समय की गति

संबंध जीवन की धुरी हैं। जो संबंध बनाना और निभाना जानते हैं उनका समय सदा अच्छा चलता है।

नव वर्ष, त्यौहार, वर्षगांठ, परिवार में नए सदस्य का आगमन (या प्रस्थान) जैसे अवसर संबंधों और आवासीय परिवेश को संवारने, पुनर्व्यवस्थित करने का कारण बनते हैं। उत्सवी परिवेश रोजमर्रा की एकरसता को तोड़ कर नएपन का अहसास दिलाते, और कुछ समय के लिए ही सही, जीवन में जीवंतता, आशा, उत्साह और खुशी का संचार करते हैं।

संबंधों की गरिमा: परम आनंद तो उस उल्लास और प्रसन्नता के आदान-प्रदान के सिलसिले में है जो आजीवन चलता रहे, दिन विशेष तक सीमित न रहे। उत्सवी वेलाओं का परम उद्देश्य आपसी संबंधों को सौहार्दपूर्ण रखना है। जो संबंधों की गरिमा समझते, और इन्हें निभाते हैं उनका हृदय सुख-शांति और संतुष्टि का वास रहता है। उनका समय सदा अच्छा चलता है। अच्छे, निस्स्वार्थ संबंध जीवन को अर्थ देते हैं।

अतीत के मूल्यांकन या भविष्य की कल्पनाओं में ले जाते कालचक्र के पड़ाव हमें तुष्टि देते हैं या कचोटते हैं, यह हमारी सोच और अपेक्षाओं से तय होता है। आप समाज और दुनिया से क्या चाहते हैं, क्या सभी आपके लिए हैं या आप उनके लिए हैं; दूसरे शब्दों में, आप देने वालों में हैं या लेने वालों में। देने के साथ शर्त है कि इसके पीछे प्रतिफल की आशा न हो, अन्यथा देना फलीभूत न होगा। संतति और स्वजनों सहित दूसरों से अत्यधिक अपेक्षाएं संजोना दुखजन्य होता है।

इसके विपरीत दूसरों से न्यूनतम अपेक्षाएं रखने वाले को ज्ञान रहता है कि उसकी भूमिका देश काल में तभी तक रहेगी जब तक वह उपयोगी है। उम्रदराजी के साथ अपने हाथ-पांव चलाना छोड़ देने वालों का हश्र हम सभी देखते आए हैं। घर-परिवार में, बाहर भी, जो योगदान करते रहना जो अपना स्वभाव बना लेते हैं वे सम्मान के अधिकारी होते हैं। कर्मठ व्यक्ति घर और बाहर के कर्तव्य निर्वहन में पीछे नहीं रहता। दूसरों के अधिकार और स्वयं के कर्तव्यों के प्रति वह सजग रहता है। वह दूसरों से प्रत्यक्ष मेलजोल तथा दूरस्थ संवाद बनाए रखता है, इसीलिए तन, मन से स्वस्थ भी रहता है। यह जानते हुए कि उसे शेष जीवन भविष्य में बिताना है, वह अतीत की उपलब्धियों की गणना में नहीं बल्कि आगामी कार्य योजना में व्यस्त रहेगा। क्या खो गया, या क्या नहीं है, इन उलझनों में कर्मठ जन नहीं पड़ते। जो, जितना अपने पास है उसके बूते अभीष्ट प्राप्त हो जाएगा। इस धारणा के चलते उसे भविष्य के प्रति भय या आशंका नहीं रहती,  और वह सुनहरे भविष्य के प्रति आश्वस्त रहता है।

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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप 31 दिसंबर 2024, बुधवार को दैनिक जागरण (संपादकीय पेज, ऊर्जा कॉलम) में प्रकाशित हुआ।

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