Category: समाज

संगीत की अथाह शक्तियों का लाभ जनहित में कैसे हो?

थाॅमस कार्लाइल कहते थे, संगीत देवदूतों की वाणी है। संगीत आदिकाल से विभिन्न संस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक अनुष्ठानों का अभिन्न अंग रहा है। अब त्यौहारों, शादियों व अन्य समारोहों की शोभा संगीत से है। यह गहरी निद्रा में सोये को झकझोर कर जगा देता है और अनिद्रा से बेचैन को सुला देता है। नटखटी, नखरे वाले […]

स्पर्श-लाभ से वंचित होती नवपीढ़ी

अपना हाथ जगन्नाथ। कोई आपका काम क्यों, और कितनी निष्ठा से करेगा। जिसने अपने हाथ-पांव छोड़ दिए वह दूसरे पर पराश्रित हो गया। और दूसरा आपकी कमजोरी को ताड़ कर झटका देगा तो कहां जाएंगे? क्या बच्चा क्या बूढ़ा, महिला हो या पुरुष, कोई भी व्यवसाय हो, न भी हो, वक्त किसी के पास नहीं। […]

ज्यादा चौकसी और देखभाल बच्चों के विकास में बाधा बन जाती है

कठिन, दुष्कर हालातों से जूझ कर ही बच्चे-बड़ों सभी में निखार आता है। जो व्यक्ति व्यवहारकुशल है, अपना रास्ता खोज लेता है, उसने वक्त के थपेड़े खाए हैं। बच्चों को ज्यादा संरक्षण दे कर आप उसे स्वयं विकसित होने में बाधक बनते हैं। मैं अपने मित्र के घर उनके इंतजार में था। कौतुहलवश मित्र के […]

अभिशाप नहीं बननी चाहिए पूर्ण सुरक्षा की भावना

हमारी सक्रियता और सजगता में गिरावट इसलिए आई है चूंकि हम सुविधाभोगी और आरामपरस्त हो गए हैं। पृथ्वी पर जीवन अबाध रूप से चलता रहे, इस आशय से मनुष्य सहित प्रत्येक जीव-जंतु के लिए प्रकृति की दो व्यवस्थाएं हैं: सन्तानोत्पत्ति का सिलसिला और बाहरी आक्रामक शक्तियों से बचाव के साधन। प्रत्येक जीव की भौतिक संरचना, […]

उपभोक्ता बादशाह न सही, बंधक बन कर न रहे

बाजार की शातीर निगाहों से बचे रहना आसां नहीं किंतु नितांत आवश्यक है। बचपन में सुनी-पढ़ी एक कविता में तोतों को समझाया जाता है, ‘‘बहेलिया (शिकारी) आएगा, चुग्गा डालेगा, जाल बिछाएगा, तुम लोभ में फंस मत जाना!’’ तोते इन शब्दों को रट लेते हैं, दोहराते भी रहते हैं किंतु समझते नहीं। पहले तो शिकारी सहम […]

महिलाओं के विकास में बाधा न बनें ‘मुक्ति’ आंदोलन

आज नवयुवतियां और युवा किस उम्र में विवाह कर रहे हैं, उन्हें बच्चे कब और कितने चाहिएं – चाहिएं भी या नहीं? और महिलाओं को मुक्ति किससे चाहिए?अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) और महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में  इस पर पुनर्विचार आवश्यक होगा। महिलाओं की प्राथमिक भूमिका:  धरती पर जीवन विलुप्त न हो, आबादी का […]

बजती रहनी चाहिएं घंटियां, घंटे और घंटाल

यों ही नहीं बजाई जातीं मंगल अवसरों पर घंटियां पूजा-अर्चना के अंतिम चरण में गृहणियों द्वारा बजाई जाती घंटी की आवाज या तड़के किसी मंदिर के सामने से गुजरते, आरती के साथ घंटियों के स्वर सभी को सुहाते रहे हैं। नए वर्ष के आगाज सहित सभी मांगलिक अवसरों पर घंटी बाजन (बेल रिंगिंग) की सुदीर्घ […]

यों ही नहीं जलाए जाते दिए और कैंडिल

सभी पंथों, समाजों में दीप प्रज्वलन की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा रही है। दिए का प्रकाश जहां तमाम अंधेरे को खत्म करता है वहीं इसका ध्यान हमें उस परम शक्ति से जोड़ता है जिसके हम अभिन्न अंग हैं।

मिल बांट कर उपभोग के लिए हैं खाद्यान्न

दुनिया में किसी को भूखे न सोना पड़े, इसकी धरती मां ने समुचित व्यवस्था कर रखी है। तो भी दुनिया के एक अरब  (करीब 13.5% लोगों को दो जून रोटी इसलिए नसीब नहीं होती चूंकि अन्न खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। मिल-बांट कर खाएंगे तो जहां  एक ओर सभी की गुजर-बसर चलेगी […]

खुल कर बोलें, बेधड़क लिखें! मन बीमार नहीं होगा!

समान उम्र-काठी के ‘‘क’’ और ‘ख’ दो शख्स हैं, एक ही महकमे में एक ही पद पर दोनों ने एक साथ नौकरी शुरू की थी। दोनों की पारिवारिक, सामाजिक पृष्ठभूमि कमोबेश एक सी है। ‘‘क’’ है कि हमेशा मुंह फुलाए, मानो मार खाया हुआ है। हर किसी से असंतुष्ट; हर जगह उसे खोट दिखते हैं। […]

झिकझिक कर नहीं गुजरनी चाहिए जीवन की संध्या

बच्चे बहुत छोटे हैं तो बात अलग है। अन्यथा न उन्हीं की दुनिया में रमें रहें, न उनके कार्यों में दखल दें। ढ़लती उम्र में सुख-चैन से जीना है तो संतान से उम्मीदें न लगाएं। याद रहे, अपनी टहल आपने खुद करनी है। धन्य समझें आप जीवित हैं, इन पंक्तियों को पढ़ने योग्य भी। कई […]

दोगला आचरण है बढ़ती आत्महत्याओं का मुख्य कारण

इस वर्ष बेशक कोरोनावायरस की महामारी, घरबंदी तथा अन्य बंधिशों ने खासी तादाद में बच्चों, बूढ़ों सहित सभी के मन और तन को तोड़ा-झकझोरा है, किंतु मानसिक स्वास्थ्य का परिदृष्य पहले भी संतोषजनक न था। लोगों का निरंतर बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य समूची दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों, नीतिकारों व अन्यों की गंभीर चिंता का विषय […]

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