अफसोस है, जिस देश की ओर समूची दुनिया सुख-चैन के लिए शरण लेती रही है वहां की 20 प्रतिशत जनसंख्या हृदय रोगों की चपेट में है। दिल की बीमारियां खास कर 30-40 आयु वर्ग के युवाओं में तेजी से बढ़ रही हैं। खतरे की घंटी है यह, चूंकि यह वह वर्ग है जिस पर समाज और देश की प्रगति का दारोमदार है।
शरीर के बीचोंबीच स्थित ‘‘हृदय’’ नामक लोथड़ा मानवीय अनुभूतियों, भावनाओं का केंद्र प्रायः औचित्य या विवेक पर हावी रहा है। विडंबना है कि घरेलू स्तर पर ही नहीं, बड़े बड़़े राजनैतिक, आर्थिक तथा अनेक वृहत् प्रयोजनाओं के प्रचालन आदि के निर्णयों और कार्यस्वरूप को प्रभावित करने में विवेक को दरकिनार करते हुए ‘‘दिल’’ ने इतिहास को अनचाहे मोड़ दिए – और इस प्रक्रिया में स्वयं आहत हुआ। मुट्ठीभर आकार का 300 ग्राम का यह अंग प्रतिदिन पंपिंग के जरिए लगभग 7,500 लिटर खून दिन रात संशोधित करने में लगा रहता है।
पिछले कई वर्षों से दिल की बीमारियों से जूझने वालों की संख्या में भारत समेत दुनियाभर में बढ़त जारी है, इनसे देश में लगभग पौने दो करोड़ मौतें हो रही हैं। हृदय रोगों के कारणों और रोकथाम संबंधी जागरूकता बढ़ाने के लिए 29 सितंबर का दिन तय है। इस दिन के आयोजनों में दिल के समुचित रखरखाव के लिए फल-सब्जियों के अधिक सेवन, सेटुरेटिड फैट व प्रोसेस्ड खाद्यों से बचने, तनाव में नहीं आने, तंबाखू, धूम्रपान और अल्कोहल का सेवन न करने या घटाने और प्रतिदिन 15-20 मिनट व्यायाम जैसे उपायों की संस्तुति की जाती है। 2030 तक देश के 2.30 करोड़ लोग हृदयरोग से सालाना दम तोड़ने लगेंगे।
अधिक चिंताजन्य यह है कि अब छोटी आयु में हृदयरोग के लक्षण दिखने लगे हैं। अब तक अस्सी हजार से ज्यादा एंजियोप्लास्टी, कैथेटर प्रस्थापना, पीटीसीए, वाल्वूपेस्टी जैसी प्रक्रियाएं कर चुके नामी हृदयरोग विशेषज्ञ डा0 सुमन भंडारी के अनुसार ‘‘एक दशक पूर्व मेरे पास उपचार के लिए आने वाले दिल के मरीजों में 25-35 आयुवर्ग के मात्र 10 प्रतिशत होते थे, अब ये 40 प्रतिशत हैं, यह दुखद स्थिति है। उचित तौरतरीकों से इस प्रवृत्ति को काबू करना हमारी उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।’’
ताजा अध्ययनों में पता चलता है कि शहरी और ग्रामीण दोनों अंचलों में हृदय रोगों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है, यह श्वसन रोग, कैंसर और पाचनतंत्र की बीमारियों के समेकित स्तर से कहीं अधिक है। देश में 30-34 आयु के 78 प्रतिशत व्यक्ति हृदयाघात (हार्ट अटैक) के जोखिम में हैं और उम्र से पहले ढ़लने लगे हैं। पश्चिमी देशों में हृदय की धमनियों की बीमारी से ग्रस्त 5 प्रतिशत की तुलना में भारत में ऐसे व्यक्ति 14 प्रतिशत यानी पश्चिमी देशों से दुगुने से अधिक हैं। इसके कारणों की विशद समीक्षा और कारगर उपचारात्मक कार्ययोजना में देरी देश को महंगी पड़ेगी।
बैठीठाली जीवनशैली और मोटापे से इतर, युवाओं में दिनोंदिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा भावना, तनावग्रस्तता, बेढ़ंगा तथा बेवक्त खानपान, अल्कोहल और तंबाखू का सेवन हृदय के सुचारु कार्यसंचालन को बाधित करते हैं। एक अहम मुद्दा युवाओं की आजीविका से जुड़ा है। एमएनसी, बीपीओ, कॉल सेंटरों में कार्यरत युवा अमेरिकी या ब्रिटेन की घड़ी के अनुसार स्वयं को ढ़ालते हैं; वे बाजार के जोखिमभरे भोजन पर निर्भर होते हैं। फलस्वरूप उनकी शारीरिक और मानसिक क्रियाएं अप्राकृतिक हो जाती हैं। अल्कोहल के व्यापक और अंधाधुध सेवन से शरीर पर पड़ते कुप्रभावों को देख कर भी अल्कोहल का चलन इस कदर बढ़ा है कि जिन शादियों, समारोहों यहां तक कि नवजात शिशु का नामकरण या मुडन में यह पेश न हो, वहां कई व्यक्ति जाएंगे ही नहीं। कुछ मातापिता बच्चों में जैसे तैसे शैक्षिक या अन्य प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में अव्वल न रहने पर जीवन अंधकारमय हो जाने की कुधारणा बैठा देते हैं। मनोवांछित न मिलने पर ऐसी संतानों में असंतुष्टि की पीड़ा घर जाती है जो हृदय रोग का कारण बन सकती है।
