Category: हिंदी

पोषण से कहीं ज्यादा सांसों पर है सेहत का दारोमदार, जी हां! इनकी फिक्र करें

कोविड से निबटने के लिए पिछले कुछ महीनों तक ऑक्सीजन के लिए मचे हाहाकार का बड़ा संदेश है कि जीवन पंचतत्वों में एक वायु के प्रति अपनी दृष्टि में सुधार करें। साधु वृत्ति के अपने एक संबंधी थे, 93 वर्ष की आयु में, 2008 में चल बसे थे। आखिरी दिनों तक ओजस्वी, एकदम स्वस्थ, जिंदादिल, […]

आपका कहा-लिखा दूसरों के सर-आंखों पर रह सकता है बशर्ते …

चुनावी बयानबाजियों, बाजार में बिक्री बढ़ाने और रोजमर्रा की जिंदगी में अपना उल्लू साधने के लिए अमूनन शब्दों की जादूगरी का जम कर इस्तेमाल होता है। शब्द ऊर्जा है, इनका प्रयोग जितना सोच विचार कर करेंगे उतना ही वे वजनदार होंगे और आपकी शख्सियत में चार चांद लगाएंगे। शब्दों की उत्पत्ति दैविक, और इनका स्वरूप […]

जिंदगी के सुखों का दारोमदार मेलभाव पर है

सिद्धपुरुषों की बात अलहदा है जो कई दिन, हफ्ते, महीने बल्कि ज्यादा भी एकांत में सुकून से जी लेते हैं। सांसारिक लोगों को पग पग पर एक दूसरे का संबल चाहिए। दूसरों को अपना समझने की फितरत बन जाएगी तो जीवन आनंदमय हो जाएगा। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति एकाकी है। वह दुनिया में अकेला आता […]

कोरोना, अब बस इक तू ही तू है

आप कुशल हैं, स्वस्थ हैं, यह तब माना जाएगा जब आप कोरोना-मुक्त होंगे। कोरोना से इतर कोई बीमारी बीमारी नहीं मानी जाएगी। कोरोना और उसके बिरादरों ने दस्तक क्या दी कि अन्य क्लासिकल बीमारियां खौफ से लुप्त हो गईं। मार्च 2020 से पहले की जानलेवा दिल व श्वसन की बीमारियां, टीबी, एचआईवी, वगैरह बेधड़क कहीं […]

शांत, संतुलित रहें किंतु कदाचित प्रचंड प्रतिरोध भी नितांत आवश्यक होता है

दुनिया के सुख मेल में हैं, टकराने में नहीं। तो भी दूसरे को जताना आवश्यक है कि आप मूर्ख नहीं हैं। जीवन का सुख सुलह में है, भिड़ंत में नहीं। जीवन उसी अनुपात में शांतिदाई, सहज, आनंदमय और सार्थक होगा जितना इसमें प्रेम और सौहार्द का समावेश होगा। प्रतिरोध, टकराव, आक्रोश और प्रतिशोध के भाव […]

स्पर्श-लाभ से वंचित होती नवपीढ़ी

अपना हाथ जगन्नाथ। कोई आपका काम क्यों, और कितनी निष्ठा से करेगा। जिसने अपने हाथ-पांव छोड़ दिए वह दूसरे पर पराश्रित हो गया। और दूसरा आपकी कमजोरी को ताड़ कर झटका देगा तो कहां जाएंगे? क्या बच्चा क्या बूढ़ा, महिला हो या पुरुष, कोई भी व्यवसाय हो, न भी हो, वक्त किसी के पास नहीं। […]

ज्यादा चौकसी और देखभाल बच्चों के विकास में बाधा बन जाती है

कठिन, दुष्कर हालातों से जूझ कर ही बच्चे-बड़ों सभी में निखार आता है। जो व्यक्ति व्यवहारकुशल है, अपना रास्ता खोज लेता है, उसने वक्त के थपेड़े खाए हैं। बच्चों को ज्यादा संरक्षण दे कर आप उसे स्वयं विकसित होने में बाधक बनते हैं। मैं अपने मित्र के घर उनके इंतजार में था। कौतुहलवश मित्र के […]

आपकी सेहत का खयाल आप से बेहतर कोई कैसे, और क्यों रखेगा?

बीमार पड़ते ही क्या आप तुरंत अस्पताल का या उन डाक्टरों का रुख तो नहीं कर लेते जिनकी नजर आपको दुरस्त करने में नहीं, आपसे कितना झटका जा सकता है इस पर रहती है। याद रहे, ज्यादातर बीमारियां का उपचार आप स्वयं, साधारण बुद्धि से कर सकते हैं। देश का स्वास्थ्य परिदृश्य जर्जर है। घर, […]

अभिशाप नहीं बननी चाहिए पूर्ण सुरक्षा की भावना

हमारी सक्रियता और सजगता में गिरावट इसलिए आई है चूंकि हम सुविधाभोगी और आरामपरस्त हो गए हैं। पृथ्वी पर जीवन अबाध रूप से चलता रहे, इस आशय से मनुष्य सहित प्रत्येक जीव-जंतु के लिए प्रकृति की दो व्यवस्थाएं हैं: सन्तानोत्पत्ति का सिलसिला और बाहरी आक्रामक शक्तियों से बचाव के साधन। प्रत्येक जीव की भौतिक संरचना, […]

उपभोक्ता बादशाह न सही, बंधक बन कर न रहे

बाजार की शातीर निगाहों से बचे रहना आसां नहीं किंतु नितांत आवश्यक है। बचपन में सुनी-पढ़ी एक कविता में तोतों को समझाया जाता है, ‘‘बहेलिया (शिकारी) आएगा, चुग्गा डालेगा, जाल बिछाएगा, तुम लोभ में फंस मत जाना!’’ तोते इन शब्दों को रट लेते हैं, दोहराते भी रहते हैं किंतु समझते नहीं। पहले तो शिकारी सहम […]

भय से मुक्ति

हमारा आचरण जितना सहज, बेबाक उन्मुक्त होगा, उतना ही निर्भीक प्रसन्न रहेंगे। मनुष्य प्रभु की अनुकृति है। उसके व्यवहार या आचरण में न्यूनाधिक त्रुटियां या कमियां स्वाभाविक हैं। इस अधूरेपन के अहसास बिना त्रुटियों का निराकरण संभव न होगा? तथापि अपूर्णता का अहसास दिल में घर जाना विकृति है; ऐसे व्यक्ति में असुरक्षा की भावना […]

महिलाओं के विकास में बाधा न बनें ‘मुक्ति’ आंदोलन

आज नवयुवतियां और युवा किस उम्र में विवाह कर रहे हैं, उन्हें बच्चे कब और कितने चाहिएं – चाहिएं भी या नहीं? और महिलाओं को मुक्ति किससे चाहिए?अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) और महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में  इस पर पुनर्विचार आवश्यक होगा। महिलाओं की प्राथमिक भूमिका:  धरती पर जीवन विलुप्त न हो, आबादी का […]

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