स्वयं को अकेला समझने की भ्रांति न रहे, प्रभु सदा आपके साथ होते हैं

  अप्रिय, विकट या असह्य परिस्थिति में अनेक व्यक्ति स्वयं को नितांत अकेला और बेबस महसूस करते हैं। एकाकीपन की वेदना में कुछेक आवेग में जघन्य कृत्य तक कर डालते हैं हालांकि मामला सामान्य था। समझ का फेर है। जीवन में मात्र दस प्रतिशत वह होता है जिसे हम वास्तव में भोगते हैं, शेष नब्बे […]

मिल बांट कर उपभोग के लिए हैं खाद्यान्न

दुनिया में किसी को भूखे न सोना पड़े, इसकी धरती मां ने समुचित व्यवस्था कर रखी है। तो भी दुनिया के एक अरब  (करीब 13.5% लोगों को दो जून रोटी इसलिए नसीब नहीं होती चूंकि अन्न खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं। मिल-बांट कर खाएंगे तो जहां  एक ओर सभी की गुजर-बसर चलेगी […]

खुल कर बोलें, बेधड़क लिखें! मन बीमार नहीं होगा!

समान उम्र-काठी के ‘‘क’’ और ‘ख’ दो शख्स हैं, एक ही महकमे में एक ही पद पर दोनों ने एक साथ नौकरी शुरू की थी। दोनों की पारिवारिक, सामाजिक पृष्ठभूमि कमोबेश एक सी है। ‘‘क’’ है कि हमेशा मुंह फुलाए, मानो मार खाया हुआ है। हर किसी से असंतुष्ट; हर जगह उसे खोट दिखते हैं। […]

झिकझिक कर नहीं गुजरनी चाहिए जीवन की संध्या

बच्चे बहुत छोटे हैं तो बात अलग है। अन्यथा न उन्हीं की दुनिया में रमें रहें, न उनके कार्यों में दखल दें। ढ़लती उम्र में सुख-चैन से जीना है तो संतान से उम्मीदें न लगाएं। याद रहे, अपनी टहल आपने खुद करनी है। धन्य समझें आप जीवित हैं, इन पंक्तियों को पढ़ने योग्य भी। कई […]

Let interpersonal spaces be bridged, not widened

Interpersonal spaces determine behaviour, communication and social interaction patterns. Knowledge of how much distance to maintain in different contexts facilitates healthy growth of individuals and society. Kahlil Gibran’s often-quoted line, “Let there be spaces in our togetherness” is more than an admonition against intruding into personal affairs of others. A pun is intended in ‘spaces’. […]

आप स्वेच्छा से दुनिया में नहीं आए, जा कैसे सकते हैं?

  अपने अंतरंग मित्र (डा0) गिरधारी नौटियाल बचपन में अपनी एक कविता सुनाते थे, जिसकी पहली पंक्ति है, ‘‘जीवन कभी-कभी जाने क्यों, विषधर बन जाता है?’’ दशकों बाद जैन मुनि तरुण सागर से वैसी ही सुनी, ‘‘ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जिसने अपने जीवनकाल में कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास न किया हो, या ऐसा […]

दोगला आचरण है बढ़ती आत्महत्याओं का मुख्य कारण

इस वर्ष बेशक कोरोनावायरस की महामारी, घरबंदी तथा अन्य बंधिशों ने खासी तादाद में बच्चों, बूढ़ों सहित सभी के मन और तन को तोड़ा-झकझोरा है, किंतु मानसिक स्वास्थ्य का परिदृष्य पहले भी संतोषजनक न था। लोगों का निरंतर बिगड़ता मानसिक स्वास्थ्य समूची दुनिया के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, समाजशास्त्रियों, नीतिकारों व अन्यों की गंभीर चिंता का विषय […]

Back To Top