इस वर्ष बेशक कोरोनावायरस की महामारी, घरबंदी तथा अन्य बंधिशों ने खासी तादाद में बच्चों, बूढ़ों सहित सभी के मन और तन को तोड़ा-झकझोरा है, किंतु मानसिक स्वास्थ्य का परिदृष्य पहले भी संतोषजनक न था। लोगों का निरंतर बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य समूची दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों, नीतिकारों व अन्यों की गंभीर चिंता का विषय है।
हमारी सोच और जीवनशैली यों बन गई है कि एंग्जाइटी, डिप्रेशन, सीज़ोफ्रेनिया व अन्य मानसिक विकृतियों और आत्महत्या दरों में बढ़त जारी है। प्रतिवर्ष दुनिया के करीब आठ लाख व्यक्ति आत्महत्या करते हैं, सर्वाधिक मामले हमारे देश में हैं, जहां मनुष्यरूप में जन्म लेना धन्य समझा जाता रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2019 में देश में 1,39,123 (यानी रोजाना औसतन 381) आत्महत्याएं दर्ज हुईं जो 2018 में 1,34,516 से 3.4 प्रतिशत अधिक रहीं। दुखद यह है कि सर्वाधिक चपेट में आने वाले 15-29 वर्ष के युवा होते हैं। डब्ल्यूएचओ मानता है कि वर्ष 2030 तक मानसिक बीमारियां स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
आत्महत्या के कारणों पर जाएं तो बोर्ड परीक्षा में कम नंबर आना या असफल होना, प्रेम प्रसंगों में रुकावट, नौकरी न मिलना या छूट जाना, दुस्साध्य बीमारी, कारोबार में घाटा, जैसे हालातों को झेलना कुछ व्यक्तियों को इतना भारी पड़ता है कि वे परिजनों को बिलखता छोड़ कर भावावेश में अपनी जीवनलीला को विराम दे देते हैं। याद करें, यह घृणित कृत्य करने वाला वही व्यक्ति है जिसके दुनिया में आगमन पर समूचे घर की फिज़ाएं बुलंद, खुशनुमां हो उठीं थीं! बच्चे के बाबत सुनहरी कल्पनाओं और आशाएं संजोने का सिलसिला तो जन्म से पहले शुरू हो जाता है। आत्महत्या जैसे दुस्साहसपूर्ण कार्य के लिए कौन जिम्मेदार है, परिस्थितियां या व्यक्तिगत त्रुटियां, इसकी पड़ताल आवश्यक है।
दो हालिया आत्महत्याओं के पीछे क्या था और क्या बताया गया? दिल्ली से सटे नाएडा में 2 सितंबर को 23 वर्षीय महिला अपना जन्मदिन मनाने विवाहित बहन के घर गई। दोनों का केक काटने पर झगड़ा हुआ और छोटी बहन वहीं बालकनी से कूद गई। दूसरे प्रकरण में, केरल के एक 28 वर्षीय युवा ने नौकरी न मिलने से हताश हो कर प्राणांत कर डाले। स्पष्ट है, दोनों मामलों में माजरा कुछ और था, दिल में जरूर पहले से बवंडर सुलग रहा था, जिसे विस्फोट के लिए चिनगारी चाहिए थी। याद करें, दो वर्ष पूर्व जब दिल्ली के बुराड़ी में 11 सदस्यों के समूचे परिवार द्वारा आत्महत्या के बाद मृतकों के पड़ोसियों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों ने परिवार को सुलझा, समझदार बताया था। परदे के पीछे की भयावह हकीकत से सभी अजान थे।
हमारे समाज ने दोगलेपन और औपचारिकता की जीवनशैली को कमोबेश मान्यता दे दी है। ‘अपनों’ से भी लाग लपेट कर बतियाने का दस्तूर बन गया है, अपनों से भी मिलेंगे तो पूरी ‘तैयारी’ के साथ, सहज, उन्मुक्त भाव से नहीं। संवाद टेलीफोन पर हों, सोशल मीडिया पर या आमने सामने, मुंह से वही निकलेगा जो शिष्ट, औपचारिक मानकों के अनुकूल हो, दूसरे को सुनने में प्रिय लगे, अपनी छवि बेदाग दिखे। आलम यहां तक है कि किसी हत्या या आत्महत्या को अंजाम देने वाले से बात करेंगे तो न चेहरे पर शिकन होगी न ही शब्दों में कोई असहजता, और जो बखेड़ा कुछ ही लमहों में होगा उसकी खबर मीडिया से मिलेगी। शोध बताते हैं कि फेसबुक में साझा किए गए 70 प्रतिशत बातें झूठी पोस्ट की जाती हैं, अपने और अपनों से जुड़े अप्रिय पक्षों की भनक नहीं लगने दी जाती। इसी तर्ज पर उस आत्महत्या की बनावटी व्याख्या करेंगे जिसकी असलियत आप बखूबी जानते हैं। कालांतर में दोगलेपन का पर्दाफाश होता है तो व्यक्ति शर्म, तड़पन या तिरस्कार से निजात पाने के लिए आत्महत्या पर विचार करता है।
व्यवहार, आचरण और वार्तालाप औपचारिक रहेंगे तो दिल के हर्षोल्लास, व्यथाएं, कसकन, मंथन और अंतरंग सरोकार कैसे साझा होंगे। इन्हें साझा नहीं करेंगे तो घुटन होगी, व्यक्ति एकाकी पड़ जाएगा, मानसिक संतुलन डोलेगा, व्यक्ति के डिप्रेशन में जाने, और आत्महत्या के आसार बढ़ेंगे।
एकाकी वृत्ति उनमें अधिक मुखर रहती है जिनकी पारिवारिक जड़ें कमजोर हों। परिवार में पले-बढ़े बच्चों के परिजनों व अन्यों से मजबूत और टिकाऊ भावनात्मक संबंध होते हैं, वे दुष्कर परिस्थितियों से बेहतर निबटने में सक्षम रहते हैं, उनमें एकाकीपन तथा नकारात्मक भावनाएं अक्सर नहीं घरतीं। इसके विपरीत जिन बच्चों के लिए माबाप अल्पायु से पढ़ने, रहने, सोने के लिए अलहदा कमरा तय कर देते हैं उनमें नैराश्य, गमगीनता, विक्षिप्तता और आत्महत्या की प्रवृत्ति मुखर रहती है।
मेलभाव की अहमियत को समझते हुए परिवार, मित्रगण व अन्य साथियों से सौहार्द रहे, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं न्यूनतम हों, और यह अहसास रहे कि जीवन की राह मे फूलों के साथ कांटें होंगे ही, तो जीवन बोझ नहीं बनेगा और आत्महत्याए जैसे नकारात्मक भावों के पनपने की संभावना न रहेगी। यह नहीं भूलना कि सुंदर भविष्य का रास्ता कंटीली, उबाऊ गलियों से गुजरता है।
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दैनिक नवज्योति में 10 सितंबर 2020 (बृहस्पतिवार) को प्रकाशित।