बंद करिए फालतू के ऐलान – मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं। हर किसी के बस की नहीं है किसी को इज्जत बख्शना, पहले अपने भीतर झांकना होता है। मत करिए किसी की इज्जत, अपनी जबान को तो गंदा मत कीजिए।
देहात में अकेले बसर करते बुजुर्ग खाने के बाद झपकी ले रहे थे कि दूर के एक रिश्तेदार ने फोन पर उनके एकमात्र पोते की दो सप्ताह बाद शादी की खबर सुनाई। वे धक्क रह गए, ढ़ेर अरमान जो संजोए रखे थे। तुरंत बेटे को फोन लगाया, यह मैं क्या सुन रहा हूं? जवाब आया, ‘‘यह सब अचानक हो गया। संयोग से लड़की वालों का कनाडा से आना हुआ, विलंब करने से बात लटक जाती। दूसरा, इन दिनों ऑफिस में नए प्रोजेक्ट के अत्यधिक दबाव के चलते आपको बताना छूट गया, इसका अफसोस रहेगा। आप दो चार दिन पहले घर आ जाएं, हम सभी का सौभाग्य होगा, घर की शोभा बढ़ेगी। जब कहेंगे, गाड़ी भेज दूंगा। मैं आपको कितना सम्मान देता हूं और ‘मिस’ करता हूं, यह बताने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं, हालांकि मेरे करीबी मित्र इसके साक्षी हैं।’’
जो स्वयं का सम्मान करेगा वही दूसरे को सम्मान देगा। जो दूसरे के गुण या प्रतिभा का लोहा माने, ग्राही प्रवृत्ति का हो, जिसमें आत्म-सम्मान हो वही दिल से दूसरे की कद्र करेगा। मार्क ट्वेन कहते हैं, दूसरा सम्मान न दे तो हमारा मुंह फूल जाता है हालांकि हम स्वयं अपनी अस्मिता को उचित सम्मान नहीं देते। सम्मान देने वाले व्यक्ति की सोच व्यापक होती है। उसके व्यवहार में अहंकार नहीं झलकता, वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने की भ्रांति में नहीं जीता। कृतज्ञता का भाव मुखर रहने से उसके हृदय में दूसरों के लिए सम्मान स्वतः उपजता है। यह जानते हुए कि प्रत्येक व्यक्ति में गुणावगुण हैं, वह किसी को हेय नहीं समझता। इसके विपरीत, निजी स्वार्थ से प्रेरित संकुचित सोच का व्यक्ति आयु, अनुभव, बुद्धि, रिश्ते, कौशल, ज्ञान में उच्चतर व्यक्ति से कतराएगा, उससे सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने की बजाए उससे सायास दूरी बनाएगा। दूसरों से कुछ जानने, सीखने, समझने की शर्त है कि मुद्रा ग्राही हो और मस्तक झुका हुआ। दूसरे को सम्मान न देने वाला कुछ नया सीखने में अक्षम हो जाता है तथा सफलता की राह में पिछड़ जाता है।
सम्मान देना उच्च कोटि का मानवीय गुण है; इस प्रक्रिया में सम्मान देने वाला अमुक व्यक्ति के बाह्य स्वरूप के समक्ष नहीं बल्कि उसमें निहित अद्भुद् गुणों और उसकी दूरदृष्टि के प्रति नतमस्तक और श्रद्धामय होता है। सम्मान देने से हम न केवल दूसरे की गरिमा और गुणों का अंश ग्रहण करते हैं अपितु आत्मिक तौर पर बेहतरीन होते हैं। सम्मान देने वाला ही सम्मान पाने का अधिकारी बनता है।
सम्मान देने के तौरतरीकों में यह सार्वजनिक या व्यक्तिगत ऐलान नहीं है, ‘‘हम आपका बहुत सम्मान करते हैं’’। मनोहारी शब्दों, अदाओं, फूलमाला पहनाने, गुलदस्ता पेश करने, आदि से रस्मभर निभाई जाती है। अधझुकी गरदन या तिहाई-चौथाई उठे हाथ से ‘‘हाय’’ बोल कर भी सम्मान नहीं दिया जाता, यह तो सम्मान का उपहास हुआ। जैसे मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर की आरती, नमाज या प्रार्थना की आवाजें प्रभु तक नहीं बल्कि गिर्द के लोगों तक पहुंचती हैं, प्रभु तो मौन की भाषा समझते हैं, उसी भांति गरिमापूर्ण व्यक्ति आपके हावभाव से खयालों और मंशा को सहज भांप लेते हैं; वे आडंबरी और वास्तविक सम्मान का विभेद बखूबी समझते हैं। वास्तविक सम्मान के लिए उपक्रम की आवश्यकता नहीं, उपक्रम तो वे भी बेहतर कर लेते हैं जो दूसरों को लेशमात्र सम्मान नहीं देते। पद, अलंकरण या पावर के कारण दिया जाता सम्मान झूठा है, यह केवल अहंकारी को तुष्ट करता है। और जब पद या पावर छिन जाती है तो उससे कन्नी काटने लगते हैं।
मातापिता व परिजनों से इतर उन व्यक्तियों को सम्मान देना सदा हमारे दीर्घकालीन हित में रहता है जिनके विचार, मशविरे, अनुभव, आचरण और सदाशयताओं के प्रति हम बरसों तक आश्वस्त रहे। वैवाहिक चयन, भूखंड या मकान का क्रय-विक्रय, नए कारोबार की शुरुआत, नौकरी या व्यवसाय में परिवर्तन, शहर छोड़ कर अन्यत्र बसना, जैसे जीवन के अहम अवसरों पर उनकी राय लेने से हम उनका सम्मान करते हैं। यह नहीं कि सम्मान दिए जाते व्यक्ति से मतभेद नहीं होगा। भले ही हम उनकी राय पर कार्य न कर सकें, तो भी संपूर्ण स्थिति उनके संज्ञान में ला कर हम उनके विश्वासपात्र बने रहते हैं और आपसी रिश्ते सुदृढ़ करते हैं। इस प्रक्रिया में हम न केवल उचित मार्गदर्शन के लाभार्थी होते हैं अपितु सयानों की शुभकामनाएं अर्जित करते हैं जो हमें सन्मार्ग की ओर प्रशस्त रखती हैं।
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इस आलेख का संक्षिप्त रूप 5 मई 2022, बृहस्पतिवार के नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कॉलम में प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्करण में आलेख का लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/dharam-karam/moral-stories/moral-story-grandparents-and-grandson-relation-know-how-to-respect-everyone-in-relation-108934/
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प्रणाम! निश्चित ही जो स्वयं को सम्मान देता है वही सम्मान का सही अर्थ जानता है। किंतु अपने को सम्मान देने के लिए अपने ही भीतर तक बुहारने मे प्रयासरत रहना होता है जो आमजन को थकाऊ व उबाऊ सा लगता है।
उत्तम, प्रेरणास्पद लेख! धन्यवाद।।
बहुत सटीक लिखा है कि सम्मान देने के बजाय आजकल लोगों के पास एक तकियाकलाम होता है, “मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं”। कोई पलट कर पूछ ले कि भाई, बेइज्जती क्यों करोगे, तो कोई जवाब नहीं दे पाएंगे। सम्मान देना एक अंदरूनी मामला है जो अंतःकरण से ही संभव है।