जो, जितना, आपके निमित्त है वह कोई नहीं छीन सकता, इसलिए हड़बड़ी में अपना चैन नहीं खोएं

जल्दी का काम शैतान का। हड़़बड़़ी मचाएंगे तो काम में विलंब होने के आसार बनेंगे, काम उलटपलट भी सकता है। एक ट्रक के पीछे ज्ञान की बात लिखी थी, ’’जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए!’’ धैर्य रखें, कुल मिला कर फायदे में रहेंगे, सुखी रहेंगे। याद रहे, जो आपके निमित्त, जितना आपके लिए तय है वह कोई नहीं छीन सकता, फिर छटपटाहट क्यों? गीता भी कहती है कि आप केवल अपना कर्म संयत हो कर करते रहें।

हाइवे पर आप 120 या अधिक स्पीड से दौड़़ते वाहन में बैठे हैं। दोनों ओर की लहलहाती धान, उनसे रिसती तृप्तिदाई खुशबू, हवा की मस्ती में झूमते पेड़ों की सरसराहट या खिलखिलाते रंगबिरंगे फूलों की महक का आपको पता ही नहीं चलेगा। कुछ दिखेगा तो उसी स्पीड से चलते अन्य वाहन। रास्ते के दृश्यों का लुत्फ लेना है तो इत्मीनान से, हौलेहौले चलना पड़ेगा। कहीं ठहर जाएं तो और अच्छा। जिंदगी की दौड़ भी इसी भांति है। हड़़बड़़ी में न तो इर्दगिर्द की खुबसूरतियों का लुत्फ ले सकेंगे न ही दूसरों को समझ पाएंगे। जल्दबाजी के कार्य प्रायः आधे-अधूरे तथा विलंब से होने की संभावना बढ़ेगी। इसके विपरीत, संयत व्यक्ति के व्यवहार और आचरण में व्याकुलता और उद्विग्नता नहीं होगी। धैर्य रखेंगे तो अपने किए या बोले का मलाल नहीं रहेगा।

लंबी चौड़ी चिठ्ठी, सार कुछ नहीं

एक नामी लेखक ने अपने मित्र को कई पेजों की लंबी चिठ्ठी लिखी। अंत में लिखा, मैं बहुत जल्दी में था, इसलिए इतनी भारी भरकम चिठ्ठी लिखनी पड़ी है। संयत हो कर, सुविचार से लिखेंगे तो समय जरूर अवश्य लगेगा किंतु आपका लिखा सर आंखों पर रखा जाएगा।

खानपान, ड्राइविंग, डाक्टर को दिखाने – सब जगह हड़़बड़़ी

सामान्य गति से संपन्न किए-कराए कार्य के सुफल और भागमभाग के दुष्परिणाम देख कर भी अंधा बने रहना मनुष्य की बड़ी विडंबना है। पोषणविज्ञानियों का कहना है, यदि भोजन धीमी आंच में पकाया जाएगा तो वह अधिक स्वादिष्ट, जायकेदार और पौष्टिक होगा क्योंकि तेज आंच में बहुत से विटामिन और पोषकतत्व नष्ट हो जाते हैं। शहरी सड़कों पर तेजी दिखाने की वाहन चालकों की प्रतिस्पर्धी मुद्रा के घातक परिणामों से सभी सुपरिचित हैं। दूसरे चालक को पिछाड़ने में दुर्घटना होने या होते-होते बचने पर दोनों पक्षों द्वारा आक्रामक रुख अख्तियार करने और अदालत पहुंचने के मामले निरंतर बढ़़ रहे हैं। ट्रक के पीछे की इबारत बहुत कुछ बताती है, ’’जिन्हें जल्दी थी, वे चले गए!’’ लोकजीवन में धैर्य की भयंकर गिरावट की परिणति का मार्मिक दृष्टांत मरीज को इमरजेंसी में लाए एक व्यक्ति का है। अन्य गंभीर मरीज के उपचार में व्यस्त डाक्टरों से तनिक विलंब क्या हुुआ कि उनसे न रहा गया। डाक्टरों को अत्यधिक ऊलजलूल बोलते चले गए। उन्हें समझाने का यत्न किया गया तो और आगबगूला हो आ गए। बाद में पता चलता है कि जिस मरीज को देखने के लिए होहल्ला मचाया था, वह तो चंगा हो गया किंतु मरीज को साथ लाए सज्जन को दौरा पड़ा। दिमाग की नसें फट गईं और उन्हें बचाया नहीं जा सका।

