Tag: साप्ताहिक काॅलम

शक्ति और सामर्थ्य जिम्मेदारियां बेहतर निभाने के साधन बनने चाहिएं

स्वयं को सशक्त बनाने के आह्वान में स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘‘जीवन नाम है शक्ति का, निर्बलता मृत्यु की ओर ले जाती है’’; उनका आशय था जीवंतता और हौसले जीवन को जड़ नहीं होने देते, और इनके अभाव में जीवन बुझा, नीरस हो जाएगा। शक्तिसंपन्न व्यक्ति जीवनपथ में यदाकदा पसर जाती मुश्किलों और विडंबनाओं के […]

शोर-शराबे में, और चीखने से हम न दूसरों की सुन सकेंगे, न अंतर्मन की

हमारे जीवन को असहज, बोझिल बनाता एक सच है – परिजनों, अजनबियों से तो दूर, अपनों से भी संवाद नहीं बैठाना। बच्चे मातापिता के उद््गार नहीं सुनना चाहते, पति-पत्नी एक दूसरे से ईमानदारी से अपने सरोकार साझा नहीं करते, वगैरह। नतीजन आपसी दूरियां बढ़ रही हैं और व्यक्ति एकाकी पड़ रहा है, मानसिक बीमारियों में […]

सत्संग महफिलों में नहीं, नेक संगत से मिलता है

रात को फोन पर उन्हें कोई जरूरी सूचना देने के बाद मैंने सरसरी तौर पर क्या कह डाला, ‘‘खाना तो हो गया होगा, नौ बज चुके हैं’’ कि उन्होंने दिल में भरी खीजों का पिटारा खोल दिया – ‘‘अब वो दिन फाख्ता हुए जब ऐन आठ बजे दोनों बच्चों और मुझे खाना नसीब हो जाता […]

बाथरूम का माहात्म्य जाने बिना जीवन सफल न होगा

तरक्की का क्या राज है, क्यों कुछ समुदाय और मुल्क आगे बढ़ जाते हैं और दूसरे फिसड्डी रहते हैं, इसका ज्ञान अपन को देर में हुआ। दुनिया में तरक्की उन्होंने की जिन्होंने बाथरूम के माहात्म्य और इसकी गूढ़, बहुआयामी भूमिका को ठीक से समझा, बाथरूम की कद्र की, जिन्होंने बाथरूम को अन्य रूमों से गया-गुजरा […]

अतीत में न जकड़े रहें, आपको भविष्य में जीना है

‘‘अब न रहे वे पीने वाले, अब न रही वह मधुशाला’’। लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की इस पंक्ति में दो इशारे हैं। पहला इस सोच पर तिरछी नजर है कि गया जमाना हर मायने में आज के जमाने से बेहतर था। दूसरा अहंकार पर व्यंग्य है – कोई था तो हम थे, किसी का […]

छोटों को ‘उत्पात’ मचाने दो, वरना खैर नहीं!

समाजशास्त्रियों, नेताओं, सरकारों, प्रबुद्धजनों ने कहा, लिखा और हमने पढ़ा-सुना कि बच्चे देश और समाज का भविष्य हैं। देश के विकास का स्वरूप, इसकी दिशा-दशा क्या होगी, सब बच्चों-युवाओं की सोच पर निर्भर है, चूंकि सोच के अनुरूप कार्य होंगे और फल मिलेगा। उम्रदारों की संख्या सभी देशों में बढ़ रही है, उनकी खैरियत का […]

अभिभावकीय भागीदारी बिन नहीं मुकम्मल होगी सही शिक्षा

व्यापक अर्थ में शिक्षा उससे ऊपर की चीज है जो स्कूल-काॅलेजों में पढ़ाई, सिखाई जाती है। बेशक शैक्षिक संस्थानों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पाठ्यक्रम मार्किट की जरूरतों के अनुसार, रोजगार दिलाने सहायक हो सकते हैं। किसी ने यहां तक कहा, असल पढ़ाई तो काॅलेज की चारदिवारी छोड़ देने, डिग्री हासिल करने के बाद शुरू होती […]

जिंदगी आनंदित रहने के लिए है, पोस्टमार्टम के लिए नहीं

अंडे के शौकीन एक व्यक्ति को सुबह नाश्ते में उसकी पत्नी चाय के साथ दो उबले अंडे, या आॅमलेट परोसती थी। जिस दिन आॅमलेट मिलता उसका शिकवा रहता, उबले अंडे चाहिए थे। उबले अंडे मिलते तो वे मुंह बना लेते, आमलेट क्यों नहीं बना। बेचारी पत्नी रोजाना कसमकस में रहती कि आज क्या करूं? एक […]

अंधेरा चांद आने से नहीं, सूर्य के ढ़लने से होता है

दिल्ली के जिस सरकारी संगठन में मैंने करीब उन्नीस वर्ष सेवाएं दीं वहां मेरा कार्य ऐसा था कि आगंतुकों और संस्थान के कर्मियों से अनवरत संपर्क रहता। मेरे कमरे में एक अन्य अधिकारी भी बैठते थे। अपनी स्वभावगत आदतवश दूसरों के हित में कोई ठोस राय देते अपने संवादों में मैं कदाचित शासकीय अपेक्षाएं लांघ […]

ऊपर वाले का न सही, सबसे ऊपर वाले का खयाल रहे

हालिया मोबाइल में प्राप्त एक मैसेज में किताबों में तल्लीन मालूम पड़ते एक बालक को दिखाया गया। उसने करीने से, रस्सी से मोबाइल फोन को लटका रखा है, परदे के पीछे ऐसे कि किसी को भनक न पड़े। जब वह आश्वस्त होता है कि कोई उसके कमरे में यकायक नहीं प्रकट हो जाएगा तो वह […]

संकल्प नेक हों तो रुहानी ताकतें भी हाथ बंटाती हैं

मनोवैज्ञानिक बताते हैं, मंसूबे नेक हों, इच्छा ज्वलंत, दिल साफ, और हौसले बुलंद, तो मनचाहा हासिल हो जाता है। वह कार्य भी संपन्न हो जाता है जो सर्वथा अकल्पित, अप्रत्याशित था, तमाम अटकलों से जुदा। और दुनिया भौंचक्की रह जाती है। गए मंगलवार 6 अगस्त को संसद में जो हुआ वह अजूबा से कम न […]

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