उनसे न उलझें जो आपकी चुप्पी तो क्या, बोल ही नहीं समझते; बस अपने कार्य में चित्त लगाए रखें

जिन व्यक्तियों से रोजाना का उठना-बैठना है उनसे मिलने के लिए भी सजना-धजना जरूरी समझते हैं। वह क्या कहेगा, हमारे बारे में क्या सोचता है इसे खामख्वाह तवोज्जु देते हैं और अपनी चौकड़़ी भूल जाते हैं। हम भले हों, न हों, चलेगा किंतु दुनिया भला समझे, अहम यह हो गया है।

हर किसी को खुश रखने की फिरा में हम यह भूल जाते हैं कि हम क्या हैं, और क्या हमारा एजेंडा है। शर्मा दंपति की ही देख लीजिए। शादी के मुकाम पर क्या पहुंचे कि मानो वज्रपात हो गया। अफरातफरी में वह अटैची ही घर छूट गई थी जिसमें धरे कपड़े मौके से ऐन पहले पहने जाने थे। शर्माजी तो तैयार थे, जिस लिबास में हैं उसी से काम चल जाएगा किंतु श्रीमती शर्मा को यह हरगिज मंजूर न था। वे बुदबुदाईं, ऐसी साधारण साड़ी में नाक कटवाने से तो न जाना बेहतर भले ही शादी दूर की हो! शमियाने के बाहर ही शगुन का लिफाफा एक परिचित को थमाया और उनकी कार ने डेढ़ घंटे के वापसी सफर का रुख किया। श्रीमतीजी की पीड़ा को समझते हुए शर्मा दंपति ने एक ठीकठाक होटल में डिनर किया और दिल को समझाया।

दमदार छवि की लालसा:  दमदार, बेहतरीन छवि की प्रति चिंतित व्यक्ति अपने सुनहरे पक्षों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करेगा तथा अप्रिय पक्षों की दूसरों को भनक नहीं लगने देगा। उसकी सोच और गतिविधियां एक ही मान्यता पर टिकी होंगी, ‘‘लोग क्या कहेंगे?’’ अपने बाह्य रंगरूप को संवारने-निखारने में वह कसर नहीं छोड़़ेगा। नवजात शिशु को तीव्र निमोनिया है, इस तथ्य की अनदेखी कर वह सोशल मीडिया के जरिए या अन्यथा ऐलान करेगा कि डिलीवरी फलां नामी हॉस्पिटल में हुई है। हताहत टांग के संभावित दुष्परिणामों से ज्यादा पीड़़़ा उसे पैंट में पड़ गए दाग की होगी। बेचारा नहीं जानता कि एक पांव में चप्पल और दूसरे में जूता पहने लंबी मॉर्निंग वाक कर डालने पर उसे ताकने की किसी को फुर्सत नहीं है। जो लोग आपको बूझते हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या पहनते, खाते-पीते या कैसे रहते हैं; और जो आपको समझते ही नहीं, बल्कि समझना ही नहीं चाहते, उनकी वाहवाही के लिए आप आतुर रहते हैं। उनकी आलोचना से आपकी नींद उड़़़ जाती है। समाज में व्यापक दुख-दर्दों का इससे बड़ा कारण नहीं होगा!

विश्व कर्मक्षेत्र है: दुनिया कर्मस्थली है, अकर्मण्यों के लिए यहां कोई स्थान नहीं। अपने दिव्य स्वरूप को जानने वाले और तदनुसार आचरण, व्यवहार और कर्म को ढ़ालने वाला कर्मठ व्यक्ति अपनी क्षमताओं का भरपूर दोहन करते हुए सही अर्थों में जीता है और दूसरों को सही जीवन की राह दिखाता है। अपने कार्य और निर्णय के लिए वह दूसरों की पुष्टि नहीं तलाशेगा। प्रश्न है, आपके रोल मॉडल कौन हैं और कैसी संगत आपको रास आती है चूंकि जिस संगत में स्वयं को ढ़ालेंगे उसी अनुरूप आपका भविष्य तय हो जाएगा।

दूसरों के बंधक न बनें, अपने आलिक स्वयं रहें: हर गली-मोहल्ले में नाना प्रकार के व्यक्ति पाए जाते हैं। किस संगत में आपको रहना है, यह आप तय करते हैं। इसीलिए अपने हालातों के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। दूसरा, आपके बारे में लोग जो बोलते हैं उससे आपकी नहीं उनकी असलियत झलकती है। अलबर्ट आइंस्टीन के शब्दों में, मध्यम बुद्धि के व्यक्ति सदा महान विभूतियों का प्रचंड विरोध करते रहे हैं। युगकारी इतिहास साक्षी है, मौलिक सोच के व्यक्तियों के बोल और कार्य सामान्य बुद्धि वालों के गले नहीं उतरते। लाओत्जे के अनुसार, दूसरों के सोचने की परवाह करने का अर्थ है उन्हीं के अनुरूप चलना और उनका बंधक बन जाना। वर्जीनिया वुल्फ ने भी कहा कि दूसरों की निगाहें आपकी जेल बन नहीं बननी चाहिएं, ऐसे में उनके विचारों के पिंजड़ा बन कर रह जाएंगे।

अपने मार्ग का राही संयत, संतुष्ट और प्रसन्नचित्त रहेगा। वह जानता है कि प्रसन्न रहना निजी मामला है और अंतकरण प्रसन्न हो तो बाहरी स्वीकृति का अर्थ नहीं रहता। ऐसे में मौसम की दुश्वारियां भी बेअसर हो जाती हैं। मुखौटाप्रिय समाज में प्रचलित रस्मों की अनुपालना से आप न तो अपनी सोच को उन्नत या व्यापक रखेंगे बल्कि वैचारिक समृद्धि की ओर प्रशस्त रहेंगे। तुच्छ सोच प्रगति की भारी बाधा है। याद करें, बचपन में बालू के ढ़ेर में अपने-अपने मकान बनाते, कोई शरारती बालक दूसरे का मकान तोड़ देता तो बवाल मच जाता था। कभी इसी पर हाथापाई हो जाती कि फलां बालक मुझे घूर रहा था। यह कच्ची उम्र की बात ठहरी। सयानी उम्र में इसी प्रकार की क्षुद्र सोच रखने का अर्थ है इतने वर्षों में स्वयं को बौद्धिक तथा आध्यात्मिक स्तर पर परिमार्जित नहीं किया।

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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप नवभारत टाइम्स के संपादकीय पेज (स्पीकिंग ट्री कॉलम) में 28 दिसंबर 2022, बुधवार को ‘‘जिस संगत में स्वयं को ढ़ालेंगे वैसा ही आपका जीवन होगा” शीर्षक से प्रकाशित। ऑनलाइन संस्करण का शीर्षक ‘‘जैसी संगत वैसा जीवन, यही है मूलमंत्र”, लिंक है:

https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/speaking-tree/moral-education-of-life/articleshow/96560818.cms

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One thought on “उनसे न उलझें जो आपकी चुप्पी तो क्या, बोल ही नहीं समझते; बस अपने कार्य में चित्त लगाए रखें

  1. सहमत – हालांकि संगत कदाचित परिस्तिथिजन्य भी होती है तथा जानते हुए भी व्यक्ति को अप्रिय परिवेश में परिणाम जानते हुए भी लिप्त रहना पड़ सकता है। शेष जिंदगी कितनी है यह नहीं पता, अतः अच्छी संगत से शेष जीवन को उन्नत बना सकते हैं। प्रेरणादायक लेख।

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