तरक्की का क्या राज है, क्यों कुछ समुदाय और मुल्क आगे बढ़ जाते हैं और दूसरे फिसड्डी रहते हैं, इसका ज्ञान अपन को देर में हुआ। दुनिया में तरक्की उन्होंने की जिन्होंने बाथरूम के माहात्म्य और इसकी गूढ़, बहुआयामी भूमिका को ठीक से समझा, बाथरूम की कद्र की, जिन्होंने बाथरूम को अन्य रूमों से गया-गुजरा नहीं समझा, उसे नाचीज नहीं समझा। देहातों में पहले बाथरूम नहीं होते थे। रोज के निबटने और नहाने-धोने का दूसरा ही हिसाब था। जब, जिस आड़ में, जहां कहीं मौका लगे, बाएं-दाएं देखा और फारिक हो लिए। जैसे कुŸाा टांग उठा कर, कर डालता है – सलीका जानता तो सरेआम ऐसी जुर्रत नहीं करता। नहाने के लिए मर्द लोग तो नदी-पोखड़ किनारे चले जाते थे – न हो तो लोटा ले कर चल पड़े; महिलाएं तड़के अंधेरे में, अमूनन दो-चार मिल कर जलस्रोत पर जातीं और झट से नहा लेतीं थी।
आज बाथरूम का मतलब अधिकतर पेशाब करने से ज्यादा लिया जाता है। शौच या लैट्रिन जैसे शब्दों का इस्तेमाल सभ्य समाज में ठीक नहीं मानते। बाज लोगों की मान्यता रही है कि नेचुरल काॅल का दमन नहीं करना चाहिए। कुदरती संवेगों की अनुपालना में क्यों हिचका या शर्माया जाए? यों कुछ डाक्टरों ने परदे पीछे इस खयाल को हवा दी कि जम्हाई, मल-मूत्र, छींक, पाद जैसे किसी प्राकृतिक संवेंग को रोकने का अर्थ है शारीरिक विकृतियों को बुलावा जो कालांतर में घातक बीमारियों का रूप ले सकती हैं।
मैं कह रहा था, हमारा देश इसलिए पिछड़ा रह गया कि हमने हगने-मूतने-नहाने के लिए निर्धारित स्थान और इसकी संवार पर तवोज्जू नहीं दिया। अंग्रेज समझदार थे। वे जानते थे, ड्राइंग रूम, स्टडी रूम, बेड रूम की तर्ज पर एक रूम ऐसा होना चाहिए जहां आप अपने शरीर और मन को तरोताजा कर सकें, जहां आपका प्रत्येक अंग-प्रत्यंग उन्मुक्त, बिंदास हरकत कर सके। फिरंगियों ने बाथरूम को ‘‘रेस्ट रूम’’ का नाम इसलिए दिया कि समूचे आवास में कोई स्थान व्यक्ति के तन-मन को पूर्ण विश्राम और इत्मीनान दे सकता है तो वह यही कक्ष है। जरा सोचें, रुटीन में सबसे ज्यादा राहत आपको कौन सा कार्य देता है। यही न, जब आप निवृŸा होते हैं। अकबर-बीरबल संवाद का एक प्रसंग है। एकबारगी दोनों नौका विहार कर रहे थे। तभी अकबर के मन में प्रश्न आया, ‘‘किस कार्य या वाकिए से आदमी को सबसे ज्यादा सुकून और राहत मिलती है?’’ बीरबल ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘शौच या मूत्र निवारण के पश्चात।’’ अकबर को सुन कर अटपटा और अभद्र प्रतीत हुआ। कुछ समय बाद यकायक अकबर को शौच शंका हुई। नौका को रुकवा कर अकबर निवृत्त हुए। बीरबल की सूझबूझ पर उन्हें एकबारगी फिर विश्वास हुआ और उसे पुरस्कृत किया।
याद करें, निबटने में आई भारी दिक्कत से आपको भी जूझना पड़ा होगा। ट्रेन या बस यात्रा के दौरान, मेलजोल समारोहों या सार्वजनिक स्थानों पर। दुर्भाग्य है कि अपने देश में ये सुविधाएं नाकाफी हैं। महिलाओं को तो खासी मुश्किलें सहनी पड़ती हैं। यही वजह है उन्हें मूत्र संबंधी व्याधियां ज्यादा होती हैं।
