पत्नियों की खुरंसः कितनी सही, कितनी नाजायज

बहुत सी पत्नियों की सुविचारित, दृढ़ मान्यता है कि उन सरीखा बुद्धिमान, सयाना, और उनके पति जैसा निकम्मा, वाहियात व्यक्ति दुनिया में नहीं मिलने वाला। महिलाई सोच का मुद्दा अत्यंत जटिल और अबूझ है, इसे समझने में बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, विचारक और दार्शनिक गच्चा खा गए। इसी संबंध में हालिया मिले तीन व्हाट्सऐप मैसेज इस […]

एक पक्ष पूर्वजों के प्रति आभार ज्ञापन का: वार्षिक श्राद्ध

नतमस्तक होना, विनम्र रहना और कृतज्ञता का भाव रखना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। पुरखों, मातापिता सहित उन सभी व्यक्तियों और संस्थाओं के प्रति ऋणी रहने का भाव — जिनका हमारे जन्म, हमारी परवरिश, शिक्षा तथा आजीविका प्रदान करने में योगदान रहा — हमारे जीवन को सार्थक और बेहतर बनाता है। इस दृष्टि […]

काल चक्र पर विचार

काल चक्र में नए-पुराने के मायने नहीं होते, यह अतीत-वर्तमान-भविष्य की त्रिपक्षीय किंतु एकल, अनवरत अस्मिता है। काल की परिकल्पना एक चक्र के रूप में की गई है जो क्रमशः आगे की ओर घूमता रहता है, और कभी पूर्व अवस्था में नहीं लौटता। इस चक्र की धुरी वर्तमान है जिसके एक छोर पर अतीत है […]

अहंकार

जंगल के दूसरे किनारे जाती मक्खी को उसी दिशा में अग्रसर एक हाथी दिखा, वह उसके कान के ऊपर सवार हो गई। कुछ दूरी तय होने पर बोली, “हाथी भाई क्षमा करना, मेरे कारण तुम्हें थोड़ा कष्ट जरूर होगा किंतु मुझे खासी राहत मिल रही है”। हाथी ने नहीं सुना। थोड़ी देर बाद हाथी को […]

चुनौती

दीर्घावधि तक टिकी या बेकाबू प्रतीत होती कठिनाई, दुविधा या रुकावट चुनौती का रूप ले लेती हैं। सामान्य सोच बिसार देती है कि फूल हैं तो कांटे भी होंगे। प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन का अभिन्न अंग हैं, इनका आना-जाना लगा रहेगा और इन्हें स्वीकार करना होगा। अंधकार न हो तो प्रकाश की कद्र कैसे होगी? उसी […]

चाहत हो तो ऐसी

एक शिल्पकार ने बड़े मनोयोग और तन्मयता से महिला की प्रतिमा को गढ़ा। इस दौरान उसे अपनी कृति से आसक्ति हो गई। निर्माण पूरा होते-होते शिल्पकार उस प्रतिमा पर सम्मोहित हो गया और कहते हैं, प्रतिमा सजीव हो उठी। शिल्पकार ने उससे ब्याह किया और दोनों पति-पत्नी बतौर पर रहने लगे। अधिकांश लोग उक्त दृष्टांत […]

जहां खड़े हैं वहां हैं संभावनों के अंबार

नव वर्ष या सांस्कृतिक उत्सवों की रंगरेलियां आपको कितना रास आती हैं, यह आपकी मनोदशा पर निर्भर करता है। संभव है आपके अपने भीतर एक अधूरापन सालता रहे। यदाकदा आनंद-विभोर होने के लिए सायास जतन नहीं किए जाएं तो जिंदगी नीरस, उकताऊ और जड़ हो सकती है। जीवंत रहने और प्रगति के लिए उमंग और […]

आत्ममुग्धता का मारक जुनून – सेल्फी की लत

आज सात साल की लड़की को भी बालों के हेयर पिन और माथे की बिंदी से नीचे सैंडिल तक मैचिंग चाहिए, दूसरों से 18 मंजूर नहीं! अधिकांश महिलाएं जानती हैं कि पिछली शादी की सालगिरह या जन्मदिन में उसकी ननद, भाभी, जेठानी या बहन ने किस मेटीरियल, डिजाइन, रंग और कीमत की साड़ी पहनी थी। […]

अब भी देर नहीं हुई, आप भी सुनिए भीषण जल संकट की डरावनी आहट

दो दशक पहले तक किसी ने नहीं सोचा होगा कि पानी की कीमत पेट्रोल या दूध को पछाड़ देगी। तेजी से बढ़ती आबादी और जल संसाधनों की सीमित उपलब्धता के चलते विश्व के अधिकांश देश दशकों से निरापद पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं। विश्व बैंक के उपाध्यक्ष इस्माइल सैरागेल्डिन ने 23 वर्ष पहले […]

मनुष्य निपट एकाकी जीव है, और सामुदायिक भी!

मनुष्य का असल स्वरूप क्या है? उसका नितांत एकाकीपन या समूह की इकाई बतौर?  इतिहास बार-बार पुष्टि करता रहा है कि समाज को किसी भी क्षेत्र में जो सर्वोत्तम हासिल हुआ है वह किसी व्यक्ति की एकाकी सोच के बूते। उस परमशक्ति का प्रतिरूप होने के नाते प्रत्येक मनुष्य को वह काबिलियत और शक्तियां कुदरती तौर […]

समस्याएं शिकायतें करने से नहीं, जिम्मेदाराना ठोस कार्य करने से सुलझेंगी

  साढ़े तीन दशक पुराना वाकिया है। एक मित्र के घर जब भी जाता, उसकी मां मुझे एक ओर ले जा कर शुरू हो जातींः ‘‘बेटे की उम्र ढ़ल रही है, रिश्ते भी आ रहे हैं लेकिन शादी की चर्चा पर वह खफा हो जाता है, एक नहीं सुनता। तुम उसके करीबी मित्र हो, समझाओ; […]

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