आप उसी परमशक्ति के अंश हैं जिसने समूचे ब्रह्मांड की रचना की। जब आप यह स्वीकार कर लेंगे तभी उस शक्ति के असंख्य लाभों के भागीदार बनेंगे, अन्यथा नहीं।
अपने भक्तों के हित में प्रभु अप्रत्याशित, अनोखे कार्य भी कर डालते हैं। शंकर-पार्वती का प्रसंग है। एक भक्त दंपत्ति को आवश्यक कार्य से नगर से बाहर जाना पड़ा। समस्या इस दौरान छोटे बच्चों के रखरखाव की थी। भक्त दंपत्ति ने अपने आराध्य से सहायता की गुहार लगाई। कहते हैं, भक्त दंपत्ति के लौटने तक शंकर-पार्वती ने स्वयं उपस्थित रह कर बच्चों का संभरण और संरक्षण किया। भक्त की आवश्यकता की आपूर्ति के लिए प्रभु द्वारा अपने नियमों में ढ़़ील देने के अनेक उल्लेख हैं; ‘‘प्रेम प्रबल के पाले पड़़ कर प्रभु ने नियम बदल डाला’’। निष्ठावान भक्त पर विपत्ति आती है तो प्रभु उसके समक्ष खड़े हो जाते हैं, और भक्त का बाल बांका नहीं हो़ने देते।
पहले अनुकूल वातावरण बनाना होगा: जैसे दैविक अस्मिताएं समस्त चराचर जीवों को एक व्यवस्था में पिरोती हैं, उनकी परवरिश, संवार और सुरक्षा करती हैं उसी भांति पित्र अपनी जीवित संततियों का हित चाहते हैं। अदृश्य पित्रों को वर्तमान पीढ़़ी का सानिध्य सुहाता है। प्रभु और पित्रों में हमारे गिर्द ठौर बना कर हमारे कार्यों में योगदान देने की लालसा रहती है। किंतु इससे पूर्व वे आश्वस्त होना चाहते हैं कि मेजबान की सोच, उसका आचरण और कर्म दैविक विधान के अनुरूप सदाशयता, निश्छलता, निष्ठा और भक्तिभाव से परिपूर्ण है। वे यह भी सुनिश्चित करती हैं कि मेजबान उनकी बाट जोहता है, तथा उनके अनुकूल वातावरण निर्मित करने का यत्न करता रहता है। सदाचारी आत्माएं मरणोपरांत अधिक सशक्त हो जाती हैं। लौकिक मंशाओं को आंकने-समझने में वे नहीं चूकतीं। जीवित संततियों में अपने प्रति समादर, उपेक्षा या तटस्थता का भाव वे भांप लेती हैं।
सदाचरण, परहित, सत्य, दान, पारदर्शी व्यवहार, अन्य प्राणियों से सहानुभूति, त्याग आदि ईश्वरीय गुण हैं। इन मूल्यों पर चलने वाले का मनमंदिर ईश्वर का वास होता है। श्रद्धा व आराधना के पात्र ऐसे व्यक्ति ईश्वर के प्रतिरूप होते हैं। स्वयं को ईश्वर का अभिन्न अंग मानने वाले व्यक्ति में स्वतः ही उच्चतर शक्तियों का प्रवाह बन जाता है, उसकी प्रकृति ईश्वरमय हो जाती है। विकसित दूरदृष्टि के कारण वह दूसरों का भविष्य प्रायः पढ़ लेता है, उसे पता होता है कि कार्य परिसर या घर उससे मिलने आए व्यक्ति का प्रयोजन क्या है। उसे धन चाहिए तो कितना, वह लौटाएगा तो कब और कितना?
उच्चतर शक्तियों से तादात्म्य जरूरी है: परमशक्ति में पूर्ण आस्था से अभिप्रेरित व्यक्ति उच्चतर शक्तियों से तालमेल में रहेगा। निजी स्वार्थों और लौकिक अभिलाषाओं की आपूर्ति में वह अमूल्य समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करेगा बल्कि सतत आध्यात्मिक समृद्धि के मार्ग प्रशस्त रहेगा। उच्चतर शक्तिों के संबल से उसका मन शांत, संयत रहेगा तथा शरीर स्फूर्तिमय और जीवंत। वह जानता है कि घृणा, वैमनस्य, दुराव, भय या संशय के विचार व्यक्ति को निम्न ऊर्जा क्षेत्र में ठेलते हैं।
आचरण सहज रखें: दैविक शक्तियों का सानिध्य पाने के लिए पहले हमें बाल समान सहज प्रवृत्ति अपनानी होगी; हम जो हैं वही बने रहें। प्रभु की भांति सिद्ध पुरुष सुपात्र शिष्यों की तलाश में रहते हैं जिन्हें भविष्य में वृहत्तर दायित्व सौंपे जा सकें। उच्च हुनर तथा श्रेष्ठ वस्तुएं प्रदान करने के लिए वे उत्सुक रहते हैं। मनोयोग से उच्चतर शक्तियों का आह्वान किया जाए, भक्ति बगैर शर्त, निस्स्वार्थ हो तो ईश्वर चले आएंगे। ‘‘कौन कहता है भगवान आते नहीं’’?
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यह आलेख तनिक परिवर्तित रूप में दैनिक हिन्दुस्तान के मनसा वाचा कर्मणा काॅलम में 27जनवरी 2023, शुक्रवार को प्रकाशित हुआ, अखवार के आनलाइन संस्करण में आलेख का लिंकः https://www.livehindustan.com/blog/mancha-vacha-karmna/story-hindustan-mansa-vacha-karmana-column-27-january-2023-7685740.html
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