Tag: दीप प्रज्वलन भितरी प्रकाश अप्प दीपो भव

बाहर की रोशनी तो ठीक है, पर ज्यादा अहम है मन-चित्त जगमगाता रहे

उत्तराखंडी लोक गायत्री डा0 कुसुम भट्ट की एक पंक्ति है, ‘‘भैर बिटि खोल चढ्यां भितर गSदला फट्यां छन’’ यानी बाहर से तो जलबेदार कवर चढ़े हैं और भीतर गद्दे फटे हुए हैं! बाहर दिये जलते रहें, अच्छी बात है किंतु अपने अंतःकरण की लौ को शिथिल नहीं होने देना है। बाहरी प्रकाश धोखा दे सकता […]

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