पंगुता के बाबत पहले यह जान लें कि केवल वही “अपंग” नहीं जिसमें शारीरिक विकृति है। मन और चित्त की दुरस्ती उतनी ही अहम है। बल्कि मानसिक विकृति या अपंगुता ज्यादा चिंता की बात है, इसमें तेजी से इजाफा जो हो रहा है। दूसरा, अपंग कहे जाने वालों की खूबियों-हुनरों की अनदेखी करने वालों का नजरिया पंगु है। “अपंग” माने जाते व्यक्ति हमारे ही बंधु हैं। उनके प्रति समानता का भाव रखना होगा।
धार्मिक और पर्यटन परिसर, बाजारों के किनारे, मेले, चैराहों या फुटपाथ पर कटोरा लिए कतार में बैठे, कुछेक बैसाखियों या व्हीलचेयर वाले भीख मांगते अपंगों को देख कर आपको क्या कौंधता है? दूसरों की मेहरबानी पर गुजर-बसर करते, वक्त के मारे ये बेचारे दिनभर चलते फिरतों की लताड़ और उलाहना सुनते-सहते हैं। अपंगों में एक अभिशप्त वर्ग उनका भी है माफियाओं ने बचपन में जिनके अंगभंग कर भीख के धंधे में ठेल दिया।
अपूर्णताएं प्रत्येक मनुष्य में रहती हैं; परिपूर्ण, सर्वगुण संपन्न कोई नहीं। विधान है कि जिसकी कमियों को तवोज्जु देंगे उसकी तमाम खूबियां, गुण और हुनर नजरअंदाज हो जाएंगे। इसीलिए जन्म से ‘अपंग’, गिनीज़ वल्र्ड रिकार्ड ख्याति के राबर्ट हैंसेल ने कहा, ‘‘समाज की सबसे बड़ी अपंगता यह है कि वह किसी व्यक्ति के मात्र एक पक्ष से परे नहीं देख पाता’’। यानी सवाल व्यक्ति में खोट का नहीं, देखने वाले के नजरिए का है। जो व्यक्ति कोई एक कार्य भलीभांति संपन्न कर सके, उसकी समाज और देश को निहायत जरूरत है। दूसरी ओर, क्या उन सभी को अपंग करार कर दिया जाए जो अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं कर पाते?
अपंग वह है जो जन्मागत या परिस्थितिवश किसी शारीरिक या मानसिक त्रुटिवश कुछ मामलों में पराश्रित हो जाता है। पराश्रयता एक निर्धारित स्तर से अधिक हो जाए तो उसे ‘‘अपंग’’ सूचीबद्ध कर दिया जाता है। विडंबना है कि विश्व के करीब एक अरब यानी 15 प्रतिशत और अपने देश के 2.68 करोड़ अपंग समाज की मुख्यधारा से कमोबेश अलहदा, नियमित आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य देखरेख जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। दुखद यह है कि इनमें से दो तिहाई उपचार के बाबत अनभिज्ञ हैं या उपलब्ध सुविधाओं तक उनकी पहुंच नहीं है। इनके साथ सहानुभूति या न्यायसंगत तौरतरीकों के बदले दोयम दर्जे का व्यवहार बरकरार है। ये यौन कदाचार के शिकार जल्द होते हैं। उपेक्षा और उचित देखरेख न मिलने से इनकी आयु कम रहती है। शरीर या मन से बाधित ये व्यक्ति हमारे ही बंधु हैं, मुख्यधारा में रहने और नानाविध खुशियों में सहभागिता का इन्हें भी अधिकार है। न्यायपूर्ण, बराबरी की व्यवस्था में क्यों उनका आत्म सम्मान आहत हो, क्यों वे अवांछित भेदभाव का शिकार बनें; उन्हें भी बेहतर जीवन की दरकार है।
