। ऑनलाइन संस्करण का लिंकः https://www.jagran.com/spiritual/religion-vibrance-in-relationships-is-maintained-through-healthy-communication-22293052.html
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क्या बात है! रिश्तों की मजबूती और महिमा विरले ही समझ पाते हैं। बहुत ही महीन मुद्दे पर लिख कर हरीशजी ने पाठकों पर उपकार किया है। रिश्ते निभाना, रिश्तों की गर्माहट का अहसास होना और उन्हें हर हाल में निभाना एक इम्तहान होता है और जो इसमें सफल होता है उसी का सामाजिक जीवन सफल माना जाना चाहिए। यह सब तभी संभव है जब रिश्तों के बीच नेक मंशाएं हों।