आने वाला वक्त कैसा गुजरेगा, यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। किंतु इतनी बेचैनी ठीक नहीं कि एक-दर-एक ज्योतिषियों, मंदिर-मस्जिदों, गुरुओं-फकीरों के चक्कर लगने शुरू हो जाएं। ऐसे तो आप भटकते ही रहेंगे। अपने भीतर झांकें। परम शक्ति का अंश होने के नाते आप में अथाह सामर्थ्य है जिसके बूते आप सुंदर भविष्य स्वयं निर्मित कर सकते हैं।
प्रत्येक मनुष्य को स्वयं के, संतति के तथा परिजनों के सुंदर भविष्य की चिंता रहती है, इसमें अनुंचित कुछ नहीं है। इस आशय से वह अपनी समझ के अनुसार संघर्ष भी करता रहता है। इसके बावजूद थोड़े ही हैं जो भविष्य को ले कर आश्वस्त रहते हैं। अधिसंख्य जन सदा आशंकित, चिंतित या उद्विग्न मिलेंगे। यह भारी अंतर व्यक्ति की सोच से उत्पन्न होता है। सोच में अस्पष्टता, विकार या संदेह हो तो सुख-संतुष्टि तो दूर, चिंताकुल, व्यग्र और अधीर रहना व्यक्ति का स्वभाव बन जाता है, वह शांत नहीं रह पाता। इसके विपरीत, प्रभु और उसकी योजना में आस्था रखने वाले को निरंतर उच्च शक्तियों से संबल मिलता रहता हैं। उसे भविष्य की चिंता नहीं सताती। वह विश्वस्त रहता है कि वह अकेला नहीं है, प्रभु साथ हैं, संभाल लेंगे।
आज वही काटेंगे जो कल बोया था: आज की भली या बुरी स्थिति की आधारशिला बीते कल में रखी गई थी। वर्तमान तो कल संजोई गई अभिकल्पना तथा उसके अनुकूल संपादित किए गए कार्यों की स्वाभाविक परिणति है। भलाई, बुराई दोनों वापस लौट कर हमारे पास आती है। आज जो सद्कार्य में निरत हैं वे सुंदर भविष्य की नींव गढ़ रहे हैं।
सोच भी कर्म है: जिन विचारों और अभिलाषाओं को मनमंदिर में प्रतिष्ठित करेंगे उसी अनुरूप हमारा आचरण, व्यवहार तथा कार्य होंगे, और फल मिलेगा। कर्मफल से कोई नहीं बच सकता। इसीलिए शास्त्र और सुधीजन धर्म और सद्बुद्धि के मार्ग पर प्रशस्त रहने का आह्वान करते रहे हैं। सद्बुद्धि का तकाजा है कि उन्हीं व्यक्तियों, वस्तुओं, मूल्यों और संगत को अपनाएं जो हमें सन्मार्ग से विचलित नहीं होने देते।
मनुष्य का मूल स्वरूप दैविक है: प्रत्येक प्राणी का शुद्ध स्वरूप दैविक है, वह सार्वभौम चेतना की सूक्ष्म इकाई है। प्रभु का अंश होने के कारण प्रत्येक मनुष्य अथाह सामर्थ्यपूर्ण है। बृहदारण्यक उपनिषद के बीजमंत्र ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ की अनेक प्रकार से व्याख्या करते हुए आदि शकराचार्य ने यह संदेश दिया कि स्वयं के भीतर निहित ईश्वरीय अंश को अनुभूत कर लेंगे तो आध्यात्मिक और नैतिक रूप से जाग्रत हो जाएंगे। उस स्थिति में हमारे विचार, आचरण और कार्य स्वतः ही ईश्वरीय विधान की अनुपालना में होंगे; सांसारिक विकारों से मुक्त हो जाएंगे, दूसरों के प्रति दुराव मिट जाएगा, मन के विकारों से कमोबेश मुक्त रहेंगे। फिर जैसा चाहेंगे वैसा हमारा भविष्य बन जाएगा।
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इस आलेख का तनिक संक्षिप्त रूप 10 दिसंबर 2024, मंगलवार के दैनिक जागरण के संपादकीय पेज (ऊर्जा कॉलम) में ‘सुंदर भविष्य’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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