मूसलचंदों के समाज में तांकाझांकी के लुत्फ

दूसरे क्या करते, सोचते हैं इससे मिलने वाले अथाह आनंद से वे सही मायने में वंचित रहते हैं जो अपने ही कार्य में आंखें गड़ाए रहते हैं। अपना काम छोड़ कर दूसरों की हरकतों में दखल से मिलते लुत्फ को वे इकडगरी क्या जानें जो सदा अपने और अपने काम के बोझ तले धंसे रहते […]

कम बोलें; झमेले, लफड़े भी कम होंगे

कम बोलेंगे तो शब्दों में वजन ज्यादा होगा। ज्यादा बोलना मतलब ज्यादा फंसाद, कलह और मनमुटाव। शब्द ऊर्जा है, इसे बेहतरीन कार्य के लिए संरक्षित रखें। जहां कम से काम चल जाए वहां अतिरिक्त ऊर्जा क्यों खर्ची जाए।   शब्द और मौन शब्द मनुष्य के विचार और भावना के आदान-प्रदान का प्रभावी वाहन हैं। लिखित […]

आपकी वास्तविक संपदा क्या है ?

नौकरी न मिलना, प्रोमोशन में देरी, कोर्ट केस में हार, कीमती सामान की चोरी आदि से परेशान हो कर सदा के लिए निराशा में डूब जाना छोटी सोच वालों का काम है। विदेश में रच-पच जाने, मोटी तनख्वाह, ढ़ेर रुपया या सामाजिक रुतबे से कुछ कार्य भले ही सरलता से सध जाएं, किंतु शख्सियत दमदार […]

एक साथ चुनाव आंचलिक हितों में नहीं

पहले कांग्रेस ने ‘एक देश एक चुनाव’ चलाया। अब बीजेपी वही करने पर तुली है। मंशा वही है। कैसे भी सत्ता हाथ से न फिसले। दूसरे पक्ष की नहीं सुनना समाज और देश के दूरवर्ती हित में नहीं है। भारत सरीखा वैविध्यपूर्ण देश शायद ही अन्य कोई हो! यह वैविध्य ही दुनिया के सबसे बड़े […]

जो अपने पास है, उसकी कद्र करें; दुनिया रंगीन हो जाएगी

नया चाहे दूसरे का हो या अपना, आकर्षित करता है। आपके पास क्या है, इसकी सूची बनाएं। आपकी आज की स्थिति के लिए अनेक लोग तरस रहे हैं। पड़ोस के शर्माजी ने नई कार क्या खरीदी कि वर्मा परिवार की नींद उड़ गई, उन्हें सपरिवार अपनी आठ वर्ष पुरानी कार खटारा लगने लगी। पत्नी आए […]

उन बेचारों को अवसर ही नहीं मिले …

जो बेचारे रहे, वे बेचारे ही रहेंगे। दुखी, अभिशप्त से। प्रभु और उनकी आयोजना पर उन्हें विश्वास नहीं था। इसके विपरीत, प्रभु की न्यायप्रियता के प्रति आश्वस्त व्यक्ति के हृदय में आशा, उल्लास और हर्ष का दीप बुझ ही नहीं सकता। समर्थ व्यक्ति भाग्य को नहीं कोसेगा:  कामयाबी, प्रसिद्धि और आनंद के उत्कर्ष तक वे पहुंचे […]

स्पर्श की करामाती ताकतें वैज्ञानिक तर्ज पर विकसित करना जरूरी

जिन संतानों को शैशव या बचपन में माबाप का पर्याप्त स्नेहिल स्पर्श नहीं मिला उनका भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक विकास ठीक से नहीं हुआ, और इसका खामियाजा आजीवन रहा। जिसे मां का दूध और दुलार नहीं मिले, संपूर्ण-स्वस्थ व्यक्तित्व के तौर पर वह कैसे निखरेगा? अपने भाव या मंशा जाहिर करने, रूठे को मनाने, भयभीत को […]

मिट्टी का दिया है, तभी दीवाली है

कितना भी कर लें, कागजी फूल कुदरती फूलों का लुत्फ कभी न दे पाएंगे! दिवाली में मिट्टी के दियों का प्रयोग न केवल एक सुदीर्घ सांस्कृतिक प्रथा को संरक्षित करता है बल्कि स्वदेशी उद्योगों और मूल्यों को संवर्धित  करता है।

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