मनुष्य की चहुमुखी संवृद्धि और सफलता की चाहत को भांपते हुए अनेक धर्मगुरु तथा मोटीवेटर ‘प्रसन्नता’ को प्रभावी उपाय बतौर प्रस्तुत करते हैं। कुछ आध्यात्मिक गुरु विभिन्न स्तरों पर हंसने के नियमित सत्र आयोजित करते हैं। इस दौरान प्रतिभागियों से 15-20 मिनट या अधिक अवधि तक हंसी का सामूहिक अभ्यास कराया जाता है। स्वाभाविक है, इस प्रकार की सायास हंसी बनावटी होगी!
अल्पज्ञानी, कुटिल, अहंकारी या संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति भी अम्यास से प्रसन्न रहता है किंतु सहज स्वभाव के लिए विशाल हृदय आवश्यक है। जीवन में परम सुख सुनिश्चित करने के लिए प्रसन्न मुखौटे से उच्चतर स्थान सहज, निश्छल, नैसर्गिक आचरण का है। दूसरों के प्रति सद्भाव और समादर होगा तो व्यवहार और आचरण स्वतः ही सहज रहेगा।
अहंकार, वैमनस्य और प्रतिशोध संजोए व्यक्ति को भले ही औपचारिक सम्मान मिल जाए किंतु वह लोगों की हार्दिक शुभकामनाओं और स्नेह से भी वंचित रहेगा। सरल व्यवहार का व्यक्ति दूसरों पर हावी रहने की चेष्टा नहीं करता।
मुस्कुराता चेहरा सभी को सुहाता है; उसके सानिध्य से कुछ हद सही, तनाव और नैराश्यभाव छटता है। मुस्कुराहट फेफड़ों तथा शरीर के अन्य भितरी अंगों को सक्रिय, उमंगमय और स्वस्थ रखने में सहायक होती है। तथापि प्रहसन, विशेषकर हाहा, हीही-नुमा गलाफाड़ू हंसी की गणना उच्च मानवीय गुणों में नहीं होती, न ही इस श्रेणी की हंसी अंदुरुनी तुष्टि या सांमजस्य का द्योतक है। प्रसन्न दिखता व्यक्ति भी भारी अवसाद या चिंता से ग्रस्त हो सकता है। बात-बात पर ठहाके लगाना ओछे चित्त और असंतुलित व्यक्तित्व की पहचान है। आदिग्रंथों में चर्चित प्रहसनों की उच्चतम श्रेणी वह है जिस दौरान व्यक्ति अंदर से भावविभोर रहता है, किंतु इसकी अभिव्यक्ति ओठों में परिलक्षित हल्की मुस्कुराहट से होती है। कोलाहल का नामोनिशान नहीं, केवल एक मौन, भितरी तृप्ति की झलक फिजाओं में ‘फील गुड’ का अहसास कराती है।
प्रसन्नता वास्तविक है या ओढ़ी हुई, यह अहम है। मार्किटिंग के मौजूदा युग में ग्राहक जुटाने के लिए हंसमुख चेहरे नियुक्त किए जाते हैं। रिसेप्शन पर स्वागती मुद्रा में बैठी महिला या हवाई जहाज के द्वारों पर हाथ जोड़े मुस्कुरा कर ‘‘नमस्कार, फिर आइए’’ बोलती एयर होस्टेस से उसके स्वभाव को नहीं समझ सकते। नामी कवि विलियम बटलर यीट्स की पंक्ति है, ‘‘नर्तिका को आप उसके नृत्य से नहीं जान सकते।’’
बहत सी कठिनाइयां इसलिए आती हैं कि हम मानसिक संकीर्णता के चलते या अधीर हो कर प्राकृतिक, सरल आचरण छोड़़़ कर औपचारिक मुखौटा पहन लेते हैं। तर्क-वितर्क या नियमों-विनियमों के फेर में पड़ने से हम स्थितियों और भावों को छानते, निथारते, लोकमान्यता के अनुसार व्यक्त करते हैं, जैसा वास्तव में है वैसा नहीं। स्मरण रहे, परहित के वही कार्य सुफल देगें जो सहजभाव से बिना प्रतिफल की आशा से किए जाएं। एडवार्ड एब्बी के अनुसार धर्मकर्म बिना किसी गणना या निहित स्वार्थ होने चाहिएं, अन्यथा यह धर्म का निरादर है।
सहज वृत्ति का व्यक्ति अड़ियल नहीं होता, हालांकि वह सैद्धांतिक मामलों में अडिग रहता है। बेहतरीन, खुशनुमां जीवन का साहचर्य मालामाल या लोकप्रिय होने या उच्च शिक्षा से नहीं है। महान वह है जिसके आचरण में सहजता, विनम्रता और दया हो। स्वयं अर्जित न किए धन को खर्चना, नापसंद लोगों को इम्प्रेस करने के लिए गैरजरूरी वस्तुएं खरीदना, यह सहज स्वभाव नहीं है।
अंतरात्मा से प्रेरित शांत मन सहज और निश्छल विचारों का वास होता है। प्रेम भी उन्मुक्त, अबाधित वातावरण में पल्लवित होता है। बरट्रांड रसेल की राय में व्यक्तिगत सुख का सबसे बड़ा स्रोत बहुत से व्यक्तियों से अनायास, सहज प्रेम भाव है। सहज प्रस्तुति का अर्थ है अनावश्यक को हटा देना ताकि पते की बात उभर कर सामने आए। आइंस्टीन के अनुसार विज्ञान के अधिकांश सिद्धांतों को जानने में माथापच्ची नहीं करनी पड़ती और उन्हें सरल भाषा में समझाया जा सका है।
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नवभारत टाइम्स में 22 दिसंबर 2020 को संपादकीय पेज पर ‘‘हंसना-मुस्कराना पवित्र, सच्चे मन की नियामत है’’ शीर्षक से प्रकाशित।
आनलाइन संस्करण का लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/do-this-work-for-prosperity-and-success-life-will-change-89457/
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