एक पक्ष पूर्वजों के प्रति आभार ज्ञापन का: वार्षिक श्राद्ध
नतमस्तक होना, विनम्र रहना और कृतज्ञता का भाव रखना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। पुरखों, मातापिता सहित उन सभी व्यक्तियों और संस्थाओं के प्रति ऋणी रहने का भाव — जिनका हमारे जन्म, हमारी परवरिश, शिक्षा तथा आजीविका प्रदान करने में योगदान रहा — हमारे जीवन को सार्थक और बेहतर बनाता है। इस दृष्टि […]
काल चक्र पर विचार
काल चक्र में नए-पुराने के मायने नहीं होते, यह अतीत-वर्तमान-भविष्य की त्रिपक्षीय किंतु एकल, अनवरत अस्मिता है। काल की परिकल्पना एक चक्र के रूप में की गई है जो क्रमशः आगे की ओर घूमता रहता है, और कभी पूर्व अवस्था में नहीं लौटता। इस चक्र की धुरी वर्तमान है जिसके एक छोर पर अतीत है […]
अहंकार
जंगल के दूसरे किनारे जाती मक्खी को उसी दिशा में अग्रसर एक हाथी दिखा, वह उसके कान के ऊपर सवार हो गई। कुछ दूरी तय होने पर बोली, “हाथी भाई क्षमा करना, मेरे कारण तुम्हें थोड़ा कष्ट जरूर होगा किंतु मुझे खासी राहत मिल रही है”। हाथी ने नहीं सुना। थोड़ी देर बाद हाथी को […]
मृत्यु अटल है, इसे स्वीकार करें
जीवन चक्र का बुनियादी ज्ञान होगा तो मृत्यु से भय नहीं रहेगा।
चुनौती
दीर्घावधि तक टिकी या बेकाबू प्रतीत होती कठिनाई, दुविधा या रुकावट चुनौती का रूप ले लेती हैं। सामान्य सोच बिसार देती है कि फूल हैं तो कांटे भी होंगे। प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन का अभिन्न अंग हैं, इनका आना-जाना लगा रहेगा और इन्हें स्वीकार करना होगा। अंधकार न हो तो प्रकाश की कद्र कैसे होगी? उसी […]
चाहत हो तो ऐसी
एक शिल्पकार ने बड़े मनोयोग और तन्मयता से महिला की प्रतिमा को गढ़ा। इस दौरान उसे अपनी कृति से आसक्ति हो गई। निर्माण पूरा होते-होते शिल्पकार उस प्रतिमा पर सम्मोहित हो गया और कहते हैं, प्रतिमा सजीव हो उठी। शिल्पकार ने उससे ब्याह किया और दोनों पति-पत्नी बतौर पर रहने लगे। अधिकांश लोग उक्त दृष्टांत […]
समस्याएं शिकायतें करने से नहीं, जिम्मेदाराना ठोस कार्य करने से सुलझेंगी
साढ़े तीन दशक पुराना वाकिया है। एक मित्र के घर जब भी जाता, उसकी मां मुझे एक ओर ले जा कर शुरू हो जातींः ‘‘बेटे की उम्र ढ़ल रही है, रिश्ते भी आ रहे हैं लेकिन शादी की चर्चा पर वह खफा हो जाता है, एक नहीं सुनता। तुम उसके करीबी मित्र हो, समझाओ; […]