मनुष्य निपट एकाकी जीव है, और सामुदायिक भी!
मनुष्य का असल स्वरूप क्या है? उसका नितांत एकाकीपन या समूह की इकाई बतौर? इतिहास बार-बार पुष्टि करता रहा है कि समाज को किसी भी क्षेत्र में जो सर्वोत्तम हासिल हुआ है वह किसी व्यक्ति की एकाकी सोच के बूते। उस परमशक्ति का प्रतिरूप होने के नाते प्रत्येक मनुष्य को वह काबिलियत और शक्तियां कुदरती तौर […]
शक्ति और सामर्थ्य जिम्मेदारियां बेहतर निभाने के साधन बनने चाहिएं
स्वयं को सशक्त बनाने के आह्वान में स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘‘जीवन नाम है शक्ति का, निर्बलता मृत्यु की ओर ले जाती है’’; उनका आशय था जीवंतता और हौसले जीवन को जड़ नहीं होने देते, और इनके अभाव में जीवन बुझा, नीरस हो जाएगा। शक्तिसंपन्न व्यक्ति जीवनपथ में यदाकदा पसर जाती मुश्किलों और विडंबनाओं के […]
मौजपरस्ती नहीं है उत्सवी फिजाओं के मायने
प्रकाशित 20 अक्टूबर 2019 अपने यहां हर साल शारदेय नवरात्र से शुरू हो कर जनवरी में माघ स्नान (गंगा स्नान) तक की अवधि को ‘‘उत्सवी चतुर्मास’’ कह सकते है। अलग-अलग कारण से लोग अपने बजट, और इच्छा अनुसार, कुछ बेहिसाब भी, इन पर्वों में सहभागी होते हैं। आदि काल से चले आ रहे हर त्यौहार […]
संकल्प नेक हों तो रुहानी ताकतें भी हाथ बंटाती हैं
मनोवैज्ञानिक बताते हैं, मंसूबे नेक हों, इच्छा ज्वलंत, दिल साफ, और हौसले बुलंद, तो मनचाहा हासिल हो जाता है। वह कार्य भी संपन्न हो जाता है जो सर्वथा अकल्पित, अप्रत्याशित था, तमाम अटकलों से जुदा। और दुनिया भौंचक्की रह जाती है। गए मंगलवार 6 अगस्त को संसद में जो हुआ वह अजूबा से कम न […]