चाहत हो तो ऐसी

एक शिल्पकार ने बड़े मनोयोग और तन्मयता से महिला की प्रतिमा को गढ़ा। इस दौरान उसे अपनी कृति से आसक्ति हो गई। निर्माण पूरा होते-होते शिल्पकार उस प्रतिमा पर सम्मोहित हो गया और कहते हैं, प्रतिमा सजीव हो उठी। शिल्पकार ने उससे ब्याह किया और दोनों पति-पत्नी बतौर पर रहने लगे। अधिकांश लोग उक्त दृष्टांत […]

जहां खड़े हैं वहां हैं संभावनों के अंबार

नव वर्ष या सांस्कृतिक उत्सवों की रंगरेलियां आपको कितना रास आती हैं, यह आपकी मनोदशा पर निर्भर करता है। संभव है आपके अपने भीतर एक अधूरापन सालता रहे। यदाकदा आनंद-विभोर होने के लिए सायास जतन नहीं किए जाएं तो जिंदगी नीरस, उकताऊ और जड़ हो सकती है। जीवंत रहने और प्रगति के लिए उमंग और […]

आत्ममुग्धता का मारक जुनून – सेल्फी की लत

आज सात साल की लड़की को भी बालों के हेयर पिन और माथे की बिंदी से नीचे सैंडिल तक मैचिंग चाहिए, दूसरों से 18 मंजूर नहीं! अधिकांश महिलाएं जानती हैं कि पिछली शादी की सालगिरह या जन्मदिन में उसकी ननद, भाभी, जेठानी या बहन ने किस मेटीरियल, डिजाइन, रंग और कीमत की साड़ी पहनी थी। […]

अब भी देर नहीं हुई, आप भी सुनिए भीषण जल संकट की डरावनी आहट

दो दशक पहले तक किसी ने नहीं सोचा होगा कि पानी की कीमत पेट्रोल या दूध को पछाड़ देगी। तेजी से बढ़ती आबादी और जल संसाधनों की सीमित उपलब्धता के चलते विश्व के अधिकांश देश दशकों से निरापद पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं। विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सैरागेल्डिन ने 23 वर्ष पहले […]

मनुष्य निपट एकाकी जीव है, और सामुदायिक भी!

मनुष्य का असल स्वरूप क्या है? उसका नितांत एकाकीपन या समूह की इकाई बतौर?  इतिहास बार-बार पुष्टि करता रहा है कि समाज को किसी भी क्षेत्र में जो सर्वोत्तम हासिल हुआ है वह किसी व्यक्ति की एकाकी सोच के बूते। उस परमशक्ति का प्रतिरूप होने के नाते प्रत्येक मनुष्य को वह काबिलियत और शक्तियां कुदरती तौर […]

समस्याएं शिकायतें करने से नहीं, जिम्मेदाराना ठोस कार्य करने से सुलझेंगी

  साढ़े तीन दशक पुराना वाकिया है। एक मित्र के घर जब भी जाता, उसकी मां मुझे एक ओर ले जा कर शुरू हो जातींः ‘‘बेटे की उम्र ढ़ल रही है, रिश्ते भी आ रहे हैं लेकिन शादी की चर्चा पर वह खफा हो जाता है, एक नहीं सुनता। तुम उसके करीबी मित्र हो, समझाओ; […]

शक्ति और सामर्थ्य जिम्मेदारियां बेहतर निभाने के साधन बनने चाहिएं

स्वयं को सशक्त बनाने के आह्वान में स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘‘जीवन नाम है शक्ति का, निर्बलता मृत्यु की ओर ले जाती है’’; उनका आशय था जीवंतता और हौसले जीवन को जड़ नहीं होने देते, और इनके अभाव में जीवन बुझा, नीरस हो जाएगा। शक्तिसंपन्न व्यक्ति जीवनपथ में यदाकदा पसर जाती मुश्किलों और विडंबनाओं के […]

मौजपरस्ती नहीं है उत्सवी फिजाओं के मायने

प्रकाशित 20 अक्टूबर 2019 अपने यहां हर साल शारदेय नवरात्र से शुरू हो कर जनवरी में माघ स्नान (गंगा स्नान) तक की अवधि को ‘‘उत्सवी चतुर्मास’’ कह सकते है। अलग-अलग कारण से लोग अपने बजट, और इच्छा अनुसार, कुछ बेहिसाब भी, इन पर्वों में सहभागी होते हैं। आदि काल से चले आ रहे हर त्यौहार […]

जन-मन पर हावी सरोकारों, मंसूबों की पड़ताल का वक्त

बाजार में एक आदमी को कुछ नाटकीय करने की सूझी। वह एक खंभे के पास खड़ा हो कर, मुठ्ठी भींच कर, उसके बीच देखने की जगह बना कर आसमान में टकटकी लगाए था। चंद मिनटों में वहां भारी मजमा लग गया गया। उसने जो साड़ी पहनी है, उसके पास जो मोबाइल या गाड़ी है, मुझे […]

मोदी सरीखों पर नहीं लागू होते दुनियादारी के नियम

‘‘मोदी सरीखों’’ से मेरा आशय नेताई बिरादर से नहीं बल्कि उस खास मिजाज की बिरादर से है जिनके उठने-जगने, खानपान, लेनदेन, व्यवहार और सोच के अंदाज मूलतया आम जन के तौरतरीकों से जुदा होता है। उनके अंदुरुनी सरोकार और मंसूबे लोगों के पल्ले सहज नहीं पड़ते। यह भी कह सकते हैं जिस अलहदा माटी की […]

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