जीवन चक्र का बुनियादी ज्ञान होगा तो मृत्यु से भय नहीं रहेगा।
जीवन के विभिन्न कार्यकलापों में हलचल और चमक दमक यानी ध्वनि और प्रकाश का समावेश होता है। ये दोनों भौतिक अस्मिताएं हैं यानी इनके प्रत्येक सूक्ष्मांश की निश्चित संहति (इसे भौतिकी में Mass की संज्ञा दी गई) होती है। इनका स्वरूप अस्थाई है, अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए इन्हें स्रोत चाहिए, स्वयं में ये पंगु हैं। दूसरे छोर पर मृत्यु, शांति और अंधकार हैं। अनंत से जन्मीं ये अस्मिताएं अविनाशी हैं, इनका अस्तित्व किसी के बूते नहीं टिका रहता चूंकि ये स्वयं प्रकृति का अभिन्न अंग हैं।
जीवन चक्र
एक निश्चित समयावधि के बाद जीवन, ध्वनि और प्रकाश को अनंतता के गर्त में समा जाना है। तथापि, जीवन चलता रहे, इसीलिए मायावी वस्तुओं की रचना की गई। नवजात शिशु के आगमन और हर्षोल्लास में मनुष्य तनिक भी विचार नहीं करता कि जो आया है उसे जाना है। जीवन जन्म और मरण की छोटी सी यात्रा का नाम है। मृत्यु से ज्यादा निश्चित कुछ नहीं, जीवन की अनिश्चितता से बड़ा सत्य कुछ नहीं। संकीर्ण सोच लिए मनुष्य मकान, सुविधाएं आदि अस्थिर साधन जुटाने में ईश्वरीय अपेक्षाओं और उनकी अनुपालना के परम लक्ष्य से विचलित हो जाता है। इस प्रक्रिया में वह नकारात्मक संवेगों यथा ईर्ष्या, वैमनस्य, लालच, वैरभाव आदि से ग्रस्त होता है। आए दिन होती मौतों के संदेश नहीं पढ़ता। जयशंकर प्रसाद ने कहा, मृत्यु दुनिया का सबसे बड़ा मौन शिक्षक है। हमें कल मरना है, इस दृष्टि से हम जीना सीख लें तो नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचे रहेंगे।
मृत्यु के ज्ञान से उद्विग्नता नहीं आती
मृत्यु के सत्य को समझने वाला जीवनपर्यंत सद्कार्यों से आह्लादित रहता है और मृत्यु के उपरांत सत्कर्मों की पूंजी साथ ले जाता है। यह गीता में भी लिखा है। वह जीवन पूरी तरह जीता है और कभी भी मरने के लिए तैयार रहता है। वह जानता है कि दूसरों की मौत पर पुष्प अर्पित करने से अधिक महत्वपूर्ण उसे जीते जी पुष्प भेंट करना है। मृत्यु को जीवन का विलोम नहीं बल्कि इसका अंग समझते व्यक्ति को मृत्यु का भय नहीं सताता। नार्मन कज़िन्स ने कहा, “जीवन की सबसे बड़ी क्षति मृत्यु नहीं बल्कि जीते जी हौसलों का खत्म हो जाना है”। मौत से वे भयभीत होते हैं जो जिंदगी से दूर भागते हैं। एक सुदीर्घ अनुवांशिक परंपरा में अपनी संतति में स्वयं को देखते हुए बुद्धिमान व्यक्ति देहावसान के क्षण भयाकुल नहीं होता। कहा गया है, यों सामान्य मृत्यु भी शांतिप्रद होती है, इसका विचारभर विचलित करता है। आध्यात्मिक स्तर पर, मृत्यु आत्मा और परमात्मा की मिलन वेला है। खलील जिब्रान ने भी कहा, “नदी और समुद्र की भांति जीवन और मृत्यु एक अस्मिता के दो पाट हैं”। हमें केवल जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते रहना है।
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दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ के ऊर्जा स्तंभ में (मेरे दिवंगत पिताजी की तेरहवीं) 23 जुलाई 2017 को प्रकाशित हुआ।
Link:
https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-death-16417790.html
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जन्म-मृत्यु को समझना दार्शनिक विषय है। न हम स्वेच्छा से दुनिया में आए, न अपनी ख़ुशी से जाना होता है।