अंधेरा चांद आने से नहीं, सूर्य के ढ़लने से होता है
दिल्ली के जिस सरकारी संगठन में मैंने करीब उन्नीस वर्ष सेवाएं दीं वहां मेरा कार्य ऐसा था कि आगंतुकों और संस्थान के कर्मियों से अनवरत संपर्क रहता। मेरे कमरे में एक अन्य अधिकारी भी बैठते थे। अपनी स्वभावगत आदतवश दूसरों के हित में कोई ठोस राय देते अपने संवादों में मैं कदाचित शासकीय अपेक्षाएं लांघ […]