Category: समाज

दूसरों को सम्मान देने वाला ही सम्मान पाने का अधिकारी होता है

बंद करिए फालतू के ऐलान – मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं। हर किसी के बस की नहीं है किसी को इज्जत बख्शना, पहले अपने भीतर झांकना होता है। मत करिए किसी की इज्जत, अपनी जबान को तो गंदा मत कीजिए। देहात में अकेले बसर करते बुजुर्ग खाने के बाद झपकी ले रहे थे कि […]

आप जितना खुश हैं उससे ज्यादा खुश रह सकते हैं

खुश कौन नहीं रहना चाहता? और अपने हिसाब से, खुशनुमां जिंदगी गुजारने के लिए क्या-क्या जुगाड़ नहीं करता। नाना प्रकार की योजनाएं बनाता है; बैठने, सोने, आवागमन को सुकर बनाने के लिए एक से एक सुविधाएं और साधन जुटाने की उधेड़बुन में जकड़ा रहता है; आवास और कार्यस्थल को मनभावन तरीकों से सुसज्जित करता है। […]

स्वदेशी भाषाओं के संवर्धन का अर्थ विदेशी भाषाओं का तिरस्कार नहीं है

निजी भाषा को भरपूर व्यवहार में लाना व्यक्ति और समाज के चहुमुखी विकास के लिए अनिवार्य है। भारत में प्रचलित 1600 भाषाओं में से अधिकांश की समृद्ध मौखिक या/और लिखित परंपराएं हैं, ये सभी जीवंतता व विविधता से परिपूर्ण हैं। इन स्थानीय भाषाओं ने सदियों तक लोकजीवन में प्राण संचारित करते हुए जनमानस को उद्वेलित, आह्लादित, […]

बेशक मेलजोल बिना गुजर नहीं किंतु बड़े कार्य अकेले ही संपन्न होते हैं

लोगों का काम है कहना! आपने जिस सन्मार्ग का चयन किया है, आश्वस्त हो कर चलते रहना है। तभी आपको मंजिल मिलेगी। कंपनी के कार्य से अपने एक मित्र को अक्सर शहर से ढ़ाई सौ कि.मी. दूर दो-तीन दिनों के लिए जाना होता था। हर बार वे गुपचुप रोज देर रात तक घर लौट आते […]

किसी जरूरतमंद की दुनिया आप भी रोशन कर सकते हैं, नेत्रदान से

आपकी महानता इसमें नहीं कि आपके पास क्या है, बल्कि इसमें है कि आप दूसरों को क्या देते हैं। वैसे भी, जिस अनुपात में देंगे उसी अनुपात में वापस मिलेगा। जरा सी देर के लिए घुप्प अंधेरा छा जाने से आप पर क्या बीतती है। कभी सोचें, जिन्हें जन्म से या किसी दुुुर्घटनावश आंशिक या […]

मायने उन्हीं रिश्तों के हैं जो फड़कते, थिरकते रहें

कुछ रिश्ते हमें विरासत में मिलते हैं, शेष हम निर्मित करते हैं। यह उम्मीद करना नादानी है कि नए, पुराने संबंधों को हर कोई निभाता जाएगा क्योंकि पहले तो संबंधों की गरिमा विरले ही समझते हैं, दूसरा इनके निर्वहन में ईमानदारी और अथाह धैर्य चाहिए जो हर किसी के बस की नहीं। जिस प्रकार एक […]

प्रगति के लिए पुराने, अवांछित ढ़ाचे को खारिज करना होगा

  मंजिल तक पहुंचने में अड़चनें आएं तो क्या कहीं और चल पड़ेंगे? यह तो घुटने टेक देना हुआ। शायद मौजूदा व्यवस्थाएं असांदर्भिक हो गई हैं। स्पष्ट है, लक्ष्य नहीं – साधन, रास्ते और तौरतरीके बदलने होंगे। सही अर्थों में जीने के लिए एक संत ने अटपटी सी सलाह दी। क्रम से अपने मातापिता, अध्यापकों, […]

बचत बगैर गुजर नहीं, किंतु कितनी? और खर्च करें तो कहां, और कितना?

खर्च और बचत में तालमेल नहीं बैठाए रखेंगे तो घरेलू बजट अस्त-व्यस्त हो जाएगा जो जिंदगी की पटरी को डगमगा सकता है। बाजार जाते वक्त आपके पास कितने रुपए हैं और कहां रखे हैं, आप भूल भी जाएं किंतु प्रायः दुकानदार और पॉकेटमार को इसका अनुमान रहता है। ये लोग शातीर होते हैं, और आपके […]

उम्रदारी के बावजूद बूढ़ा होना, न होना, आपके हाथ है

रिटायर हो जाने, उम्र बढ़ने, जिम्मेदारियां निपट जाने, कोई नियमित कार्य नहीं होने का मतलब नहीं कि शेष दिन झिकझिक कर गुजारने हैं। बस हौसले न छोड़ें, मन व दिल को बुढ़ाने न दें। सोच को तरोताजा करते हुए आज ही नई शुरुआत कर सकते हैं। जीवन किसी का हो, दिन तो गिनती के हैंः  […]

कर्मवीरों के लिए सुरक्षित हैं दुनिया की तमाम सुख-सुविधाएं

वीरभोग्या वसुंधरा। विश्व की तमाम बेहतरीन सुविधाएं और वस्तुएं उन्हीं के लिए सुरक्षित हैं जो अपने कार्य में व्यस्त हैं, आरामपरस्तों के लिए नहीं। कर्मवीर व्यक्ति जानता है कि किसी भी मशीन की भांति जिन अंगों-प्रत्यंगों या हुनरों को व्यवहार में नहीं लाया जाता उनकी कार्यशीलता क्षीण होते होते एक दिन ठप्प हो जाएगी। वह अपने […]

जो भी है, बस यही पल है; जो करना है, अभी कर डालो

अपना स्कूली शिक्षा, उसके बाद का दौर भी फुरसतिया था। अब नर्सरी के बच्चे से ले कर रिटायर हो चुके को, पूर्णतया गृहकार्य संभालती महिलाओं सहित किसी को घड़़ी भर की फुर्सत नहीं। खुचरा ढूंढ़ते एक मिनट हो जाए तो भिखारी भी यह कहते आगे बढ़ जाएगा – “इतना टैम नहीं”। जिसने जिंदगी में लक्ष्य […]

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