दुनिया के 1.10 अरब धूम्रपान कर्ताओं में एक तिहाई 16 साल से कम के हैं। तंबाखू के धुंए के दो विषैले संघटक निकोटीन और कार्बन मोनोऑक्साइड रक्तचाप बढाते हैं। धूम्रपान से कार्बन डाइऑक्साइड के अंश रक्त में घुलते हैं जो हृदय की हैमोग्लोबिन संवहन क्षमता भी घटाते है, नतीजन धमनियों के रोगग्रस्त होने की आशंका बढ़ती है। दूसरी ओर फिल्मी, साहित्यिक, दार्शनिक जगत का एक वर्ग तंबाखू-सिगरेट के गुणगान करते नहीं अघाता। ‘‘मैं हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया’’, ‘‘खा के पान बनारस वाला’’ जैसी लोकप्रिय धुनें उचित-अनुचित के बीच फर्क धूमिल कर देती हैं। मोलियर ने कहा, ‘‘अरस्तू व अन्य दार्शनिक कुछ भी कहते रहें, तंबाखू का आनंद अतुल्य है; यह दर्शाता है आप कितने खानदानी हैं, तंबाखू के बिना जीवन सूना है।’’ तंबाखू पर पूर्ण नियंत्रण में अनेक आर्थिक, रोजगार संबंधी और राजनैतिक मुश्किलें हैं। अमेरिकी अभिनेता जैकी मैसन के शब्दों में, ‘‘अमेरिकी सांसदों के लिए आपके स्वास्थ्य के बजाए तंबाखू उद्योग को समर्थन देना ज्यादा फायदेमंद रहता है।
दीर्घ अवधि तक कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने की दवाओं का सेवन करते 50 पार लोगों में से 15 प्रतिशत के स्नायु क्षतिग्रस्त बताए गए हैं। एक अन्य शोध के अनुसार हृदय रोगों में सेवन किए रहे कैल्शियम चैनेल ब्लॉकर प्रतिवर्ष 85 हजार मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इस पृष्ठभूमि में भारतीय उद्गम के योग मॉडल की ओर मुखातिब होना पड़ेगा। आदि चिकित्सक हिपोक्रेटस की राय में भोजन की मात्रा और व्यायाम को नियमित करना भर दुरस्त रहने के लिए काफी है। अनेक उन्नत चिकित्सा संस्थाओं ने पुष्टि की है कि शारीरिक अंगों की हरकत फेफड़ों के ऑक्सीजन अवशोषण करने, हृदय के रक्त पंप करने तथा अग्न्याशय के इंसुलिन निर्माण की क्षमता बढ़ाती है; मेटाबोलिज़्म को दक्ष कर वसा को शीघ्र पचाती है तथा प्रतिरक्षण प्रणाली को दुरस्त करती है। हारवर्ड मेडिकल स्कूल के अनुसार नियमित श्वसन व्यायाम शरीर को ही नहीं, हृदय और चित्त को भी स्वस्थ रखता है; व्यायाम में निहित न्यूरो-रासायनिक गुण ‘‘अद्वितीय तरीके से शरीर को प्रफुल्लित, सूकून-शांति प्रदान करने और इसे डिप्रेशनरहित, तनावमुक्त रखने की क्षमता पैदा करते हैं।’’
हृदय रोगियों की कार्यप्रणाली पर दिल्ली के एम्स ने योग केंद्रों से साझीदारी में संचालित प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला कि नियमित योगाभ्यास से हृदय गति, इजेक्शन फ्रेक्शन, कोलेस्ट्रॉल स्तर आदि नियंत्रित रहते हैं, इंडियन हार्ट जर्नल के विभिन्न अंकों में ऐसा दर्ज है (मैं 12 वर्ष तक इस द्वैमासिक पत्रिका का संपादकीय परामर्शी रहा हूं)।
हृदय की दुरस्ती का एक अहम पक्ष मनःस्थिति का है। मानसिक द्वंद्व, तनाव, कलह, तीव्र प्रतिस्पर्धी भावना, भावावेश जैसी प्रवृ त्तियां रक्तचाप बढ़ाती हैं। जिस दिशा में समाज, विशेषकर युवा, अग्रसर हैं – बगैर करे धरे धनाढ़्य हो जाना, रातोंरात हो जाएं तो सर्वोत्तम; सदा से भावनात्मक संबल प्रदान करतीं देसी मान्यताओं और आस्थाओं की उपेक्षा; मानवीय और पारिवारिक रिश्ते निभाने में कोताही; और अंतर्भावों और सरोकारों को साझा नहीं करने का चलन, ये सभी मन और दिल को खुशनुमां और दुरस्त रखने में बाधक है। एक अलिखित दस्तूर है, दिल के वास्तव सरोकार, पीड़ाएं, कसकनें जगजाहिर नहीं होने चाहिएं – भीतर कैसे भी हों, छवि धांसू होनी चाहिए।
संगीतज्ञ कार्लोस सैंटाना कहते हैं, ‘‘खुला दिल मनुष्य की सबसे बड़ी संपदा है।’’ एक हार्ट आपरेशन थिएटर के द्वार लिखा था, ‘‘यदि दिल को अंतरंग मित्रों के समक्ष खोल दिया होता तो आज इसे औजारों से खोलने कीजरूरत न पड़़ती’’। दैनंदिन चर्या में सहज, पारदर्शी आचरण, सहकार और परहित का भाव को छोड़ कर कइयों ने दिल की व्याधियां पाली हैं, और उनसे कई गुना कतार में हैं। आत्म निरीक्षण करें – अपने और परिजनों के हित में ही सही!
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