खुश कौन नहीं रहना चाहता? और अपने हिसाब से, खुशनुमां जिंदगी गुजारने के लिए क्या-क्या जुगाड़ नहीं करता। नाना प्रकार की योजनाएं बनाता है; बैठने, सोने, आवागमन को सुकर बनाने के लिए एक से एक सुविधाएं और साधन जुटाने की उधेड़बुन में जकड़ा रहता है; आवास और कार्यस्थल को मनभावन तरीकों से सुसज्जित करता है। सोचता यों है कि ढ़ेर सारे पैसे, आलीशान मकान, फर्राटेदार गाड़ी वगैरह से एक शानदार, खुशनुमां जिंदगी की शुरू हो जाएगी।
आज अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस पर मंथन करें, अपने जीवनसाथी/ बच्चों/ मातापिता/ परिजनों/ पड़ोसियों/ कार्यस्थल में सहकर्मियों/ बॉस/ अधीनस्थों या अन्यों से — कुल मिला कर अपने हालातों से आप कितना प्रसन्न या नाखुश रहते हैं। आपसे बेहतर कोई नहीं जानता। सही में खुशनुमां कैसे रहेंगे, इसकी भी जुगतें जानिए। खुशनुमां रहेंगे तो सभी कार्य बेहतर निबटेंगे, संतुष्टि भी रहेगी।
खुशी अंदुरुनी अनुभूति है
कम ही समझते हैं कि जिनके पास यह सब बेतहाशा है, उनका भी रोना-धोना, खिसियाना, दिलोदिमाग में भड़ास ठूसे रहना, शिकायतें करना कम नहीं। बाहरी तौर पर संपन्न, खुश दिखते व्यक्ति शारीरिक बीमारियों या मानसिक संताप से अधिक मुक्त नहीं हैं। खुशी एक आंतरिक मामला है, खुश रहना एक फितरत है। आयु, स्वास्थ्य, आर्थिक स्तर, पारिवारिक स्थिति, व्यक्तिगत जिम्मेदारियां आदि समान होने पर भी एक व्यक्ति कमोबेश संयत, संतुष्ट और प्रसन्न रहेगा जबकि दूसरा उखड़़ी सी, पशोपेश की चिंतामग्न जिंदगी बिताने को अभिशप्त रहेगा, उसे सर्वत्र खोट नजर आएंगे, जिंदगी उसके लिए आनंदमय यात्रा नहीं, बोझ बन जाएगी। घृणा, दुराव, वैमनस्य, ईर्ष्या आदि से जितना दूर रहेंगे, दूसरों से जितना कम अपेक्षा रखेंगे, उसी हद तक प्रसन्नचित्त रहेंगे। आपके पास जो भी है, उसे अपूर्णताओं सहित, स्वीकार करें और उनसे आनंद उठाएं।
अपनी चाभी अपने पास रखें
खुश रहने के लिए पहले जान लें, आपकी खुशी की चाभी किसी दूसरे के पास न हो। सुनिश्चित कर लें, कोई दूसरा आपको तो नहीं हांक रहा (यानी ड्राइव नहीं कर रहा)। हकीकत यह है कि अहंकारी मिजाज के लोग अपनी चौधराहट कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति तलाशते रहते हैं – और उन्हें मिलते रहते हैं – जो उनकी जयजयकार करने के लिए जुट जाएं। सामान्य प्रवृत्ति है कि पद, प्रतिष्ठा, पैसा, सामाजिक रुतबा, राजनैतिक जंकजोड़ में ऊंचे कद वालों को अपने से बेहतर समझा जाता है। अहंकारी व्यक्ति मंद या मध्यम सोच वालों की इस नब्ज को दबाए रहता है और चहेतों की जमात तैयार करने में वह इस कमजोरी का जम कर लाभ उठाता है।
ओढ़ी हुई खुशी खुशी नहीं है
एक अलिखित विधान है कि भीतर कितनी भी कुढ़न और हताशा का तूफान उमड़ रहा हो, दूसरे को भनक नहीं लगनी चाहिए। बाहरी छवि चटकदार, लुभावनी और आकर्षक दिखनी चाहिए। खुशी का नकाब हमेशा पहने रहना है। हवाई जहाज से बाहर निकलने पर स्वागती मुद्रा में हाथ जोड़े एयर हॉस्टेस की ‘‘फिर आइए” सुन कर कुछेक सोचते हैं, जिंदगी हो तो ऐसी जलबेदार!
हम भूल जाते हैं कि दुनिया की बेहतरीन चीजों – आपके प्रति सम्मान और स्नेह, परिजनों व अपरिचितों की आपके प्रति सदाशयताएं, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी नींद की भांति खुशी अथक, सतत प्रयासों से स्वयं अर्जित की जाती हैं। नेकी के कार्यों का स्वाभाविक प्रतिफल है खुशी – यह स्वयं में मकसद नहीं हो सकती। दूसरों को तहेदिल से खुशनुमां रखने का पारिश्रामिक है खुशी। दूसरों के मार्ग को प्रकाशित करेंगे तो आप भी प्रकाशवान हो जाएंगे।
कृतज्ञता का भाव संजोएं
कृतज्ञता दैविक गुण है। अनेक अध्ययनों से सिद्ध है कि कृतज्ञता भाव रखने वाले मन, चित्त से अधिक उन्मुक्त रहते हैं, उनमें आत्मविश्वास और आत्मिक बल उच्चतर रहता है। वे साथियों से मधुर संबंध बनाने में सक्षम रहते हैं और अधिक संतुष्टिमय, सार्थक जीवन बिताते हैं।
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