हमारी अधिकांश समस्याएं इसलिए हैं चूंकि सोच सीधी, स्पष्ट नहीं है। विचार, भाव और व्यवहार में हेरफेर नहीं होगा तो कष्ट स्वतः दूर हो जाएंगे।
प्रकृति में सब कुछ सहज रूप से घटता है: मनुष्य से इतर, समस्त चराचर जगत के कार्यसंचालन की व्यवस्था बेचूक, शानदार और गजब की है। इसके विपरीत मनुष्य की सोच, उसके जीवनयापन, तौरतरीकों और कार्यकलापों में कदम कदम पर कलह, टकराव और अशांति दिखती है। जिस अनुपात में मनुष्य ने प्रकृति और प्राकृतिक तौरतरीकों की अवहेलना की और उनसे सायास दूरी बनाई, उसी अनुपात में उसने अपने आचरण, व्यवहार और कार्यों में सहजता, सरलता और उत्साह को खोया है। अपने ही अंतःकरण, आत्मीय जनों तथा अन्य सहजीवियों से तालमेल नहीं बैठाने पर मनुष्य चिंतांओं, आशंकाओं और कुंठाओं से ग्रस्त हो जाता है।
ईश्वर की विशाल, सर्वसाधन संपन्न आयोजना में मनुष्य उन्मुक्त, चिंतारहित, प्रसन्नचित्त जीने के निमित्त है। तभी वह अपनी क्षमताओं का इष्टतम प्रयोग करेगा और समाज को अपना सर्वोत्तम दे पाएगा।
प्रकृति की अनुपम घटाएं, वैविध्यपूर्ण रंगीन वनस्पतियां, पक्षियों के सुरीले कलरव, अलौकिक अनुभूतियां सृजित करते जलप्रताप तथा लौकिक जगत में नाना रंगरूप व गुणों के मनुष्य इसीलिए हैं ताकि इनका मुक्त आनंद लेते हुए स्वयं को ग्राही, सकारातमक मुद्रा में रखा जाए। अनावश्यक चिंताओं और उथलपुथल से सहज, सरल नहीं रहेंगे तथा जीवन के सुखों से वंचित रहेंगे।
सरल नहीं रहने का खामियाजा
प्रकृति की भांति जीवन का मूल स्वरूप सरल, सुबोध है। निजी स्वार्थ, कुत्सित इच्छाएं तथा अत्यधिक अपेक्षाएं पाल कर हम जीवन को जटिल बना देते हैं। सोच विकृत होगी तो संवादों में लागलपेट और व्यवहार में दुराव, वैमनस्य और दोगलापन पसर जाएगा; सौहार्द और दया और प्रेमभाव विलुप्त हो जाएंगे। ऐसे व्यक्ति का सानिध्य किसी को रास नहीं आता, कालांतर में वह निरीह, अलग-थलग पड़ जाएगा। इसके विपरीत सीधी सोच वाला निश्छल, निस्स्वार्थ मन परहित और प्रेम का वास होता है, उसमें वैमनस्य, घृणा, अहंकार आदि के लिए स्थान नहीं होता।
भाषा नपीतुली, आडंबर-रहित होगी
सहज सोच और आचरण से व्यक्ति आत्मिक, मानसिक और लौकिक दृष्टि से उन्नत होता है। तो भी वह औसत या लघु मानसिकता के व्यक्ति को छोटा आंकने, गिराने या अपमानित करने की चेष्टा नहीं करेगा बल्कि उसका मनोबल बढ़ाएगा। वस्त्र, अलंकरण, पुरस्कार आदि की चाहत से परे, सरल स्वभाव के व्यक्ति का कहा-लिखा भी स्पष्ट, दोटूक होगा वह दूसरों को शब्दों के मकड़जाल या विवादों में नहीं उलझाता बल्कि पेचीदा प्रतीत होती परिस्थिति को सुबोध शब्दों में प्रस्तुत कर देगा। सरलता का अर्थ है जो भी अनावश्यक हो उसकी कांट-छांट कर दी जाए ताकि पते की बात ही बची रहे।
अलबर्ट आइंस्टीन मानते थे, कोई वैज्ञानिक सिद्धांत या अवधारणाएं ऐसी नहीं जिन्हें सुबोध शब्दों में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, ‘‘किसी अवधारणा या सिद्धांत की व्याख्या नहीं कर सकने का अर्थ है वक्ता स्वयं उसे नहीं समझता है’’। सरल सोच का व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक तौर पर भी स्वस्थ रहेगा।
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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप 2 अप्रैल 2023, रविवार के दैनिक जागरण (ऊर्जा कॉलम, संपादकीय पेज) में ‘सरल स्वभाव’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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