तेजमिजाजी का हश्र

माना कि जीवन और मौत की परिस्थिति में तुरंत कार्रवाई आवश्यक है, किंतु दैनंदिन कार्यकलापों जल्दबाजी का पक्षधर दूसरों के किसी भी कृत्य, आचरण या शब्दों पर तुरंत बौखलाएगा और स्वयं न्यायधीश बन कर फैसला सुना देगा। उस विषय पर भी खासा लैक्चर झाड़ देगा जिसका बुनियादी ज्ञान भी नहीं। नतीजन वह उपहास का पात्र बनता है।

प्रकृति से सीखा जाए

प्रकृति हड़बड़ाहट नहीं मचाती तथापि इसके समस्त कार्यकलाप न केवल सुचारु रूप से संपन्न होते हैं बल्कि इनके संचालन में गजब की लयबद्धता और व्यवस्था है। इसीलिए इनमें सतत, भले ही मंद-मंद उद्भव होते रहने और सृजन की क्षमता है। जिस विशाल भूस्खलन, तूफान या बादल फटने की सुन कर हम सन्न रह जाते हैं वह एक सुदीर्घ योजना की क्रमगत परिणति होती है। इस अंजाम तक पहुंचने में अनेक वर्ष, दशक, सदियां लगी होंगी। यह दूसरी बात है कि तथ्यों तक सीमित पहुंच के कारण विज्ञान अनेक प्राकृतिक विपदाओं की व्युत्पत्ति और क्रमवार बढ़त का पूर्वानुमान नहीं ले पाता। धीमे धीमे घट रहीं भौगोलिक प्रक्रियाओं में युगों बीत जाते हैं और महाद्वीप निर्मित हो जाते हैं, नदियों के मार्ग बदल जाते हैं, गगनचुंबी पर्वत इधर से उधर स्थानांतरित हो जाते हैं। जीवन के सभी बड़े कार्यों के पीछे भी आवेश या द्रुत कार्रवाई नहीं बल्कि सुविचारित दूरदृष्टि मिलेगी।

धैर्य का मीठा फल

जीवन तनातनी, ऊहापोह और ताबड़तोड़़ में जीने के निमित्त नहीं है; यह शांति, धैर्य और बेफिक्री से जीने के लिए है। संयत व्यक्ति आश्वस्त रहता है कि संसार में उसके निमित्त जो भी, जितना भी है वह कोई नहीं छीन सकता, उसे अवश्य मिलेगा। इसीलिए गंतव्य तक पहुंचने या अभीष्ट को पाने के लिए वह जल्दी नहीं मचाएगा, आवेश या भिड़ंत का रुख नहीं करेगा। अपनी वर्तमान गति, स्थिति और परिवेश से संतुष्टि उसके लिए बेहतरी के द्वार खुले रखेगी।

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यह आलेख तनिक संक्षिप्त रूप में 30 सितंबर 2022, शुक्रवार के नवभारत टाइम्स (संपादकीय पेज, स्पीकिंग ट्री कॉलम) में “सुखी जीवन के लिए संयमित आचरण का होना बहुत जरूरी” शीर्षक से प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्करण का लिंक: https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/speaking-tree/only-in-this-way-can-one-get-peace-satisfaction-and-patience/amp_articleshow/94548007.cms

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