यों ओछी सोच वाले ‘‘बाथरूम’’ शब्द का अजीबोगरीब ढ़ंग से करते हैं। अपने एक परिचित को को अरजेंट फोन किया तो फोन उनकी पत्नी ने उठा लिया, बताया कि वे बाथरूम गए हैं। उनसे ज्यादा खुला नहीं था, अन्यथा पूछता, मूतने गए हैं, हगने या नहाने। यही कह कर काट दिया कि जरूरी बात थी, जैसे ही फारिक हों तुरंत बात करा दीजिएगा। ऐसी बिरादर के बच्चे वे हैं जिन्हें न अंग्रेजी सिखाई जाती है न हिंदी। इन बच्चों को बाथरूम ‘‘आती’’ है, वे बाथरूम ‘‘करते’’ हैं। भाषा की इस तरह तौहीन करने वाले बौद्धिक स्तर पर हमेशा पायदान पर रहेेंगे, यह तय है।
बाथरूम की महिमा को समझते हुए आवासीय परिसरों के निर्माता बाथरूम की लोकेशन, बनावट और अंदुरुनी साज सज्जा पर खूब ध्यान देती हैं। टाइलों का रंग, इनकी डिजाइन मायने जो रखती हैं। कहा गया है, आपका बाथरूम आपके व्यक्तित्व का आइना है, इससे आपकी सोच का पता चलता है। बहुधा नहाने के दौरान आप अनेक खामख्वाह की चिंताओं को धो-धा कर नए संस्करण में अवतरित होते हैं।
दिव्य ज्ञान की स्थली
सृजनात्मक रुझान के लोग जानते हैं मौलिक सोच के लिए एक अंतर्दृष्टि जरूरी होती है। सामान्य फिजाओं में सृजन के खयालात सही से पल्लवित, सवंर्धित नहीं हो पाते। इसीलिए लेखक और कलाकार अक्सर दर-दर, नए-नए परिवेश में जाते हैं, क्या पता कहां से प्रेरणा मिल जाए, किन फिजाओं में दिव्य दृष्टि प्राप्त हो और महान कलाकृति का सूत्रपात हो जाए। बाथरूम ऐसी ही स्थली है। पूर्णतया अबाधित हो कर जब आप बाथरूम में प्रवेश करते हैं तो आप के तनबदन को कोई नहीं देख रहा होता। आप इस कक्ष में सौ फीसद स्वच्छंद रहते हैं। आपकी सोच, और विज़न को अनंत विस्तार मिलता है। आपकी कल्पना को उड़ने का माकूल वातावण मिलता है। मस्तिष्क के वे बिंदु हरकत में आते हैं जो अन्यथा सुषुप्त पड़े रहते हैं, अंदरुनी शक्तियां जाग्रत होती हैं। आर्कमिडीज़ को तैरने के सिद्धांत का दिव्यज्ञान भी स्नानागार में हुआ। सिद्ध संगीतज्ञ को तो बाथरूम अतिप्रिय था, वे अपनी कालजयी कृतियों का श्रेय बाथरूम को देते थे।
समझदार सैलानी होटल, लाॅज किराए पर लेने से पहले उसके बाथरूम का मुआयना करते हैं। इसलिए जब भी आप बाथरूम में जाएं तो पूरे मनोयोग से, बेधड़क। कुछ लोग बाथरूम में ही अखवार, पत्रिका या पुस्तक बखूबी पढ़ पाते हैं। विकसित देशों में, अपने यहां भी अधिकांश व्यक्ति बाथरूम में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। यह भी पाया गया है कि मोबाइल में जितना ज्यादा फीचर्स होंगे, उपयोगकर्ता उतना ही ज्यादा देर तक बाथरूम में रहेगा। चीन में कुत्तों के लिए भी शौचालय निर्मित किए गए हैं। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि शौच उपरांत विश्व में 20 फीसद व्यक्ति ही हाथ धोते हैं और जो धोते हैं उनमें से बमुश्किल एक तिहाई साबुन का इस्तेमाल करते हैं।
बाथरूम का एक अप्रिय पक्ष भी है। आजकल बहुत सी मौतें बाथरूम में फिसलने या लुढ़कने से हो जाती हैं, विशेषकर उम्रदराजों की। किंग जाॅर्ज द्वितीय सहित अनेक जानों मानों की मृत्यु बाथरूम में हुई थी, अपने यहां ऐसे किस्से आए दिन सुनने में आते हैं। यह खयाल रखा जाना चाहिए कि उम्रदारों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे बाथरूमों के फर्श चिकने न हों और उनमें अंदर से चटकनियां नहीं हों, ताकि विपत्ति के लमहों में आप उन्हें थाम सकें।
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दैनिक वीर अर्जुन के बिंदास बोल स्तंभ में 24 मार्च 2019 को प्रकाशित
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