मालूम है, आप सदा व्यस्त रहते हैं, लेकिन कहां – सवाल यह है

आप अस्त-व्यस्त — माफ करें — जरूरत से ज्यादा व्यस्त तो नहीं रहते। कार्य की चिंता अवश्य करें। किंतु ऐसे कार्य में व्यस्त रहने का अभ्यास करें जिसका मतलब बने, जो करने के बाद आपको आनंद और संतुष्टि मिलती रहे।

बच्चे से बूढ़़े तक, कार्य या व्यवसाय कोई भी हो, सारा दिन बतियाते, बैठेठाले गुजरता हो, तो भी हर कोई अत्यंत व्यस्त है। बताएगा कि उसे सांस लेने, यहां तक कि मरने की भी फुर्सत नहीं है। यह भी बताने की फुर्सत नहीं कि वह कितना व्यस्त है।

समय के प्रबंध का विरोधाभास देखें। लगभग समान कद-काठी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पारिवारिक पृष्ठभूमि के दो व्यक्तियों में से एक कारोबारी है। वह पूर्ण विश्वास और उत्साह से अनेक निजी कंपनियां संचालित करता है। उसी की एक कंपनी में कार्यरत दूसरे व्यक्ति से अपना नपातुला कार्य नहीं संभलता। पहला एक अन्य कंपनी खोल रहा है। नई जानकारी या कौशल हासिल करने को लालायित ऐसा व्यक्ति तन-मन की संवार, सौहार्दपूर्ण संबंधों के निमित्त अपनी व्यस्त दिनचर्या में से सहर्ष समय निकालेगा। कोई इतना व्यस्त नहीं होता कि उसे मनचाहे कार्य को संपन्न करने का समय न मिले।

परिणाम वही देता है जो काम पर लगा है, जो निरंतर कर्मरत है, जिसे निठल्ला बैठना रास नहीं आता। उसकी अंतरात्मा झकझोरती है — जो भी है, बस यही है अतः जो करना है उसके बारे में मंथन नहीं करें, बस कर डालिए।। इसीलिए कहते हैं, जो काम आप सही तरीके से, और समय से करवाना चाहते हैं तो ऐसे व्यक्ति को सौंपिए जो व्यस्त हो। हाथ पर हाथ धरे बैठा तो करेगा ही नहीं।

मनुष्य की अथाह क्षमताएं

मनुष्य में निहित अथाह बौद्धिक-मानसिक क्षमताओं के चलते उससे एक विशिष्ट भूमिका निभाने की अपेक्षा स्वाभाविक है। जिसे यह ज्ञान होगा वह जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं गंवाएगा। दैनंदिन तथा विशेष कार्यों को वह बोझ नहीं समझता, इसीलिए थकता नहीं, बल्कि कार्य में व्यस्तता से आनंदित और तुष्ट रहता है। कार्य में चित्त लगाने वाला न तो कार्य से कतराएगा, न उसे लटकाएगा।

क्यों बेहद जरूरी है कार्य में व्यस्त रहना

मन और शरीर की संरचना यों है कि इन्हें निरंतर व्यस्त नहीं रखेंगे तो विभिन्न अंग-प्रत्यंगों की कार्यक्षमता लुप्त होती जाएगी। अकर्मण्य व्यक्ति देश, समुुदाय, राष्ट्र और पृथ्वी पर तथा स्वयं पर बोझ होता है। जीवन में गति या प्रवाह बनाए रखने के लिए मनमंदिर में एक स्पष्ट, सार्थक प्रयोजन प्रतिष्ठित करना होगा। प्रयोजन यदि ईश्वरीय विधान की अनुपालना में होगा तो स्वतः हमारे समग्र हित में होगा चूंकि मनुष्य ईश्वर की अनुकृति है। मात्र व्यस्त रहने के कोई मायने नहीं हैं, व्यस्त तो चींटियां भी रहती हैं। कार्य की प्रकृति, परिणति और दिशा अहम है। व्यस्तता उसी की सार्थक है जिसने एक लक्ष्य साध रखा है और मनोयोग से उस दिशा में सुनियोजित विधि से उसे अंजाम देने में दिन रात लगे रहता है।

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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप दैनिक जागरण के ऊर्जा कॉलम (संपादकीय पेज) में 31 मार्च 2022, बृहस्पतिवार को ‘‘सार्थक व्यस्तता” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।

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