स्वयं को इतना पुख्ता बनाएं कि बाहरी संबल की आवश्यकता न्यूनतम हो

इंजीनियरिंग पढ़ रहे, घर आए भांजे से मैंने पूछा, यह चार सौ ग्राम ब्रैड का पैकेट बीस रुपए का है, एक किलोग्राम कितने का हुआ? इससे पहले कि भांजा पाॅकेट से कुछ निकालता, मैंने टोक दिया, ‘‘नहीं, बगैर कैल्कुलेटर के बताना है!’’ लाड़ले को उलझन में देख मां ने मोर्चा संभाला, बचाव में तपाक से […]

गुमसुम रह कर दुनिया के सुखों से वंचित न रहें

भूचाल आने पर गांव से भागने वालों में सबसे आगे पोटली सिर पर लादे, ‘‘बचाओ, बचाओ’’ चिल्लाती एक बुढ़िया थी। पता चला, वही बुढ़िया रोज मंदिर में माथा टेकते मिन्नत करती थी, ‘‘हे प्रभु, मुझे इस दुनिया से उठा लो।’’ जिंदगी को दैनंदिन कोसने वाले भी प्राण रक्षा के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते, गुल […]

शोर-शराबे में, और चीखने से हम न दूसरों की सुन सकेंगे, न अंतर्मन की

हमारे जीवन को असहज, बोझिल बनाता एक सच है – परिजनों, अजनबियों से तो दूर, अपनों से भी संवाद नहीं बैठाना। बच्चे मातापिता के उद््गार नहीं सुनना चाहते, पति-पत्नी एक दूसरे से ईमानदारी से अपने सरोकार साझा नहीं करते, वगैरह। नतीजन आपसी दूरियां बढ़ रही हैं और व्यक्ति एकाकी पड़ रहा है, मानसिक बीमारियों में […]

सत्संग महफिलों में नहीं, नेक संगत से मिलता है

रात को फोन पर उन्हें कोई जरूरी सूचना देने के बाद मैंने सरसरी तौर पर क्या कह डाला, ‘‘खाना तो हो गया होगा, नौ बज चुके हैं’’ कि उन्होंने दिल में भरी खीजों का पिटारा खोल दिया – ‘‘अब वो दिन फाख्ता हुए जब ऐन आठ बजे दोनों बच्चों और मुझे खाना नसीब हो जाता […]

बाथरूम का माहात्म्य जाने बिना जीवन सफल न होगा

तरक्की का क्या राज है, क्यों कुछ समुदाय और मुल्क आगे बढ़ जाते हैं और दूसरे फिसड्डी रहते हैं, इसका ज्ञान अपन को देर में हुआ। दुनिया में तरक्की उन्होंने की जिन्होंने बाथरूम के माहात्म्य और इसकी गूढ़, बहुआयामी भूमिका को ठीक से समझा, बाथरूम की कद्र की, जिन्होंने बाथरूम को अन्य रूमों से गया-गुजरा […]

अतीत में न जकड़े रहें, आपको भविष्य में जीना है

‘‘अब न रहे वे पीने वाले, अब न रही वह मधुशाला’’। लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की इस पंक्ति में दो इशारे हैं। पहला इस सोच पर तिरछी नजर है कि गया जमाना हर मायने में आज के जमाने से बेहतर था। दूसरा अहंकार पर व्यंग्य है – कोई था तो हम थे, किसी का […]

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