चि. उत्कृष्ट और आयु. संस्कृति,
चि. उत्कृष्ट एवं आयु. संस्कृति,
तुम दोनों के विवाह को आज दो वर्ष बीत चुके हैं! मन है, कि चंद शब्द लिखे जाएं।
यह कि वैवाहिक जीवन साल-दर-साल बेहतर होते चलें। हालांकि भावी दांपत्य जीवन के स्वरूप और दशा-दिशा को आंकने के लिए दो बरस की अवधि पर्याप्त नहीं होती। क्योंकि कर्मवीर तो निरतर ‘इवॉल्व’ होता रहता है, विचारों, कार्यविधि और कार्य निबटाने के तौर-तरीकों में संशोधन/फेरबदल कर सकता है, लक्ष्यों में भी यथोचित परिमार्जन में नहीं हिचकता।
हालांकि सत्य यह है कि जिंदगी मूल्यांकन करते रहने के लिए नहीं है। तो भी वैवाहिक या अन्य वर्षगांठों, नववर्ष, जैसे माइलस्टोन सरीखे अवसरों अपनी मूल प्रवृत्ति, सपनों, अभिलाषाओं का सुविचार से विश्लेषण करना दीर्घकालीन हित में रहता है। तब मंजिल तक पहुंचने के तौरतरीकों की सूझबूझ में कदाचित नई दृष्टि मिलती जाती है।
उत्कृष्ट, तुम्हारी परवरिश के दौरान मैंने कमाबेश वैसा ही किया जैसा तुम्हारे दादाजी ने चाहा और किया। सीमित आय के बावजूद बच्चों की पढ़ाई के लिए उनका हाथ नहीं भिंचा भले ही अन्य खर्चों में कटौती की जाती हो। उनकी इच्छा रहती, बच्चे शिक्षित हों, उनमें हौसले हों, उनकी सोच, कार्य और व्यवहार में नेकी, निष्ठा और परहित का भाव प्रधान हो। दोगलापन कतई न हो। वे पैसे को धेय न बनाएं बल्कि सतत स्वयं को नैतिक, आध्यात्मिक, वैचारिक और अकादमिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाते रहें। दिल बड़ा हो; तुम और सिलोगी को ‘सिहांसन बत्तीसी’ और ऐसी पुस्तकें बचपन में खूब रास आई हैं जाहिर है, इसमें निहित बड़े संदेशों के चलते। तुम्हारे दादाजी ने सभी संतानों को नियमित पाठ्यक्रमों से स्नातकोत्तर तक पढ़ाया, स्नातक की डिग्री के बाद कैसे भी, नौकरी के लिए कभी प्रोत्साहित नहीं किया, न ही ऐसा चाहा। मैंने भी वही किया। मैं बोलता-लिखता रहा हूं, स्वयं के बेहतरीन खाने, रहने के जुगाड़ तो छिपकली, तिलचट्टा, गिरगिट चींटी जैसे निम्नतर कोटि के जीव भी कर लेते हैं, मनुष्य से कहीं बेहतर। कुछ उदाहरण — जानवर प्रायः बीमार नहीं पड़ते, पड़ते भी हैं तो स्वस्थ रहने की जुगतें जानते हैं, प्रकृति से तालमेल के कारण। पक्षियों के घोंसलों की इंजीनियरी गजब की होती है, वे लीक भी नहीं करते। परम प्रभु ने मनुष्य के मस्तिष्क को 80 से 100 अरब न्यूरानों से सुसज्जित इसलिए नहीं किया कि वह शान-शौकत, सुविधाएं और आराम के साधन जुटाने में स्वयं को खपा दे। जीवन में जो हासिल करने योग्य है, श्रेष्ठ है, इससे कहीं परे है।
पैसा साधन बनना चाहिए, साध्य नहीं। साधनों की चूहादौड़ के प्रतिभागी संततियों को उचित शिक्षा और संस्कार देने में अशक्त रहते हैं। जिंदगी की संध्या में हताश-निराश त्रस्त पाए जाते हैं। अंदर से निपट अकेले, खोखले, निरीह, मानसिक विकृतियों की ओर अग्रसर। विक्षिप्त होने जा रहे बहुतेरों को देखते हुए यह कह रहा हूं।
