दूसरे क्या करते, सोचते हैं इससे मिलने वाले अथाह आनंद से वे सही मायने में वंचित रहते हैं जो अपने ही कार्य में आंखें गड़ाए रहते हैं।
अपना काम छोड़ कर दूसरों की हरकतों में दखल से मिलते लुत्फ को वे इकडगरी क्या जानें जो सदा अपने और अपने काम के बोझ तले धंसे रहते हैं। सरकारी हो या प्राइवेट, नौकरी का आनंद वही कर्मचारी लेता है जिसे बॉस के, बॉस के बॉस के, उसके भी बॉस के अनेक कर्तव्यों का भलीभांत ज्ञान होता है। तांकझांक का चलन घर-परिवार तक सीमित नहीं। कॉर्पोरेट जगत और राष्ट्र भी प्रतिस्पर्धियों की गतिविधियों और चालों पर कड़ी नजरें गड़ाए रहते हैं।
जो तांकझाक से जो दिखे, सुनाई पड़े या जिसकी भनक लगे उस पर बिंदास चर्चाओं से धर, कार्यस्थल और मोहल्ले की फिजाएं धड़कती-फड़कती रहती हैं। काम तो होते रहते हैं, नहीं भी हों तो किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, जो यह न समझे वह अनाड़ी है।
भोपाल के एक साथी कहते थे, ‘‘दूसरों की बीवी और अपने बच्चे, किसे नहीं लगते अच्छे!’’ दूर के हरे भरे पहाड़, दूसरों का बैंक बैलेंस, उनके घर, उनके घर की दाल और उनकी बीवियों से अगर परालौकिक माधुर्य और दिल को बागबाग करती अनुभूतियां उत्सर्जित न होतीं तो रोमांटिक साहित्य लिखा ही न जाता तथा पाठकगण और श्रोता जज्बातों को डोलाते, झकझोरती कविताओं-कथाओं के सुख से वंचित रहते। बाहरी आइटमों के प्रति आसक्ति आदिकाल से लेखकों का प्रेरणासूत्र रही है।
अपने मोहल्ले के मूसलचंद तांकझाक का माहात्म्य जानते थे। आसपास की महिलाओं के मिजाज और उनके इंच-इंच और मिनट-मिनट की खबर रखना उनकी फितरत थी। इन्हें नमक मिर्च लगा कर वे दूसरों से साझा करते थे और उन्हें नीरसता में डूबने से बचाने का पुनीत कार्य करते। घरेलू फ्रंट पर एकबारगी चूक जाने से उनकी इस प्रतिभा पर संदेह करना नाइंसाफी होगी। हुआ यों कि एक शाम घर लौटने पर पता चला कि उनकी अपनी ही पत्नी दो बच्चों को छोड़ रिश्ते के देवर के साथ नया घर बसाने कूच कर गई, जिसकी मूसलचंदजी को भनक तक नहीं लगी थी।
अपना कभी न संभले, बास को कब, क्या और कैसे करना चाहिए, वह कहां गच्चा खाता है, यह सब जागरूक कर्मचारी ही जानता है। सरकारी और गैरसरकारी महकमों को दूसरे के मैनडेट में घुसपैठ के फायदों की भनक लग गई लगती है। इसी लुत्फ के आस्वादन के लिए बैंक रेलवे टिकट बेचने के लिए आतुर हैं, आईटीडीसी और टेरी प्रिंटिंग की ठेकेदारी में पहले से जुटे हैं, आईआईटी मेडिकल कोर्स शुरू करने की फिराक में हैं, एनसीईआरटी स्कूली किताबें तैयार करने में जुटा रहता है।
आपसे क्या छिपाना, तांकझांक और हथियाए माल के चटकारे बचपन में हमने भी लिए। दूसरे के बगीचे से चुराई ककड़ी या भाई-बहिन के हिस्से से हड़पी मिठाई से कलेजे को लाजवाब चैन मिलता था। कुछ वैसा ही आनंद प्रतिबंधित इलाकों से बेर चुराने में आता था।
दूसरों की हरकतों पर पैनी नजरें रख कर आगामी रणनीति को दिशा मिलती है। तभी विरोधी पार्टियां और सत्ताधारी एक दूजे के चिट्ठे खोलने में समूची खुफियागिरी को झोंक देते हैं। चीन को भारत और मालद्वीप में, पाकिस्तान को कश्मीर में, रूस को यूक्रेन में तांकझांक और घुसपैठ से मिलने वाले सुकून को शांति के ध्वजवाहक क्या जानें?
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