स्पर्श की करामाती ताकतें वैज्ञानिक तर्ज पर विकसित करना जरूरी

जिन संतानों को शैशव या बचपन में माबाप का पर्याप्त स्नेहिल स्पर्श नहीं मिला उनका भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक विकास ठीक से नहीं हुआ, और इसका खामियाजा आजीवन रहा। जिसे मां का दूध और दुलार नहीं मिले, संपूर्ण-स्वस्थ व्यक्तित्व के तौर पर वह कैसे निखरेगा?

अपने भाव या मंशा जाहिर करने, रूठे को मनाने, भयभीत को सुरक्षा कवच प्रदान करने, मन-तन की पीड़ा दूर करने में ‘स्पर्श’ एक जोरदार थिरेपी है। स्पर्श की बेचूक भाषा वहां भी काम करती है जहां तर्क या दलील ऊपर से सरक जाते हैं। मनुष्य के स्पर्श की भाषा पृथ्वी, बेजवान पशुओं और पेड़-पौधों को भी सुहाती है। मानसिक बीमारियों के उपचार में दोस्ताना स्पर्श की शक्ति किसी भी दवा से ज्यादा असरदार मानी गई है। अच्छे स्पर्श से दुधारु पशु सहजता से, पर्याप्त दूध दुहने देता है। वनस्पति शास्त्री बताते हैं, सहलाए जाते पौधे बेहतर फलते-फूलते हैं। जरूरत है, स्पर्श को स्वतंत्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया जाए और लोकहित में इसके उपयोग की जुगतें पर शोध हों। बॉबी फिशर ने कहा, उपचार के लिए स्पर्श से बेहतर कोई दवा नहीं होती

पृथ्वी का स्पर्श

आदिपुरुष अधिकांश समय भूमि, वायु, जल आदि के स्पर्श में बिताता था। उठते-बैठते, चलते, खाते, सोते वह पृथ्वी की चुंबकीय, अन्य उपचारात्मक व अबूझ शक्तियों से लाभान्वित होता। नंगे पांव चलने से उसके और पृथ्वी तत्व के बीच अवरोध न था, यह तादात्म्य उसके मन, चिŸा और शरीर को स्वस्थ रखता। बाजार मिट्टी के स्पर्श से स्वास्थ्य लाभ के प्रति जागरूकता का फायदा लेने लगा है। ऐसे जूते उपलब्ध हैं जिन्हें पहन कर लगता ही नहीं कि पांवों में कुछ पहना है।

मां – पिता का जादुई स्पर्श

मां का जादुई स्पर्श बच्चों को आजीवन प्रतिकूल और सामान्य लम्हों में आत्मिक संबल देता है। अब शिशु विशेषज्ञ मानते हैं कि नवजात शिशु के पोषण ही नहीं, भावों और समग्र वृद्धि के लिए मां का शारीरिक सानिध्य सर्वोपरि है। इसीलिए वैश्विक स्वास्थ्य संस्थाएं स्तनपान प्रथा का पुरजोर समर्थन करती हैं। इसके विपरीत जो बच्चे मां की गोद से मिलते लाड़-दुलार से वंचित रहते हैं उनमें मानसिक और शारीरिक विकृतियां अधिक देखी जाती हैं। जिस बच्चे को बड़ी उम्र तक मां या पिता ने सहला कर सुलाया, और जिसे 5-6 वर्ष में ही रहने-सोने के लिए अलग कमरा दे दिया गया, उन दोनों की सोच, मिजाज और नियति में फर्क तो होगा ही। अच्छे कार्य के लिए जिस बालक की पीठ थपथपाए जाने के दूरगामी मायने होते हैं।

चरणस्पर्श का विशेष माहात्म्य

कुछ दशक पूर्व तक पिता या शिक्षक की आत्मीयता से सराबोर हस्तलिखित चिठ्ठियां अनेक संतानें दीर्घकाल तक सहेज कर रखती, और उनसे प्रेरणा लेती रही हैं। सनातनी परंपरा में चरणस्पर्श का विशेष माहात्म्य है। बु़िद्ध, आयु या गरिमा में उच्चतर व्यक्ति के चरणस्पर्श और आशीर्वाद पाने की प्रक्रिया में स्पर्शकर्ता को अनेक लाभों का उल्लेख है। इससे जहां एक ओर श्रेष्ठ व्यक्ति की पॉजिटिव ऊर्जा हमारे शरीर में स्थानांतरित होती है, वहीं हमारा अहंकार क्षीण होता है, समर्पण और विनम्रता भाव बढ़ते हैं तथा आध्यात्मिक व मानसिक विकास होता है। नियमित चरणस्पर्श से आयु, यश और कीर्ति बढ़ने का पाठ हम बाल्यकाल से पढ़ते आए हैं।

त्वचा के चमत्कारी रिसेप्टर

स्पर्श का माध्यम हमारी त्वचा है। स्पर्श से हम बाह्य जगत को बेहतर जानते हैं। सूचना पाने के लिए हाथ में उच्च संवेदनशीलता का एंटीना, और हथेली में हजारों रिसेप्टर हैं। अमुक वस्तु कितनी ठंडी या गर्म, सख्त या नरम, सूखी या गीली होगी, इस जानकारी के लिए उपकरणों पर निर्भरता न सदा व्यवहार्य है न पूर्णतया विश्वसनीय; मशीन चूक कर सकती है। सटीक ज्ञान के लिए हमें हाथ से छूना होगा। हाथ से लिखने पर शब्दों की बारीकियां मनस्पटल पर बैठ जाती हैं। आरंभिक कक्षाओं में अशुद्ध लिखे शब्द को पांच बार लिखने के बाद दोबारा चूक की संभावना कम रहती थी। जिस प्रशिक्षु इंजीनियर ने अपने हाथ से वर्कशाप में कार्य किए वही ऊंचाइयों तक पहुंचा।

शरीर का सबसे बड़ा अंग होने के साथ त्वचा अत्यंत संवेदनशील और समझदार भी है। यह भले-बुरे स्पर्श के भेद को समझती है। स्पर्श की कारगरता का आधार वैज्ञानिक है। आलिंगन तथा अन्य गैरसेक्सुअल स्पर्श से सुखद अहसास दिलाने वाले डोपामाइन और सिरोटोनिन हार्मोन तथा तनाव का शमन करने वाले कॉर्टिसोल और नोरेपिनेफ्राइन हार्मोन उत्सर्जित होते हैं। वैज्ञानिक प्रयोगों में शारीरिक स्पर्श से नर्वस सिस्टम में सुधार पाया गया है।

उठते ही हथेली में विष्णु के दर्शन

हथेली में विष्णु भगवान का वास माना गया है, इसीलिए सुबह उठते ही दोनों हथेलियों को देखने की परिपाटी बनी। नई पीढ़ी स्पर्शलाभ से वंचित तो नहीं हो रही? बढ़ती उम्र में अपने हाथों भोजन पकाने तथा अन्य जरूरी कार्य स्वयं निपटाने वालों की वह दुर्गत नहीं होने वाली जो हाथ-पांव छोड़ देने वालों की होती है।

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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप नवभारत टाइम्स के संपादकीय पेज पर “कुछ महसूस करना है तो छूकर देखना      होगा” शीर्षक से 24 नवंबर 2023, बृहस्पतिवार को प्रकाशित हुआ।

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