अपंगताओं से संबद्ध यूएनओ के दस्तावेज ‘एजेंडा 2030’ में संकल्प है कि ‘‘कोई पीछे नहीं छूटना चाहिए’’। दस्तावेज में सदस्य राष्ट्रों से आग्रह है कि अपंगों के हित में कार्यरत संगठन और सरकारें आपसी तालमेल से कार्य करें ताकि अपंगों की बेहतरी के लक्ष्य हासिल किए जा सकें। इस वर्ष के विश्व अपंगता दिवस (3 दिसंबर) के फोकस में उन अपंगताओं का समावेश है जो दिखती नहीं, जैसे मानसिक बीमारियां, अत्यधिक थकान, क्रानिक दर्द, मस्तिष्क की चोट, सीखने में कठिनाई, आदि। कोविड-19 के चलते अपंगों की दुर्गत बढ़़ी ही है।
शारीरिक या मानसिक अपंगताओं से जूझ रहे व्यक्तियों के कल्याण के लिए प्रावधानों को नाकाफी समझते हुए अपंगों के अधिकार संबंधी संशोधित विधेयक 2016 में इन व्यक्तियों के लिए शिक्षा, रोजगार, भूमि आवंटन, गरीबी उन्मलून आदि योजनाओं में विशेष ध्यान रखे जाने की बात है। नए प्रावधानों पहले 7 के स्थान पर 21 प्रकार की मेडिकल अपंगताओं का समावेश है। सरकारी और शासन द्वारा पोषित संस्थानों को समावेशी प्रणाली अपनानी अनिवार्य होगा, शासकीय नौकरियों में अपंगों के लिए आरक्षित पद 3 प्रतिशत से बढ़ कर 4 फीसद होंगे, अपंगों के प्रति अपराध पर जुर्माना बढ़़ा दिया गया है तथा उनके मामले निबटाने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालय होगा। अपंगों की जीवनचर्या सहज बनाने के लिए शोध द्वारा उनके लिए कारगर साधन विकसित किए जाने के प्रयासों को वरीयता देनी होगी। अपंगता के अनुरूप प्रशिक्षण लेने से रोजगार हासिल करना या निजी उद्योग स्थापित करना उनके लिए सहज होगा। खेद है कि जितने भी नियम-कानून बनाए जाते हैं उनकी अनुपालना कम ही होती है। मसलन मद्रास हाई कोर्ट ने इसी 30 अक्टूबर को स्कूली शिक्षा के प्रधान सचिव को हाजिर हो कर कारण बताने के लिए तलब किया कि राज्य के 74.05 प्रतिशत शासकीय स्कूलों में अपंगों के अनुकूल शौचालय तथा अन्य व्यवस्थाएं क्यों नहीं निर्मित की गईं।
अनेक अपंग हुनरों के धनी होते हैं, इसीलिए इन्हें दिव्यांग जन का कहा जाने लगा है। ऐसे अनेक व्यक्तियों में किसी सामान्य अंग या इंद्रिय की कार्यक्षमता औसत से कई गुना अधिक देखी जोती है और वे चुनींदा क्षेत्र में सामान्यजनों को मात दे रहे हैं। वोन पियरे की राय में, अक्षमता को सदा अवसर में तब्दील किया जा सकता है। समझना होगा कि मौजूदा हालात केवल यही इंगित करते हैं कि शुरुआत यहां से होनी है, इस क्षणिक मौके से मंजिल तय नहीं होती। अपंगों को मशाल दिखाते स्टीफेन हाकिंग ने अपने देश में अपंगताओं के बावजूद अपने जुझारुपन के कारण मिसालें बन चुके केरल की 17 वर्षीय प्रख्यात क्लासिकल डांसर सुधा चंद्रन, अपंगों के अनुकूल एटीएम मशीन विकसित करने वाले डा0 सतेद्रं सिंह, बैडमिंटन खिलाड़ी गिरीश शर्मा, ब्लाइंड क्रिकेट टीम के शेखर नायक, शीर्ष पत्रकार एच. रामाकृष्णन, कैंसर विशेषज्ञ डा0 सुरेश आडवाणी आदि हस्तियों ने सिद्ध किया है कि प्रकृतिजन्य कमजोरियां व्यक्ति की ताकत बन सकती हैं।
जरूरी इतना भर है कि हौसले बुलंद रहें।
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राजस्थान के प्रमुख अखवार, दैनिक नवज्योति के संपादकीय पृष्ठ में 3 दिसंबर 2020 को प्रकाशित। लिंक: https://epaper.navajyoti.net/clip/49784
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