प्रसन्न रहना सरल है, बड़प्पन सरल आचरण अपनाने में है
मनुष्य की चहुमुखी संवृद्धि और सफलता की चाहत को भांपते हुए अनेक धर्मगुरु तथा मोटीवेटर ‘प्रसन्नता’ को प्रभावी उपाय बतौर प्रस्तुत करते हैं। कुछ आध्यात्मिक गुरु विभिन्न स्तरों पर हंसने के नियमित सत्र आयोजित करते हैं। इस दौरान प्रतिभागियों से 15-20 मिनट या अधिक अवधि तक हंसी का सामूहिक अभ्यास कराया जाता है। स्वाभाविक है, […]
अपंगों से ज्यादा पंगु तो नहीं हो रहा हमारा समाज?
पंगुता के बाबत पहले यह जान लें कि केवल वही “अपंग” नहीं जिसमें शारीरिक विकृति है। मन और चित्त की दुरस्ती उतनी ही अहम है। बल्कि मानसिक विकृति या अपंगुता ज्यादा चिंता की बात है, इसमें तेजी से इजाफा जो हो रहा है। दूसरा, अपंग कहे जाने वालों की खूबियों-हुनरों की अनदेखी करने वालों का नजरिया […]
यों ही नहीं जलाए जाते दिए और कैंडिल
सभी पंथों, समाजों में दीप प्रज्वलन की सुदीर्घ सांस्कृतिक परंपरा रही है। दिए का प्रकाश जहां तमाम अंधेरे को खत्म करता है वहीं इसका ध्यान हमें उस परम शक्ति से जोड़ता है जिसके हम अभिन्न अंग हैं।
बेहतरी के लिए लिए बाह्य जगत और अंतःकरण के बीच सांमजस्य बैठाना होगा
जिसने कहा, ‘‘गए जमाने में मरने के बाद आत्माएं भटकती थीं; अब आत्माएं मर चुकी हैं, शरीर भटकते हैं’’ उसका आशय था, आज का व्यक्ति स्वयं से इतना भयभीत रहता है कि उसे अंतःकरण से रूबरू होने का साहस नहीं होता। आत्ममंथन और पुनर्विचार से उसे सिरहन होती है। बाहरी छवि और प्रतिष्ठा के निखार […]
स्वयं को अकेला समझने की भ्रांति न रहे, प्रभु सदा आपके साथ होते हैं
अप्रिय, विकट या असह्य परिस्थिति में अनेक व्यक्ति स्वयं को नितांत अकेला और बेबस महसूस करते हैं। एकाकीपन की वेदना में कुछेक आवेग में जघन्य कृत्य तक कर डालते हैं हालांकि मामला सामान्य था। समझ का फेर है। जीवन में मात्र दस प्रतिशत वह होता है जिसे हम वास्तव में भोगते हैं, शेष नब्बे […]
मिल बांट कर उपभोग के लिए हैं खाद्यान्न
दुनिया में किसी को भूखे न सोना पड़े, इसकी धरती मां ने समुचित व्यवस्था कर रखी है। तो भी दुनिया के एक अरब (करीब 13.5% लोगों को दो जून रोटी इसलिए नसीब नहीं होती चूंकि अन्न खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। मिल-बांट कर खाएंगे तो जहां एक ओर सभी की गुजर-बसर चलेगी […]
खुल कर बोलें, बेधड़क लिखें! मन बीमार नहीं होगा!
समान उम्र-काठी के ‘‘क’’ और ‘ख’ दो शख्स हैं, एक ही महकमे में एक ही पद पर दोनों ने एक साथ नौकरी शुरू की थी। दोनों की पारिवारिक, सामाजिक पृष्ठभूमि कमोबेश एक सी है। ‘‘क’’ है कि हमेशा मुंह फुलाए, मानो मार खाया हुआ है। हर किसी से असंतुष्ट; हर जगह उसे खोट दिखते हैं। […]
झिकझिक कर नहीं गुजरनी चाहिए जीवन की संध्या
बच्चे बहुत छोटे हैं तो बात अलग है। अन्यथा न उन्हीं की दुनिया में रमें रहें, न उनके कार्यों में दखल दें। ढ़लती उम्र में सुख-चैन से जीना है तो संतान से उम्मीदें न लगाएं। याद रहे, अपनी टहल आपने खुद करनी है। धन्य समझें आप जीवित हैं, इन पंक्तियों को पढ़ने योग्य भी। कई […]
आप स्वेच्छा से दुनिया में नहीं आए, जा कैसे सकते हैं?
अपने अंतरंग मित्र (डा0) गिरधारी नौटियाल बचपन में अपनी एक कविता सुनाते थे, जिसकी पहली पंक्ति है, ‘‘जीवन कभी-कभी जाने क्यों, विषधर बन जाता है?’’ दशकों बाद जैन मुनि तरुण सागर से वैसी ही सुनी, ‘‘ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जिसने अपने जीवनकाल में कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास न किया हो, या ऐसा […]
दोगला आचरण है बढ़ती आत्महत्याओं का मुख्य कारण
इस वर्ष बेशक कोरोनावायरस की महामारी, घरबंदी तथा अन्य बंधिशों ने खासी तादाद में बच्चों, बूढ़ों सहित सभी के मन और तन को तोड़ा-झकझोरा है, किंतु मानसिक स्वास्थ्य का परिदृष्य पहले भी संतोषजनक न था। लोगों का निरंतर बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य समूची दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों, नीतिकारों व अन्यों की गंभीर चिंता का विषय […]
जो चाहेंगे वह अवश्य मिलता है, इसलिए भलीभांति विचार कर लें, क्या चाहिए?
बेहतरीन मंजिलों तक पहुंचने के लिए दहकती चाहत आवश्यक है। चाहत के प्रचंड होने पर व्यक्ति की सुषुप्त शक्तियां जागृत होती हैं, ब्रह्मांड की शक्तियां सहयोग देती हैं, और मनोवांछित मिल जाता है। इसीलिए, हमें क्या चाहिए, इस बाबत भलीभांति विचार कर लेना आवश्यक है। लोभ से प्रेरित एक भक्त की अपार साधना से अभिभूत […]
सत्यवान मा भव (सत्यवान मत बनो)
कुछ दिन पहले मोबाइल पर एक मैसेज पढ़ने को मिला, ‘‘सावित्री ने यमराज से संघर्ष किया और अपने पति को मौत के मुंह से वापस ले आई।” आगे लिखा था, ‘‘सबक — आपको आपकी पत्नी से भगवान भी नहीं बचा सकता।’’ मैसेज पूरा होते ही मोबाइल बज उठा, भोपाल से एक अंतरंग मित्र था। उन्हें […]