आत्ममुग्धता का मारक जुनून – सेल्फी की लत

आज सात साल की लड़की को भी बालों के हेयर पिन और माथे की बिंदी से नीचे सैंडिल तक मैचिंग चाहिए, दूसरों से 18 मंजूर नहीं! अधिकांश महिलाएं जानती हैं कि पिछली शादी की सालगिरह या जन्मदिन में उसकी ननद, भाभी, जेठानी या बहन ने किस मेटीरियल, डिजाइन, रंग और कीमत की साड़ी पहनी थी।

हकीकत यह है कि हर शख्स अपने में मशगूल है, उसे आपकी सेल्फियों को निहारने की फुर्सत नहीं। आप खुशी-खुशी शादी का एलबम जिसे थमाते हैं, उसकी निगाहें उन्हीं पन्नों पर ठहरती हैं जहां उसके फोटो हैं, आपके सरोकारों से किसी को मतलब है तो दिखावाभर। दूसरों के प्रति बेपरवाह, केवल ‘सेल्फ’ को चमकाने के लिए कुछ भी दांव पर लगाने वालों की जमात दिन दुगुनी रात चौगुनी बढ़ रही है। अपने अंग-प्रत्यंगों की बारीकियों और अदाओं में सराबोर वे चाहते हैं कि आप उनकी सेल्फियों में मुखड़ों और मिजाजों की तारीफ करते रहें।

वेब संस्कृति के दौर में स्मार्टफोन से सेल्फी लेना, साझा करना, ‘लाइक’ बटोरना लोगों की नंबर एक हॉबी बन चुकी है। इस दीवानगी को भुनाने में बाजार क्यों पीछे रहे। स्मार्टफोन सेगमेंट के कुछ ब्रांड धड़ाधड़ इसलिए बिक रहे हैं चूंकि इनमें सेल्फी खींचने-भेजने के खास फीचर्स हैं। चौराहों पर मोबाइल से सेल्फी खींचने के उपकरण के खरीददार भी खूब हैं। चेहरों को चमकाते, संवारते महिला, पुरुष और यूनिसेक्स ब्यूटी पार्लरों की बहार है। आकर्षक छवि के चहेते पशोपेश में रहते हैं, ‘लोग क्या कहेंगे’, बाहर निकलने से पहले आईने में कई जोड़े आजमाते हैं कि कौन-सी पोशाक गजब ढाएगी। चेहरे की साजसज्जा की बाबत अमेरिकी अभिनेत्री टाइरा बैंक्स ने कहा, ‘आत्मतुष्टि का संबंध बाह्य सज्जा से नहीं बल्कि आपकी समूची शख्सियत से है।’ किंतु जब दारोमदार सही दिखने पर हो, असलियत और मुखौटे में फर्क धुंधला जाए तब नन्हे पर बरसाया जाता दुलार, परिवार के खिलखिलाते चेहरे, पत्नी की बीमारी के दिनों खाना पकाना, बूढ़ी मां के दुखते पांव दबाना, भतीजे के जन्मदिन पर उसके मुंह में केक ठूंसना जैसी सद्भावनाएं जताना सेल्फी वगैरह के मार्फत ही साझा करना मुनासिब रहता है, ताकि सनद रहे। सेल्फियों के जरिए सार्वजनिक की जाती अन्य पसंदीदा आइटमें हैं ठंडी रात में कोल्ड ड्रिंक गटकना, बाहों में बाहें थामना, नामी होटल में डिनर, उलटी जैकेट पहने मटकना, चर्चित हस्तियों से बातचीत, बेतरतीब ड्राइविंग वगैरह।

बेशक अपने को हीन समझना ठीक नहीं। दिक्कतें तब होती हैं जब हर बात ‘मैं’ से शुरू होकर ‘मैं’ पर खत्म हो। अपने से अधिक मोह यानी आत्ममुग्धता खतरे की घंटी है। यूनानी दंतकथा में अति रूपवान नर्सिसस द्वारा अपनी छवि पर आत्ममुग्ध होकर प्राण खोने में संदेश है कि अपनी ओर मुखातिब रहना प्राकृतिक विधान के विरुद्ध, और इसीलिए विनाशकारी है। प्रकृति की योजना में अन्य प्राणियों का हित भी देखना होगा। आदि समाजों में साहित्य, कला आदि में अपने नाम और छवि को लुप्त रखने के पीछे यही भाव था। अपने नाम और स्वार्थ को ताक पर रख कर परहित में किए गए प्रयास की सुगंध अलौकिक होती है। आज विरले ही बगैर क्रेडिट मिले कुछ करने को तैयार हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने कहा, ‘श्रेय किसे मिलता है इसकी परवाह किए बगैर संपन्न किए कार्य से जितना अथाह हासिल होता है वह विस्मयकारी होता है।’

आत्ममुग्धता की प्रवृत्ति को हवा देती सेल्फियां हमें लीलने लगी हैं, गए साल सेल्फी का शौक फरमाते दुनिया की 27 में से 15 मौतें भारत में हुईं, और इसमें इजाफा जारी है। सेल्फी खींचने में एहतियात बरतने या चयनित स्थलों को ‘नो-सेल्फी जोन’ घोषित करने जैसे उपाय सतही समाधान हैं। सेल्फियों के आदान-प्रदान से वे तुच्छ संवेग और खुशफहमियां संपुष्ट होती हैं जिन्हें प्रोत्साहन देना किसी के हित में नहीं। मसलन दूसरों से बेहतर दिखने की चेष्टा व्यक्तित्व को संवारने में बाधक है। अन्सर्ट हेमिंग्वे की हिदायत है, ‘अपने बंधुओं से श्रेष्ठ बनने में कुछ नहीं रखा है, श्रेष्ठता तब है जब आप अपने पिछले स्वरूप से बेहतर होते हैं।’ अमेरिकन साइकिएट्रिक एसोसिएशन ने सेल्फी खींचने की लत को ‘सेल्फिटिस’ नामक संजीदा बीमारी घोषित किया है। सैम वैक्निन ने आत्ममुग्धता को गंभीर मानसिक विकृति कहा है। मनोवैज्ञानिकों की राय में सोशल साइट पर सेल्फी डालते रहने वाले समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं। पोप बेनेडिक्ट 16 या हमारे प्रधानमंत्री मोदी के सेल्फी प्रिय होने से सेल्फी के शौक को जायज नहीं ठहराया जा सकता।

सेल्फियों से अभिभूत अनेक युवाओं का लाइफस्टाइल उन्हें एकाकीपन और डिप्रेशन की ओर ठेल रहा है। हमें कारगर तरीकों से दिल में बैठाना होगा कि हामी मिलाने वाले केवल खुशहाल दिनों के साथी हो सकते हैं, हितैषी नहीं। प्लूटार्क ने कहाः मुझे वह दोस्त नहीं चाहिए जो मेरे मुंडी हिलने पर वह भी हिला दे, ऐसा मेरी परछाई बेहतर कर लेती है। समझना होगा कि जब हमारी अदाएं और चेहरे नहीं बल्कि कार्य बयां करेंगे, तभी आगे के रास्ते खुलेंगे।

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Published in Dainik Tribune, Chandigarh, India on 16 March 2016. Link:

https://www.dainiktribuneonline.com/2016/03/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%95-%E0%A4%9C%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%82/

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