शक्ति और सामर्थ्य जिम्मेदारियां बेहतर निभाने के साधन बनने चाहिएं
स्वयं को सशक्त बनाने के आह्वान में स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘‘जीवन नाम है शक्ति का, निर्बलता मृत्यु की ओर ले जाती है’’; उनका आशय था जीवंतता और हौसले जीवन को जड़ नहीं होने देते, और इनके अभाव में जीवन बुझा, नीरस हो जाएगा। शक्तिसंपन्न व्यक्ति जीवनपथ में यदाकदा पसर जाती मुश्किलों और विडंबनाओं के […]
मौजपरस्ती नहीं है उत्सवी फिजाओं के मायने
प्रकाशित 20 अक्टूबर 2019 अपने यहां हर साल शारदेय नवरात्र से शुरू हो कर जनवरी में माघ स्नान (गंगा स्नान) तक की अवधि को ‘‘उत्सवी चतुर्मास’’ कह सकते है। अलग-अलग कारण से लोग अपने बजट, और इच्छा अनुसार, कुछ बेहिसाब भी, इन पर्वों में सहभागी होते हैं। आदि काल से चले आ रहे हर त्यौहार […]
जन-मन पर हावी सरोकारों, मंसूबों की पड़ताल का वक्त
बाजार में एक आदमी को कुछ नाटकीय करने की सूझी। वह एक खंभे के पास खड़ा हो कर, मुठ्ठी भींच कर, उसके बीच देखने की जगह बना कर आसमान में टकटकी लगाए था। चंद मिनटों में वहां भारी मजमा लग गया गया। उसने जो साड़ी पहनी है, उसके पास जो मोबाइल या गाड़ी है, मुझे […]
मोदी सरीखों पर नहीं लागू होते दुनियादारी के नियम
‘‘मोदी सरीखों’’ से मेरा आशय नेताई बिरादर से नहीं बल्कि उस खास मिजाज की बिरादर से है जिनके उठने-जगने, खानपान, लेनदेन, व्यवहार और सोच के अंदाज मूलतया आम जन के तौरतरीकों से जुदा होता है। उनके अंदुरुनी सरोकार और मंसूबे लोगों के पल्ले सहज नहीं पड़ते। यह भी कह सकते हैं जिस अलहदा माटी की […]
सायास, मनोयोग से किए कार्यों से ही उत्कृष्ट, वांछित परिणाम मिलेंगे
अपने आवास या कार्यस्थल के गिर्द भूमि को उजाड़ छोड़ देने से उसमें खरपतवार और अवांछित झाड़-झंकार स्वतः पैदा हो जाएंगे। मनचाही, बेहतरीन उपज चाहिए तो भूमि की समुचित तैयारी के बाद अच्छे बीज डालने होंगे, समय-समय पर खाद, सिंचाई और कीटनाशक का प्रयोग करना होगा। बीच-बीच में मुख्य फसल का पोषण हड़पने वाले अनावश्यक […]
चुनौती और फिसलनों से भरी होती है कामयाबी की डगर
मातापिता की सलाह को शिरोधार्य करते बालक ने तन-मन से बोर्ड परीक्षा की तैयारी में स्वयं को झोंक दिया, साथियों, परिजनों से मेलजोल और संवाद तक बंद कर दिया। नतीजे फक्र के लायक थे। किंतु वक्त को कुछ और ही मंजूर था। उसे अपने अरमान तब स्वाहा होते दिखे जब न तो मनचाहे कालेज में […]
दूसरों को समझाने से पहले खुद समझना होगा
उनकी आदतन झुंझलाहट सातवें आसमान पर थी। पत्नी अंदर आती दिखी तो बरस पड़े, ‘‘हजार बार समझाया है, पड़ोसन से इतना बतियाना ठीक नहीं, न जाने तुम्हें कब अक्ल आएगी।’’ अब टीवी देखते बेटे और उसके मित्र का नंबर आया, ‘‘फिर टीवी से चिपक कर देख रहे हो, कितनी बार समझाया, पांच फुट का फासला […]
स्वयं को इतना पुख्ता बनाएं कि बाहरी संबल की आवश्यकता न्यूनतम हो
इंजीनियरिंग पढ़ रहे, घर आए भांजे से मैंने पूछा, यह चार सौ ग्राम ब्रैड का पैकेट बीस रुपए का है, एक किलोग्राम कितने का हुआ? इससे पहले कि भांजा पाॅकेट से कुछ निकालता, मैंने टोक दिया, ‘‘नहीं, बगैर कैल्कुलेटर के बताना है!’’ लाड़ले को उलझन में देख मां ने मोर्चा संभाला, बचाव में तपाक से […]
गुमसुम रह कर दुनिया के सुखों से वंचित न रहें
भूचाल आने पर गांव से भागने वालों में सबसे आगे पोटली सिर पर लादे, ‘‘बचाओ, बचाओ’’ चिल्लाती एक बुढ़िया थी। पता चला, वही बुढ़िया रोज मंदिर में माथा टेकते मिन्नत करती थी, ‘‘हे प्रभु, मुझे इस दुनिया से उठा लो।’’ जिंदगी को दैनंदिन कोसने वाले भी प्राण रक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते, गुल […]
शोर-शराबे में, और चीखने से हम न दूसरों की सुन सकेंगे, न अंतर्मन की
हमारे जीवन को असहज, बोझिल बनाता एक सच है – परिजनों, अजनबियों से तो दूर, अपनों से भी संवाद नहीं बैठाना। बच्चे मातापिता के उद््गार नहीं सुनना चाहते, पति-पत्नी एक दूसरे से ईमानदारी से अपने सरोकार साझा नहीं करते, वगैरह। नतीजन आपसी दूरियां बढ़ रही हैं और व्यक्ति एकाकी पड़ रहा है, मानसिक बीमारियों में […]
सत्संग महफिलों में नहीं, नेक संगत से मिलता है
रात को फोन पर उन्हें कोई जरूरी सूचना देने के बाद मैंने सरसरी तौर पर क्या कह डाला, ‘‘खाना तो हो गया होगा, नौ बज चुके हैं’’ कि उन्होंने दिल में भरी खीजों का पिटारा खोल दिया – ‘‘अब वो दिन फाख्ता हुए जब ऐन आठ बजे दोनों बच्चों और मुझे खाना नसीब हो जाता […]
बाथरूम का माहात्म्य जाने बिना जीवन सफल न होगा
तरक्की का क्या राज है, क्यों कुछ समुदाय और मुल्क आगे बढ़ जाते हैं और दूसरे फिसड्डी रहते हैं, इसका ज्ञान अपन को देर में हुआ। दुनिया में तरक्की उन्होंने की जिन्होंने बाथरूम के माहात्म्य और इसकी गूढ़, बहुआयामी भूमिका को ठीक से समझा, बाथरूम की कद्र की, जिन्होंने बाथरूम को अन्य रूमों से गया-गुजरा […]