दूसरी बात – बहुत दूर जाने के लिए दमखम, हौसले, रुपया और हुनरमंदी काफी नहीं हैं। दिशा भी ठीक चाहिए, अन्यथाएकबारगी ऊपर पहुंच जाने पर भी लुढ़कने का खतरा मंडराता रहेगा।
एक अन्य सवाल संगत का है जो हम स्वयं निर्मित करते हैं। संगत होती नहीं स्वयं बनाई जाती है। हर ही गली में एक से एक लम्पट और सज्जन, उच्च आचरण के लोग मिलते हैं। जिनसे हम जुड़े हैं उनके मंसूबे और कार्य कैसे हैं। क्या उनकी सोच और कार्य उम्दा कोटि की है। समाज में रंगे सियारों की, मध्यम और तुच्छ इरादों से अभिप्रेरित जनों की भरमार है। उनसे जितना लिपटे-चिपटे रहेंगे उसी हिसाब से अपने लक्ष्य प्रभावित होंगे। जिसने भावनाओं को नियंत्रित कर लिया वह जग जीत जाता है।
जिस दायरे में रहेंगे, सोचेंगे वह तय कर देगा, हम कहां पहुंचेंगे। जरूरी नहीं, जिनसे तुम जुड़ा महसूस करते हों उनके भौतिक सानिध्य में रहें। अहम तुम्हारी ड्राइविंग फोर्स, और इसका स्वरूप है।
तुम्हारे बाबत नहीं कहूंगा (ततुम्हें जो अंदाज है कमोबेश सही है)। संस्कृति को इस लघु अवधि में जैसा देखा, वह उत्साहवर्धक है। अपनी धरा, अपनी पैत्रिक भूमि और मूल्यों से जुड़े रहने का जो भाव है बहुत सुंदर और बहुतेरों के लिए अनुकरणीय है। पिछले माह हमारे खंड गांव नहीं जा सकने का मलाल मैं समझ सकता हूं। खैर, फिर मौके आएंगे। संस्कार कैसे अभिव्यक्त होते हैं, ऐसे एकाधिक प्रसंग हैं जिनका उल्लेख अन्यत्र होगा।
न भूला जाए, तुम दोनों के पीछे, संबल प्रदान करती ऐसी अस्मिताएं हैं जो तुम्हें संस्कारी बनाती हैं, और सन्मार्ग पर रखेंगी, जिन्होंने तुम दोनों को अपनी जड़ों से जुड़े रहना, नेकी पर चलते रहना सिखाया। यह मेरे लिए खासकर अभिमान की बात है।
आज ही के दिन, ठीक दो वर्ष पहले 14 दिसंबर 2022 की शुभ वेला में बेटा तुम दोनों प्रणय बंधन में एक हुए, अपने ही गृहराज्य, देवभूमि उत्तराखंड की कण्वनगरी (कोटद्वार) की पावन धरा पर। बरसों सिडनी रहते तुम बाएं-दाएं नहीं भटके, इससे तुम्हारे मूल्यों के प्रति आस्था झलकती है। मुझे विश्वास है, दिल्ली और कोटद्वार की माटी से आस्ट्रेलिया को नए आयाम मिलेंगे तथा भारत और उत्तराखंड का नाम और रौशन होगा। शुभकामनाएं।
Sir really heart touching… आपका पालन पोषण और आपके द्वारा दी गई शिक्षा आपके बच्चों को आगे बढ़ाएगी। आपकी सोच, और आचरण के कारण मेरे हृदय में आपके लिए विशेष सम्मान है,और रहेगा।
एक पिता की भावपूर्ण अभिव्यक्ति …
बहुत सटीक और सारगर्भित सलाह! काश हर माता-पिता इसे समझ और समझा पाते। विश्वास है बेटा बेटी आपके बताये रास्ते पर चलेंगे।
अति सुन्दर और सटीक लेख. आने वाली पीडी पुरखों के त्याग से सीखे कि किन परिस्थियों उन्होंने अपनी सन्तान को पाला ही नहीं ब्लकि अच्छे संस्कार भी दिए.
मुझे लेख एक अद्भुत शुरूवात लगी.
जगदीश नोएडा